मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

एक ग़ज़ल : नहीं उरतेगा अब कोई ....



नहीं उतरेगा अब कोई फ़रिश्ता आसमाँ से
उसे डर लग रहा होगा यहाँ अहल-ए-ज़हाँ से

न कोह-ए-तूर पे उतरेगी कोई रोशनी अब
हमी को करनी होगी रोशनी सोज़-ए-निहाँ से

ज़माना लद गया जब आदमी में आदमी था
अयाँ होने लगे हैं लोग अब आतिश-ज़ुबाँ से

अभी निकला नहीं है क़ाफ़िला बस्ती से आगे
गिला करने लगे हैं लोग  मीर-ए-कारवां से

हमारा राहबर खुद ही यहाँ गुमराह हुआ है
खुदा जाने कहाँ को ले के जायेगा  यहाँ  से

इधर आना तो पढ़ लेना मेरी रूदाद-ए-हस्ती
जिसे मैं कह न पाया था कभी अपनी ज़ुबाँ से

कभी ’आनन’ को भी अपनी दुआ में याद रखना
भला था या बुरा था ,हो रहा रुखसत जहाँ से

शब्दार्थ
अहल-ए-ज़हाँ से   = इस दुनिया के लोगों से
सोज़-ए-निहाँ  से = [दिल के] अन्दर छुपी आग से
आतिश-ज़बां से =आग लगाती बातों से[अग्नि वाणी]
मीर-ए-कारवाँ से = कारवाँ का नेतॄत्व करने वाले से
रूदाद-ए-हस्ती = जीवन-गाथा

-आनन्द.पाठक-
08800927181

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें