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शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

एक लघुव्यथा : मुज़रिम हाज़िर हो....[व्यंग्य]

एक लघुव्यंग्य व्यथा   : मुज़रिम हाज़िर हो....

’आनन्द.पाठक पुत्र [स्व0] श्री रमेश चन्द्र पाठक साकिन औडिहार परगना सैद्पुर जिला गाज़ीपुर वर्तमान  निवासी गुड़गाँव.....हाज़िर हो"- अर्दली ने अदालत के बाहर आवाज़ लगाई
’अबे ! शार्ट में नहीं बोल सकता  क्या..? पूरे खनादान को लपेटना ज़रूरी था क्या?-मैने विरोध जताया
’आप ने 5-रुपया दिया था क्या ? वो तो भला मनाईए कि मैने 4-पुरखों तक नहीं लपेटा-
मैने 5-रुपए थमाए और बोला-" बेटा आगे से ध्यान रखना’
’ठीक है स्साब ’
और मैं अदालत कक्ष में बने कठघरे में जा कर खड़ा हो गया
-आप का कोई वकील ?--जज ने पूछा
-नहीं ,मैं ही काफी हूँ । सच को झूठ की क्या ज़रूरत ,जज साहब !
’ठीक है। सरकारी वकील ज़िरह शुरु कर सकते है?
सरकारी वकील -’हाँ ! तो आप का नाम ?
-आनन्द पाठक-
-पिता का नाम ?
-उस अर्दली से पूछ लो जो अभी अभी आवाज़ लगा रहा था ’
मै निश्चिन्त था कि मेरे 5/- से अब अर्दली  मुँह नहीं खुलेगा
 सरकारी वकील ने कहा-’मैं आप से पूछ रहा हूँ । यह आप की साहित्यिक मंडली नहीं है कि  आप जो चाहे बोल दें लिख दें ..यह अदालत है अदालत ।यहाँ कुछ भी बोलने की स्वतन्त्रता नहीं । आप का पेशा ?
-व्यंग्य लिखना-
-मैं आप का पेशा पूछ रहा हूं }रोग नहीं’- सरकारी वकील ने कुटिल मुस्कान लाते हुए पूछा
-तो आप डाक्टर हैं क्या ?-
-अच्छा ! तो आप व्यंग्य लिखते हैं - तो आप व्यंग्य क्यों लिखते है
-कि समाज को आईना दिखाना है
- समाज को आईना क्यों दिखाना है ?समाज से बिना पूछे आईना दिखाने से अनधिकॄति ’ट्रेसपासिंग’ का केस बनता है। जज साहब नोट किया जाए
-कि उसको अपना चेहरा नज़र आए
-तुम्हे मालूम है समाज अपना विभत्स और कुरूप चेहरा देख कर डर भी सकता है,.... तुम समाज में डर फैला रहे हो-इस प्रकार से आतंक फैलाने से तुम्हारे ऊपर ’आतंक’ फ़ैलाने का केस बनता है-जज साहब नोट किया जाए
-नहीं वो डरता नहीं है ,हँसता है  ,वो समझता है कि इस आईने में उसका चेहरा नहीं ,किसी और का चेहरा है
-तुम्हें मालूम है कि तुम्हारे इस तरह आईना चमकाने से कुछ लोगों की आँखे चौधियाँ गई ....कुछ लोग अन्धे भी हो गए है ..जमीर धुँधला गया है अब उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देता ,,न भ्रष्टाचार..न बेईमानी..न भाई भतीजावाद,न सदाचार ,,न अपना कुरूप चेहरा...इस तरह से तुम समाज में वि्कृति फैला रहे हो? अन्धों को भी आईना दिखाते हो क्या ??
-नहीं । अन्धी क़ौम को आईना दिखाने का कोई लाभ नहीं
-तो इस का मतलब  तुम ’हानि-लाभ’ देख कर लिखने का व्यापार करते हो ?-जज साहब नोट किया जाय ।यह आदमी  बिना ’लाईसेन्स’ लिए व्यापार करता है -इस पर "अवैध व्यापार’ का केस बनता है
-नहीं मैं कहता हूं~
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना  मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
-सूरत बदली क्या ? -वकील साहब ने पूछा --तुम्हारे लेखन से समाज का क्या भला हुआ क्या ...लोग पढ़ते है और कहते हैं ’मज़ा आ गया ’....क्या बखिया उधेड़ी है....क्या जम कर धुलाई की है...क्या ’लतियाया है ? पानी पिला दिया ... बस यही न ।तुम्हारे लिखने से समाज से  भ्रष्टाचार मिट गया क्या...?? समाज सुधर गया.क्या .?? नहीं न ,तो फिर क्यों लिखते हो.....
-वकील साहब !
दस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होगा ज़रूर
हर हथेली खून से तर और ज़्यादा  बेक़रार

सरकारी वकील -और कौन कौन से लोग हैं तुम्हारे ’गिरोह’ में जिस से तुम्हे इस प्रकार के ’आतंकी ’कामों में मदद मिलती है
-गिरोह नहीं है ,’वर्ग’ कहिए वकील साहब ’वर्ग’ .....प्रेरणा  मिलती है ,...... बहुत हैं -  अकेले नहीं है हम ---हरिशंकर परसाई जी है...शरद जोशी जी है ..गोपाल चतुर्वेदी जी है..लतीफ़ घोंघी.....ज्ञान  चतुर्वेदी जी है ...... शौक़त थानवी कृशन चन्दर.. फ़्रिंक तौंसवी किन किन का नाम गिनाउँ.....और गिनाऊँ क्या....
-अरे भूतिए ! इन विभूतियों के नाम  अपने नाम के साथ क्यों घसीट रहा है ? ये महान विभूतियां है ..सम्मानित विभूतियाँ है ...पुरस्कॄति विभूतियां है ..ये समाज सुधारते है ..ये तुम्हारी जैसी गंदगी नहीं फैलाते....
-तो क्या हुआ ? दर्द तो एक जैसा है ....प्यास तो एक जैसी है...
-अच्छा तो पैसे के मामले में तेरी ’प्यास’ और अदानी -अम्बानी की ’ प्यास’ एक जैसी है क्या ???

आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा ठक ठकाया -आप सिर्फ़ काम की ही बातें पूछें  फ़ालतू बातों से अदालत का वक़्त ज़ाया न करें-जज साहब ने हिदायत की
अरे वकील स्साब ! यह टटपूंजिया ही सही पर है व्यंग्य लेखक वकील स्साब ...व्यंग्य लेखक --इस से आप बहस में नहीं जीत पायेंगे--- वादी पक्ष के लोगो ने अलग से हिदायत की
आर्डर आर्डर आर्डर...जज साहब ने 3-4 बार अपना हथौड़ा ठक ठकाया --जज साहब ने कहा -हो गया ,हो गया । बहस पूरी हो गई
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जज साहब ने अपना फ़ैसला सुनाया-- ’तमाम गवाहों के बयानात को मद्दे नज़र रखते हुए और मुज़रिम के बयानात को दरकिनार करते हुए अदालत इस नतीज़े पर पहुँची है कि मुज़रिम अपने लेखन से समाज मै चेतना फैलाने की कोशिश कर रहा है इस से जनता में क्रान्ति के बीज पड़ सकते है ...जनता आन्दोलन कर सकती है ,,बगावत कर सकती है अत: ऐसे लेखकों का ’बाहर ’रहना जनहित में उचित नहीं है । साथ ही अदालत इस लेखक के व्यंग्य लेखन की ’नौसिखुआपन्ती’ और ’ कच्चापना’  के देखते हुए  और सहानुभूतिपूर्वक  विचार करते हुए ताज़िरात-ए-हिन्द की दफ़ा  अलाना..फलाना...चिलाना और .धारा अमुक अमुक अमुक ......में इसे ’अन्दर’ करती है और 3-महीने की क़ैद-ए-बा मश्श्क़त  की सज़ा देती है । तुम्हें इस सज़ा के बारे में कुछ कहना है
"हुज़ूर ..जेल में मुझे कुछ सादे पन्ने मुहैय्या कराने की इज़ाजत दी जाये-मैने  गुज़ारिश की
-मंज़ूर है
-और एक अदद ’कलम’ भी
-नहींईईईईईई........ जज साहब की अचानक चीख निकल गई ...."नहीं ,’कलम’ की इज़ाजत नहीं दी जा सकती ...’कलम’ लेखक का हथियार होता है और जेल में ’खतरनाक हथियार’ रखने की इज़ाजत नही है
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वादी पक्ष ने तालियाँ बजाई ..जज साहब की जय हो...एक और आईनादार ’अन्दर ’ गया ....साहब ने सज़ा नहीं , सज़ा-ए-मौत सुनाई है ---अगर सच्चा लेखक होगा तो 3-महीने में  "क़लम’ के बिना  यूँ ही मर जायेगा वरना तो ये भी कोई ’टाइम-पासू"-लेखक होगा

-आनन्द.पाठक-
08800927181
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