लेह-पैंगोंग
अगले दिन निकल पड़ा लद्दाख के सबसे खूबसूरत एवं विश्व का सबसे बड़े प्राकृतिक लेक की तरफ। आप समझ गए होंगे मैं किसकी बात कर रहा हूँ। नहीं समझें? चलिए मैं बता देता हूँ। मैं बात कर रहा हूँ " पैंगोंग लेक" की। पैंगोंग लेक से कुछ याद आया? बिलकुल सही सोच रहे हैं आप - आमिर खान और करीना कपुर की बहुचर्चित फिल्म "3 Idiots" की वो अंतिम क्षणों की मंत्रमुग्ध करने वाली दृश्य जो नीले रंग के पानी के खूबसूरत लेक के साथ फिल्माया गया था।
प्रायः शैलानी पैंगोंग लेक की एक दिवसीय यात्रा करना पसंद करते हैं। इसके दो मुख्य कारण हैं - (१). लेह से पैंगोंग की दुरी तक़रीबन १६५ km की है जिसे स्थानीय ड्राइवर ५ घंटे में पूर्ण कर लेते हैं। सुबह निकल कर देर शाम तक वापस लौटा जा सकता है। (२). पैंगोंग में रात्रि विश्राम के लिए टेंट और सिमित होमस्टे के ही विकल्प हैं। जून से मध्य अगस्त माह तक शैलानियों की आवाजाही अत्यधिक रहती है। माँग और पूर्ति में असमानता के कारण अग्रिम बुकिंग नहीं कराने की स्थिति में वहां पहुँचकर रुकने का इंतज़ाम कर लेंगे वाली सोच शैलानी को परेशानी में डाल सकता है। जब शैलानियों की आवाजाही अत्यधिक रहती है उस समय एक रात्रि के लिए टेंट ४००० से लेकर ५००० रूपये प्रति रात्री मिलती है। इसके विपरीत होमस्टे में एक कमरा एक समय के खाने के साथ १००० रूपये प्रति रात्री के दर से मिल जाता है। होमस्टे एक बेहतरीन विकल्प है जहाँ लद्दाखी परिवार के साथ रहने का भी मौका मिलता है और जेब पर भी भारी नही पड़ता।
लद्दाख में टैक्सी यूनियन बहुत ही प्रभावशाली है। वहाँ शैलानियों को दूसरे राज्यों में पंजीकृत टैक्सी से घूमने की अनुमति नहीं है। यहाँ तक की जम्मू-कश्मीर में पंजीकृत टैक्सी को भी लेह एवं अन्य जगहों पर शैलानियों को घुमाने की अनुमति नहीं है। ऐसे सभी टैक्सी जो लेह-लद्दाख में पंजीकृत नहीं हैं उन्हें लेह बॉर्डर से वापस लौट जाना होता है। स्वयं चालित निजी वाहन को ले जाने की अनुमति है परंतु उसे भी टैक्सी यूनियन के द्वारा रोका जाता है और उनके पूर्ण संतुष्टि तक कागजात की छानबीन की जाती है। लेह शहर में मुझे ऐसी कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। परंतु मैं जैसे ही करू पहुँचा, मेरी गाड़ी (जिसपर दिल्ली का नंबर प्लेट है) को रोका गया और गाड़ी के कागजात और पहचान पत्र माँगा गया। पूछने पर पता लगा वो टैक्सी यूनियन के नुमाइंदे हैं। पूरी तसल्ली करने के बाद उन्होंने मुझे आगे जाने की इजाज़त दे दी।
चांग ला टॉप पर पहुँचने के बाद कुछ देर विराम करने एवं अपने मानसिक संतुलन को संजोने के विचार से मैंने रुकना उचित समझा। चांग ला टॉप पर एकमात्र कैफेटेरिया है जहाँ गुजरने वाले शैलानियों की आवाजाही लगी हुई थी। इसी कैफेटेरिया में मेरी मुलाकात दिल्ली से आये हुए कुछ नौजवान युवकों से हुई जो लेह से एक दिन पहले मोटरसाइकिल से पैंगोंग गए थे और उन्होंने रात्रि पैंगोंग के किनारे टेंट में व्यतीत किया था। यहाँ चाय ४० रूपये की एवं मैग्गी की एक प्लेट ६० रूपये की मिली। कहते हैं चांग ला टॉप एक ऐसा स्थान है जहाँ भारतीय सेना के जवान शैलानियों को मुफ्त चाय पिलाते हैं।
गाड़ी से निकलने पर एह्साह हुआ कि बाहर हड्डियों को कंपाने वाली बहुत ही तेज शर्द हवा बह रहा था। गाड़ी के भीतर और बाहर के तापमान में बहुत ज़्यादा अंतर था।जब मैं कैफेटेरिया के अंदर पहुंचा मुझे महसूस हुआ जैसे मेरी तबियत ख़राब हो रही है। मैं महसूस कर सकता था कि मेरे पाँव डगमगा रहे हैं और मुझे चक्कर आने जैसा अनुभव हो रहा था। मैंने पढ़ा था ऐसे हालत में गरम-गरम अदरक की चाय बहुत फायदेमंद होती है और तुरंत उस ऊंचाई से कम ऊंचाई की तरफ बढ़ जाना चाहिए। दो कप चाय पिने के बावजूद मेरे मानसिक और शारीरिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। अगले १० मिनट तक मुझे चक्कर आने जैसा अनुभव होता रहा। मैंने कैफेटेरिया से निकलना उचित समझा और वापस गाड़ी के अंदर आ गया। इसे संयोग कहें या कुछ और, लेकिन जैसे ही मैं ड्राइविंग सीट पर वापस बैठा और गाड़ी चलानी शुरू कर दी, अगले २-३ मिनट में मुझे वह चक्कर आनेवाली अनुभूति से छुटकारा मिल गया। इसका कारण बाहर का ठण्ड था या इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी, मैं समझ नहीं पाया।
चूँकि रात्री पैंगोंग लेक में ही व्यतीत करना था इस लिए मैंने लेह से देर से निकलना मुनासिब समझा। चूँकि मैं पर्यटन के आखरी महीने में गया था मैंने पहले से कोई बुकिंग नहीं करा रखी थी। मैंने तय किया था कि वहीँ पहुँचकर रात्री व्यतीत करने का स्थान ढूँढूँगा। उन महीनों में भी रात्रि में तापमान शून्य डिग्री के आसपास रह रहा था। पैंगोंग लेक के सबसे नजदीक रिहायशी इलाके को स्पैंगमिक के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर स्थानीय लोगों ने अपने घर के एक हिस्से को होमस्टे में परिवर्तित किया हुआ है। मालूम हुआ स्पैंगमिक में करीब दस होमस्टे की सुविधा थी। शैलानियों की संख्या में कमी तो थी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वहाँ घूमने वालों की संख्या नगण्य हो। शैलानियों की संख्या कम होने की वजह से रहने के लिए स्थान ढूंढने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई। जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग की एकमात्र गेस्टहाउस (जो स्पैंगमिक से तक़रीबन २ km पहले है) जिसमें गरम पानी की सुविधा उपलब्ध थी उसका किराया ३५०० रूपये प्रति रात्रि की दर से माँगा गया। स्पैंगमिक में एक रात्रि के लिए उस समय टेंट वाले ३००० रूपये की मांग कर रहे थे। जबकि मुझे स्पैंगमिक में होमस्टे में ८५० रूपये में खाने और नास्ते के साथ कमरा मिल गया। ऊपर मैंने लद्दाखी परिवार के साथ ली गयी फोटो पोस्ट की है।
लेह से करू नामक स्थान तक रोड बहुत ही अच्छे हाल में मिला। तक़रीबन ३५ km की दुरी आराम से ३० मिनट में पूरा किया जा सकता है।
लेह से करू नामक स्थान तक रोड बहुत ही अच्छे हाल में मिला। तक़रीबन ३५ km की दुरी आराम से ३० मिनट में पूरा किया जा सकता है।
करू से सक्ती तक की १४ km के दौरान सड़क कहीं ख़राब तो कहीं ठीक हाल में मिला। सक्ती के बाद मोबाइल में कोई सिग्नल नही मिलता है। सक्ती और तंगस्ते के बीच ७८ km की दुरी है जो "चांग ला पास" होकर गुजरती है। इस रास्ते पर गाड़ी चलाना अपने आप में एक चुनौती थी और आपके ड्राइविंग कौशल की परीक्षा हो जानी है। मैं इतने सालों से गाड़ी चला रहा हूँ, पर यह पहला मौका था जब मुझे इन पहाड़ों के तीव्र एवं अंधे मोड़ों पर गाड़ी चलाने में घबराहट महसूस हो रही थी। "चांग ला" को विश्व की तीसरे सबसे ऊँचे चोटी का ख्याति प्राप्त है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से १७६८८ फ़ीट की है।
चांग ला टॉप पर पहुँचने के बाद कुछ देर विराम करने एवं अपने मानसिक संतुलन को संजोने के विचार से मैंने रुकना उचित समझा। चांग ला टॉप पर एकमात्र कैफेटेरिया है जहाँ गुजरने वाले शैलानियों की आवाजाही लगी हुई थी। इसी कैफेटेरिया में मेरी मुलाकात दिल्ली से आये हुए कुछ नौजवान युवकों से हुई जो लेह से एक दिन पहले मोटरसाइकिल से पैंगोंग गए थे और उन्होंने रात्रि पैंगोंग के किनारे टेंट में व्यतीत किया था। यहाँ चाय ४० रूपये की एवं मैग्गी की एक प्लेट ६० रूपये की मिली। कहते हैं चांग ला टॉप एक ऐसा स्थान है जहाँ भारतीय सेना के जवान शैलानियों को मुफ्त चाय पिलाते हैं।
गाड़ी से निकलने पर एह्साह हुआ कि बाहर हड्डियों को कंपाने वाली बहुत ही तेज शर्द हवा बह रहा था। गाड़ी के भीतर और बाहर के तापमान में बहुत ज़्यादा अंतर था।जब मैं कैफेटेरिया के अंदर पहुंचा मुझे महसूस हुआ जैसे मेरी तबियत ख़राब हो रही है। मैं महसूस कर सकता था कि मेरे पाँव डगमगा रहे हैं और मुझे चक्कर आने जैसा अनुभव हो रहा था। मैंने पढ़ा था ऐसे हालत में गरम-गरम अदरक की चाय बहुत फायदेमंद होती है और तुरंत उस ऊंचाई से कम ऊंचाई की तरफ बढ़ जाना चाहिए। दो कप चाय पिने के बावजूद मेरे मानसिक और शारीरिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। अगले १० मिनट तक मुझे चक्कर आने जैसा अनुभव होता रहा। मैंने कैफेटेरिया से निकलना उचित समझा और वापस गाड़ी के अंदर आ गया। इसे संयोग कहें या कुछ और, लेकिन जैसे ही मैं ड्राइविंग सीट पर वापस बैठा और गाड़ी चलानी शुरू कर दी, अगले २-३ मिनट में मुझे वह चक्कर आनेवाली अनुभूति से छुटकारा मिल गया। इसका कारण बाहर का ठण्ड था या इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी, मैं समझ नहीं पाया।
तंगस्ते के बाद लुकुंग तक (तक़रीबन ४० km) तक सड़क बहुत ही अच्छे हाल में मिले और रस्ते में पहाड़ों की प्राकृतिक खूबसूरती मंत्रमुग्ध करने वाला था।
पैंगोंग लेक की पहली झलक हमें स्पैंगमिक से तक़रीबन ५ km पहले मिलता है। अलग-अलग आकार और ऊँचाइयों वाली पहाड़ों को अपने पृष्ठभूमि में समेटे हुए और दो पहाड़ों के बीच से झांकता हुआ पैंगोंग लेक का एक किनारा बेहद ही खूबसूरत नजारा प्रस्तुत करता है। यहीं आपको पैंगोंग लेक की खूबसूरती का पहली बार अवलोकन होता है। फिर तक़रीबन २ km तक लेक पहाड़ों के पीछे छुप जाता है।
स्पैंगमिक से तक़रीबन ५ km पहले रास्ता फिर से ख़राब था। एक बार तो ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं रास्ते से भटक गया हूँ। सड़क अचानक ख़त्म हो जाता है और सामने सिर्फ मिटटी और पत्थर भरा रास्ता था जो किसी भी नए चालक को भ्रमित कर सकता है।
स्पैंगमिक पहुँचते हुए शाम हो चुकी थी। सूर्य भी अपने ढलान पर था जिस वजह से पहाड़ों की चोटी सूर्य के रोशनी को पैंगोंग लेक पर गिरने से रोक रहीं थी। लेक की पानी के ऊपर सूर्य की कम रौशनी पड़ने से पानी का रंग और भी ज़्यादा नीले रंग का दिख रहा था मानो जैसे हज़ारों-हज़ार लीटर नील साफ़ पानी में घोल दिया गया हो। सामने पर्वत श्रृंखला के बीच जो लेक का नजारा था उसे शब्दों में बयां करना आसान नही है। उस खूबसूरती को सिर्फ वहां जाकर महसूस किया जा सकता है। हाँ, मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूँ कि हर भारतीय को इस प्राकृतिक खूबसूरती को अपने जीवन काल में एक बार अवश्य देखना चाहिए।
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