"मम्मा, आज की दाल बहुत गाढ़ी है , मगर टेस्टी है " अनुज ने कहा।
ठीक है , ठीक है । कितनी बाते करते हो खाते वक़्त " इरा ने प्यार से झिड़क दिया अनुज को।
इरा खा चुकी थी, रागेश और अनुज अभी ही खा रहे थे।
रात सवा दस बजे थे उस वक़्त।
तनीषा और अनुज के स्कूल में उन दिनों दशहरे की छुटिया चल रही थी, इसलिए खाने पर देर हो ही जाती थी।
अचानक रागेश का फ़ोन बज उठा। रागेश ने फ़ोन उठाया।
- ओह ...... ! अच्छा ..... ,
- कैसे ??? .........
- कब ? .........
- कहाँ ?
-अच्छा ठीक है , ढूंढ लो फिर बताना " यह कहकर रागेश ने फ़ोन रखा और खाना खाने लगे।
"किसका फ़ोन था ? , इरा ने पूछा।
" वरुण का !"
"क्या खो गया , क्या उनकी स्कूटी चोरी हो गयी ? " इरा ने एक ही सांस पूछ डाला।
वरुण, इरा का भतीजा था १९ साल का। इरा की ननद अलका, अपने दो बेटों के साथ इरा के घर से थोड़ी दूर एक सोसाइटी में रहते थे।
अलका दीदी, रागेश से एक साल बड़ी थी। दीदी , रागेश और इरा के ससुर इस शहर में करीब १९९७ में बिहार से आये थे और फिर यहीं बस गए थे। दीदी ने हालाँकि अंतरजातीय विवाह किया था मगर यहीं इस शहर में आकर किया था । ये इरा की शादी के बहुत पहले की बात है।
जब इरा और रागेश की शादी हुई तब तक तो ससुर जी भी नहीं रहे थे और दीदी के गोद में वरुण था - करीब तीन साल का। वरुण बहुत जुड़ा हुआ था इरा से।
फिर तो इतने सालो में बहुत कुछ हो गया था - दीदी और जीजा जी ने घर खरीद लिया था - और जीजा जी वरुण से आठ साल छोटा अंकित दीदी की गोद में छोड़ कर जाने कहाँ चले गए - हमेशा के लिए। कभी लौट कर नहीं आये। आज उस बात को करीब ९ साल हो गए थे।
और छोड़ा भी तो क्या - लाखो का क़र्ज़ , घर की किश्ते न भरकर डिफाल्टर बना गए थे दीदी को ! ये कहाँ कम था - अंकित, जो इरा की तनीषा से एक साल बड़ा था - severely autistic था। कितने नाज़ से लाई थी वो अंकित को इस दुनिया में। बहुत पैसा था जीजाजी के पास, उन दिनों! इसीलिए तो अंकित को घर में प्यार से राजा बुलाने लगे थे सब। करोडो का मालिक - राजा !
वक़्त ने विवश कर दिया था - अब दीदी को भी काम करना पड़ रहा था। महज १०००० की नौकरी। खैर खर्च निकलने लगा। फिर तो वरुण ने भी १२वी के बाद पढाई छोड़ घर का खर्च संभल लिया था। नौकरी पर लग गया था वो भी।
हालॉकि राजेश और इरा के कहने पर distance learning से BBA कर रहा था।
करोडो में खेले हुए जब पाई पाई मोहताज हो जाते हो - ऐसे कितने घर देखे थे इरा ने और ये तो खुद रागेश की बहन का घर था। जब बन पड़ता , हर संभव मदद करते थे इरा और रागेश।
और अभी कुछ महीनो पहले ही तो दीदी ने ऑफिस जाने के लिए स्कूटी खरीदी थी और "वो स्कूटी चोरी हो गई! " - ये सोच के इरा का कालेज मुह को आ गया था।
रागेश की आवाज़ उसे वर्तमान में ले आई थी।
-" नहीं !"
- "तो ??"
- 'राजा खो गया !"
" WHAT !!!!!" इरा का मुह खुला का खुला रह गया !
- राजा खो गया ?
- कब ?
-कहाँ?
-कैसे ??
-"गोल बाजार में खो गया," रागेश झल्लाते हुए कहा !
-तो पुलिस में रिपोर्ट लिखाई की नहीं ? और खोया कब ?
- " दोपहर साढ़े तीन बजे !"
- और अभी सवा दस बज रहे है !! वो लड़का कहाँ होगा ! ओह माय गॉड ! वो भूखा प्यासा होगा !
- और हमें अभी बताया !! रुआंसी हो गई !
इरा को समझ नहीं आ रहा था वो गुस्सा करे या रोये !
"क्या हुआ मम्मा" अनुज ने पूछा !
"बेटा, राजा खो गया और सात घंटे हो गए , पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखाई , और तो और हमको भी नहीं बताया !, इरा बोली।
अंकित बोल नहीं सकता था।
उसे तो अपना नाम भी बोलना नहीं आता था , दीदी या वरुण का नाम क्या ख़ाक बताता! उसमे संवेदनाये भी नहीं थी। इमोशन्स भी तो नहीं जैसे थे उसमे ! उसे तो शायद अहसास भी नहीं रहा होगा की वो खो गया है !
इस सब में साढ़े दस बज चुके थे !
" रागेश, वरुण से पूछो वो कहाँ है ? हम जा रहे है अभी - चलो तुम अभी के अभी "
" वरुण बहुत गुस्से में है, इरा ! वो बात नहीं कर रहा ! "
-"वो साढ़े नौ बजे जब ऑफिस लौट कर आया तब अलका ने बताया की राजा ग़ुम हो गया है !"
- "मतलब किसी को नहीं ही पता की राजा गुम हुआ है अब तक ! और, वरुण और देर से आता तो ?? "
-"ओह माय गॉड - दीदी पागल हो गई है या उसे जान बुझ के छोड़ कर, खो कर आई है!!" इरा का गुस्सा फूट पड़ा, " वैसे भी वो कहती रहती है की उसे किसी ऐसे बोर्डिंग में दे आये जहाँ ऐसे बच्चे पालते है "
" चुप रहो तुम! - पागल तुम हो गई हो ! - जब डिस्टर्ब होती हो तो कुछ भी बकने लगती हो " रागेश का पारा चढ़ गया। बहुत परेशां थे रागेश, उन्हें अलका दीदी पर बहुत गुस्सा आ रहा था - वो इतनी बोडम कैसे हो सकती थी!
चलो अभी ! रागेश दहाड़े ,
- बेटा अनुज तुम दरवाजा बंद कर लो , पता नहीं कितनी देर लग जाए !"
- रुको , मैं दीदी को फ़ोन करती हूँ ,
-वरुण , उन्हें पुलिस स्टेशन ले गया है। हम वहीँ जा रहे है।
रागेश ने गाडी उठाई और दोनों चल दिए। रास्ते भर इरा के आँसू बहते रहे - ये सोच कर की अंकित जाने किस हाल में होगा। कहीं गलत हाथो में तो नहीं पड़ गया ?? आये दिन सावधान इंडिया में दिखाते थे की बच्चो को किस तरह गलत धंधो में धकेल जा रहा था - और ये तो कितना लाचार , कितना निरीह सा था !
- पूछो कौन से पुलिस स्टेशन आना है ? रागेश ने इरा से कहा।
- हाँ
-दीदी को फ़ोन जोड़ने पर उन्होंने पुलिस स्टेशन का पता बताया। अगले १५ मिनट में इरा और रागेश पुलिस स्टेशन के बहार थे।
गाडी के रुकते ही इरा पुलिस स्टेशन की ओर लपकी।
चौक में था ये स्टेशन। ११०० वर्ग स्क्वायर फ़ीट में फैला था . सामने ही बड़ा हॉल था। इरा ने नज़र दौड़ाई - दीदी या वरुण दिखे नहीं उसे। रागेश भी पीछे आ गए थे अब तक।
अचानक दाहिने तरफ के कमरे नुमा जगह में दीदी पुलिस वाले को शायद रेपर्ट लिखा रही थी।
इरा ने अलका दीदी को देखा। उससे करीब तीन साल बड़ी थीं वो। थकी हुई , टूटी हुई सी , चेहरे पर आँसुओ की धार से लकीरे बनी थी। अस्त - व्यस्त सी।
वरुण आया अचानक दूसरे कमरे से ,
- मिला ?? कुछ पता चला राजा का ?
- नहीं मामाजी , मम्मी रिपोर्ट लिखवा रही है ! - वरुण बोला।
सामने से एक PSI आया , बोला - क्या बच्चा ९ साल के करीब का है , दुबला सा ??
- हाँ हाँ ! तीनो एक बोले !
-उसे गाल पर एक बड़ा सा दाग है ?
- हाँ वही है , इस्पेक्टर साहब ! वरुण बोला !
-कहाँ है वो ? राजेश बेसब्री से पूछा।
- वो लाल गेट पुलिस चौकी में है अभी - आप लोग वहीँ चले जाइये।
इरा दौड़ी , "दीदी , राजा मिल गया है !! चलिए - लाल गेट पुलिस चौकी में है।, चलिए !!"
-वरुण तुम अलका को लेकर आओ, मैं और मामीजी पहुँचते है - राजेश ने कहा।
वरुण अपनी स्कूटी से गलत गली में ले मुडा। राजेश चिल्लाये - वहां नहीं , इस तरफ जाना है ! लाल गेट पुलिस चौकी इधर है वरुण!
- इट्स ओके रागेश , राजा मिल गया है ! इरा धीरे से बोली थी।
छोटी सी पुलिस चौकी थी - कंजस्टेड सी। एक पतला सा दालान था L आकर का - पुराने शहर में थी ये चौकी इसलिए।
सीधी लपक कर चढ़े सभी। वरुण सबसे पहले दौड़ा !
एक बहुत ही पुराने , धँसे हुए से गंदे मटमैले सोफे पर राजा बैठा था।
वरुण लिपट गया राजा से
राजा - कैसा है ?
इरा भर सी गई थी। कुछ बोल नहीं पाई। सब के सामने रोना नहीं चाहती थी , मुठिया भींच ली अपनी , और राजा का सर सहलाया।
दीदी नहीं गई राजा के पास। एक भी बार गले नहीं लगाया उसे। एक भी बार नहीं कहा - कैसा राजा , और तो और हाथ भी नहीं फेरा सर पर !
वो पुलिस स्टेशन खस्ता हाल में था - दो टेबल थे। पीछे के टेबल के सामने डी तीन कुर्सियां रखी थी। दो ढाढ़ी सी रखे हुए (मुसलमान से जान पड़ते आदमी थे ) दो तीन कांस्टेबल (कौन जाने किस पोस्ट पर थे ) बैठे थे।
राजा के पास एक औरत और एक आदमी भी थे।
इरा ने पूछा कुछ खाया इसने ?
- हाँ , हम लोग इसे खिला पिला रहे है शाम से , पुलिस वालो ने कहा।
शायद पीछे और साइड में और कमरे थे , वहां से शायद इंस्पेक्टर थे वो , तीन सितारे लगे थे वर्दी में , आया।
इरा और राजेश को देख कर बोला -" कैसे माँ बाप है आप? आप का लड़का ४ बजे से है यहाँ है , आप अब आ रहे हो ? शर्म नहीं आती आप लोगो को ! "
रागेश भड़क गए - मैं नहीं हूँ इसका पिता , ये मेरी बहन का बेटा है !
दीदी सामने आई , बोली - इंस्पेक्टर साहब इनको कुछ मत कहो , मैं माँ हूँ इसकी - मुझे डाँटिए !
- ऐसे कैसे खो गया बच्चा ? अभी तक आपको याद भी नहीं आया था। हमने तो चार बजे ही पुलिस कण्ट्रोल रूम में मैसेज भेज दिया था की कोई ऐसा बच्चा मिला है।
- मैं अपने तरीके से खोज रही थी इंस्पेक्टर साहब , मैं उसे गोल बाजार में दूकान दूकान ढूंढती रही , जब नहीं मिला तो मैं घर लौट गई। " दीदी ने थकी, टूटी आवाज़ में जवाब दिया।
-इधर आइये आप। प्रूफ क्या है की आप ही उसकी माँ है ?
- प्रूफ इलेक्शन कार्ड है , ड्राइविंग लाइसेंस है साहब !
- नहीं , ये नहीं , आपका ही बेटा है उसका प्रूफ दीजिये।
- एक मिनट इंस्पेक्टर साहब , मेरे पास फॅमिली pic है - वरुण ने अपना फ़ोन दिखाया।
हाँ , मेरे पास भी रक्षाबंधन के pics है सर , इरा ने अपने फ़ोन में अंकित के साथ के फोटो दिखाए।
और फिर तो अगले दो -तीन घंटे , दीदी से बयां लिया , वरुण गया घर कागज़ात लाने , मगर इस दौरान राजा घूमता रहा पुलिस वालो की फाइलो के बीच , कुर्सियों के बीच, बीच बीच में ख़ुशी से चिल्लाता हुआ, दौड़ता रहा।
वो पिछेले ८ घंटो से इन पुलिस वालो के साथ रहा , उसे तो अहसास भी नहीं था , की वो खो गया था , बिछड़ गया था अपनी माँ से ,भाई से और सब से। अहसास नहीं था की किस्मत उस पर कितनी मेहरबान थी की वो किसी नेक आदमी को मिला था। वो फरिश्ता जो उसे पुलिस स्टेशन तक छोड़ गया था। उसे कहाँ अहसास था की वो गुजरात में था इसलिए गलत हाथो में शायद जाने से बच गया था।
बस वो तो वरुण को देख खुश हो गया था। उसे तो यह भी अहसास नहीं था - की मिलने के बाद उसकी माँ ने उसे न गले लगाया न सर पे हाथ फेरा था।
वो तो पुरे वक़्त बस सुज़ुका - नोबिता - डोरेमोन जैसे टूटे फूटे शादाब दोहराता रहा था।
उसे शायद नहीं पता था किसी नोबिता, डोरेमोन और सुज़ुका ने उसको एक नई ज़िन्दगी दी थी।
सब कुछ ख़त्म होते होते रात के १-३० जितने हो गए थे। इरा ,रागेश ,वरुण और अलका दीदी अंकित को ले घर जा रहे थे। वरुण ने अंकित को स्कूटी पर अपनी सीट की आगे बिठाया था। दीदी से बहुत नाराज़ था वो - अंकित को फिर दीदी के पास नहीं छोड़ना चाहता था।
इरा सोचती रही रास्ते भर - शायद नवरात्री के दिनों में भरे बाजार में राजा का हाथ छूट जाना संजोग था , शायद दीदी का सात घंटे तक राजा का गुम होना किसी को न बताना संजोग ही था ! राजा के मिलने के बाद उसे देख न लिपटना , न सर पर हाथ फेरना शायद एक संजोग ही था।
- राजा मिल गया था अब ! कोई मायने नहीं थे अब इन खयालो के !!
ठीक है , ठीक है । कितनी बाते करते हो खाते वक़्त " इरा ने प्यार से झिड़क दिया अनुज को।
इरा खा चुकी थी, रागेश और अनुज अभी ही खा रहे थे।
रात सवा दस बजे थे उस वक़्त।
तनीषा और अनुज के स्कूल में उन दिनों दशहरे की छुटिया चल रही थी, इसलिए खाने पर देर हो ही जाती थी।
अचानक रागेश का फ़ोन बज उठा। रागेश ने फ़ोन उठाया।
- ओह ...... ! अच्छा ..... ,
- कैसे ??? .........
- कब ? .........
- कहाँ ?
-अच्छा ठीक है , ढूंढ लो फिर बताना " यह कहकर रागेश ने फ़ोन रखा और खाना खाने लगे।
"किसका फ़ोन था ? , इरा ने पूछा।
" वरुण का !"
"क्या खो गया , क्या उनकी स्कूटी चोरी हो गयी ? " इरा ने एक ही सांस पूछ डाला।
वरुण, इरा का भतीजा था १९ साल का। इरा की ननद अलका, अपने दो बेटों के साथ इरा के घर से थोड़ी दूर एक सोसाइटी में रहते थे।
अलका दीदी, रागेश से एक साल बड़ी थी। दीदी , रागेश और इरा के ससुर इस शहर में करीब १९९७ में बिहार से आये थे और फिर यहीं बस गए थे। दीदी ने हालाँकि अंतरजातीय विवाह किया था मगर यहीं इस शहर में आकर किया था । ये इरा की शादी के बहुत पहले की बात है।
जब इरा और रागेश की शादी हुई तब तक तो ससुर जी भी नहीं रहे थे और दीदी के गोद में वरुण था - करीब तीन साल का। वरुण बहुत जुड़ा हुआ था इरा से।
फिर तो इतने सालो में बहुत कुछ हो गया था - दीदी और जीजा जी ने घर खरीद लिया था - और जीजा जी वरुण से आठ साल छोटा अंकित दीदी की गोद में छोड़ कर जाने कहाँ चले गए - हमेशा के लिए। कभी लौट कर नहीं आये। आज उस बात को करीब ९ साल हो गए थे।
और छोड़ा भी तो क्या - लाखो का क़र्ज़ , घर की किश्ते न भरकर डिफाल्टर बना गए थे दीदी को ! ये कहाँ कम था - अंकित, जो इरा की तनीषा से एक साल बड़ा था - severely autistic था। कितने नाज़ से लाई थी वो अंकित को इस दुनिया में। बहुत पैसा था जीजाजी के पास, उन दिनों! इसीलिए तो अंकित को घर में प्यार से राजा बुलाने लगे थे सब। करोडो का मालिक - राजा !
Courtsey Internet |
हालॉकि राजेश और इरा के कहने पर distance learning से BBA कर रहा था।
करोडो में खेले हुए जब पाई पाई मोहताज हो जाते हो - ऐसे कितने घर देखे थे इरा ने और ये तो खुद रागेश की बहन का घर था। जब बन पड़ता , हर संभव मदद करते थे इरा और रागेश।
और अभी कुछ महीनो पहले ही तो दीदी ने ऑफिस जाने के लिए स्कूटी खरीदी थी और "वो स्कूटी चोरी हो गई! " - ये सोच के इरा का कालेज मुह को आ गया था।
रागेश की आवाज़ उसे वर्तमान में ले आई थी।
-" नहीं !"
- "तो ??"
- 'राजा खो गया !"
" WHAT !!!!!" इरा का मुह खुला का खुला रह गया !
- राजा खो गया ?
- कब ?
-कहाँ?
-कैसे ??
-"गोल बाजार में खो गया," रागेश झल्लाते हुए कहा !
-तो पुलिस में रिपोर्ट लिखाई की नहीं ? और खोया कब ?
- " दोपहर साढ़े तीन बजे !"
- और अभी सवा दस बज रहे है !! वो लड़का कहाँ होगा ! ओह माय गॉड ! वो भूखा प्यासा होगा !
- और हमें अभी बताया !! रुआंसी हो गई !
इरा को समझ नहीं आ रहा था वो गुस्सा करे या रोये !
"क्या हुआ मम्मा" अनुज ने पूछा !
"बेटा, राजा खो गया और सात घंटे हो गए , पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखाई , और तो और हमको भी नहीं बताया !, इरा बोली।
अंकित बोल नहीं सकता था।
उसे तो अपना नाम भी बोलना नहीं आता था , दीदी या वरुण का नाम क्या ख़ाक बताता! उसमे संवेदनाये भी नहीं थी। इमोशन्स भी तो नहीं जैसे थे उसमे ! उसे तो शायद अहसास भी नहीं रहा होगा की वो खो गया है !
इस सब में साढ़े दस बज चुके थे !
" रागेश, वरुण से पूछो वो कहाँ है ? हम जा रहे है अभी - चलो तुम अभी के अभी "
" वरुण बहुत गुस्से में है, इरा ! वो बात नहीं कर रहा ! "
-"वो साढ़े नौ बजे जब ऑफिस लौट कर आया तब अलका ने बताया की राजा ग़ुम हो गया है !"
- "मतलब किसी को नहीं ही पता की राजा गुम हुआ है अब तक ! और, वरुण और देर से आता तो ?? "
-"ओह माय गॉड - दीदी पागल हो गई है या उसे जान बुझ के छोड़ कर, खो कर आई है!!" इरा का गुस्सा फूट पड़ा, " वैसे भी वो कहती रहती है की उसे किसी ऐसे बोर्डिंग में दे आये जहाँ ऐसे बच्चे पालते है "
" चुप रहो तुम! - पागल तुम हो गई हो ! - जब डिस्टर्ब होती हो तो कुछ भी बकने लगती हो " रागेश का पारा चढ़ गया। बहुत परेशां थे रागेश, उन्हें अलका दीदी पर बहुत गुस्सा आ रहा था - वो इतनी बोडम कैसे हो सकती थी!
चलो अभी ! रागेश दहाड़े ,
- बेटा अनुज तुम दरवाजा बंद कर लो , पता नहीं कितनी देर लग जाए !"
- रुको , मैं दीदी को फ़ोन करती हूँ ,
-वरुण , उन्हें पुलिस स्टेशन ले गया है। हम वहीँ जा रहे है।
रागेश ने गाडी उठाई और दोनों चल दिए। रास्ते भर इरा के आँसू बहते रहे - ये सोच कर की अंकित जाने किस हाल में होगा। कहीं गलत हाथो में तो नहीं पड़ गया ?? आये दिन सावधान इंडिया में दिखाते थे की बच्चो को किस तरह गलत धंधो में धकेल जा रहा था - और ये तो कितना लाचार , कितना निरीह सा था !
- पूछो कौन से पुलिस स्टेशन आना है ? रागेश ने इरा से कहा।
- हाँ
-दीदी को फ़ोन जोड़ने पर उन्होंने पुलिस स्टेशन का पता बताया। अगले १५ मिनट में इरा और रागेश पुलिस स्टेशन के बहार थे।
गाडी के रुकते ही इरा पुलिस स्टेशन की ओर लपकी।
चौक में था ये स्टेशन। ११०० वर्ग स्क्वायर फ़ीट में फैला था . सामने ही बड़ा हॉल था। इरा ने नज़र दौड़ाई - दीदी या वरुण दिखे नहीं उसे। रागेश भी पीछे आ गए थे अब तक।
अचानक दाहिने तरफ के कमरे नुमा जगह में दीदी पुलिस वाले को शायद रेपर्ट लिखा रही थी।
इरा ने अलका दीदी को देखा। उससे करीब तीन साल बड़ी थीं वो। थकी हुई , टूटी हुई सी , चेहरे पर आँसुओ की धार से लकीरे बनी थी। अस्त - व्यस्त सी।
वरुण आया अचानक दूसरे कमरे से ,
- मिला ?? कुछ पता चला राजा का ?
- नहीं मामाजी , मम्मी रिपोर्ट लिखवा रही है ! - वरुण बोला।
सामने से एक PSI आया , बोला - क्या बच्चा ९ साल के करीब का है , दुबला सा ??
- हाँ हाँ ! तीनो एक बोले !
-उसे गाल पर एक बड़ा सा दाग है ?
- हाँ वही है , इस्पेक्टर साहब ! वरुण बोला !
-कहाँ है वो ? राजेश बेसब्री से पूछा।
- वो लाल गेट पुलिस चौकी में है अभी - आप लोग वहीँ चले जाइये।
इरा दौड़ी , "दीदी , राजा मिल गया है !! चलिए - लाल गेट पुलिस चौकी में है।, चलिए !!"
-वरुण तुम अलका को लेकर आओ, मैं और मामीजी पहुँचते है - राजेश ने कहा।
वरुण अपनी स्कूटी से गलत गली में ले मुडा। राजेश चिल्लाये - वहां नहीं , इस तरफ जाना है ! लाल गेट पुलिस चौकी इधर है वरुण!
- इट्स ओके रागेश , राजा मिल गया है ! इरा धीरे से बोली थी।
छोटी सी पुलिस चौकी थी - कंजस्टेड सी। एक पतला सा दालान था L आकर का - पुराने शहर में थी ये चौकी इसलिए।
सीधी लपक कर चढ़े सभी। वरुण सबसे पहले दौड़ा !
एक बहुत ही पुराने , धँसे हुए से गंदे मटमैले सोफे पर राजा बैठा था।
वरुण लिपट गया राजा से
राजा - कैसा है ?
इरा भर सी गई थी। कुछ बोल नहीं पाई। सब के सामने रोना नहीं चाहती थी , मुठिया भींच ली अपनी , और राजा का सर सहलाया।
दीदी नहीं गई राजा के पास। एक भी बार गले नहीं लगाया उसे। एक भी बार नहीं कहा - कैसा राजा , और तो और हाथ भी नहीं फेरा सर पर !
वो पुलिस स्टेशन खस्ता हाल में था - दो टेबल थे। पीछे के टेबल के सामने डी तीन कुर्सियां रखी थी। दो ढाढ़ी सी रखे हुए (मुसलमान से जान पड़ते आदमी थे ) दो तीन कांस्टेबल (कौन जाने किस पोस्ट पर थे ) बैठे थे।
राजा के पास एक औरत और एक आदमी भी थे।
इरा ने पूछा कुछ खाया इसने ?
- हाँ , हम लोग इसे खिला पिला रहे है शाम से , पुलिस वालो ने कहा।
शायद पीछे और साइड में और कमरे थे , वहां से शायद इंस्पेक्टर थे वो , तीन सितारे लगे थे वर्दी में , आया।
इरा और राजेश को देख कर बोला -" कैसे माँ बाप है आप? आप का लड़का ४ बजे से है यहाँ है , आप अब आ रहे हो ? शर्म नहीं आती आप लोगो को ! "
रागेश भड़क गए - मैं नहीं हूँ इसका पिता , ये मेरी बहन का बेटा है !
दीदी सामने आई , बोली - इंस्पेक्टर साहब इनको कुछ मत कहो , मैं माँ हूँ इसकी - मुझे डाँटिए !
- ऐसे कैसे खो गया बच्चा ? अभी तक आपको याद भी नहीं आया था। हमने तो चार बजे ही पुलिस कण्ट्रोल रूम में मैसेज भेज दिया था की कोई ऐसा बच्चा मिला है।
- मैं अपने तरीके से खोज रही थी इंस्पेक्टर साहब , मैं उसे गोल बाजार में दूकान दूकान ढूंढती रही , जब नहीं मिला तो मैं घर लौट गई। " दीदी ने थकी, टूटी आवाज़ में जवाब दिया।
-इधर आइये आप। प्रूफ क्या है की आप ही उसकी माँ है ?
- प्रूफ इलेक्शन कार्ड है , ड्राइविंग लाइसेंस है साहब !
- नहीं , ये नहीं , आपका ही बेटा है उसका प्रूफ दीजिये।
- एक मिनट इंस्पेक्टर साहब , मेरे पास फॅमिली pic है - वरुण ने अपना फ़ोन दिखाया।
हाँ , मेरे पास भी रक्षाबंधन के pics है सर , इरा ने अपने फ़ोन में अंकित के साथ के फोटो दिखाए।
और फिर तो अगले दो -तीन घंटे , दीदी से बयां लिया , वरुण गया घर कागज़ात लाने , मगर इस दौरान राजा घूमता रहा पुलिस वालो की फाइलो के बीच , कुर्सियों के बीच, बीच बीच में ख़ुशी से चिल्लाता हुआ, दौड़ता रहा।
वो पिछेले ८ घंटो से इन पुलिस वालो के साथ रहा , उसे तो अहसास भी नहीं था , की वो खो गया था , बिछड़ गया था अपनी माँ से ,भाई से और सब से। अहसास नहीं था की किस्मत उस पर कितनी मेहरबान थी की वो किसी नेक आदमी को मिला था। वो फरिश्ता जो उसे पुलिस स्टेशन तक छोड़ गया था। उसे कहाँ अहसास था की वो गुजरात में था इसलिए गलत हाथो में शायद जाने से बच गया था।
बस वो तो वरुण को देख खुश हो गया था। उसे तो यह भी अहसास नहीं था - की मिलने के बाद उसकी माँ ने उसे न गले लगाया न सर पे हाथ फेरा था।
वो तो पुरे वक़्त बस सुज़ुका - नोबिता - डोरेमोन जैसे टूटे फूटे शादाब दोहराता रहा था।
उसे शायद नहीं पता था किसी नोबिता, डोरेमोन और सुज़ुका ने उसको एक नई ज़िन्दगी दी थी।
सब कुछ ख़त्म होते होते रात के १-३० जितने हो गए थे। इरा ,रागेश ,वरुण और अलका दीदी अंकित को ले घर जा रहे थे। वरुण ने अंकित को स्कूटी पर अपनी सीट की आगे बिठाया था। दीदी से बहुत नाराज़ था वो - अंकित को फिर दीदी के पास नहीं छोड़ना चाहता था।
इरा सोचती रही रास्ते भर - शायद नवरात्री के दिनों में भरे बाजार में राजा का हाथ छूट जाना संजोग था , शायद दीदी का सात घंटे तक राजा का गुम होना किसी को न बताना संजोग ही था ! राजा के मिलने के बाद उसे देख न लिपटना , न सर पर हाथ फेरना शायद एक संजोग ही था।
- राजा मिल गया था अब ! कोई मायने नहीं थे अब इन खयालो के !!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-10-2016) के चर्चा मंच "करवा चौथ की फिर राम-राम" {चर्चा अंक- 2502} पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'