वो जो राह-ए-हक़ चला है उम्र भर
साँस ले ले कर मरा है उम्र भर
जुर्म इतना है ख़रा सच बोलता
कठघरे में जो खड़ा है उम्र भर
सहज था विश्वास करता रह गया
अपने लोगों ने छला है उम्र भर
पात केले सी मिली संवेदना
उफ़् , बबूलों पर टँगा है उम्र भर
मुख्य धारा से अलग धारा रही
खुद का खुद से सामना है उम्र भर
घाव दिल के जो दिखा पाता ,अगर
स्वयं से कितना लड़ा है उम्र भर
राग दरबारी नहीं है गा सका
इसलिए सूली चढ़ा है उम्र भर
झूट की महफ़िल सजी ’आनन’ सदा
सत्य ने पाई सज़ा है उम्र भर
-आनन्द पाठक-
09413395592
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