उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 22 [ बह्र]
[[Disclaimer Clause : वही जो क़िस्त 1 में है]
आप जानते हैं कि उर्दू शायरी में 19-बहूर [ बह्र की जमा] प्रचलित हैं जो निम्न है
सालिम बहर
1 बह्र-ए-मुतक़ारिब
2 बह्र-ए-मुतदारिक
3 बह्र-ए-हज़ज
4 बह्र-ए-रमल
5 बह्र-ए-रजज़
6 बह्र-ए-वाफ़िर
7 बह्र-ए-कामिल
मुरक़्क़ब बहर
8 बह्र-ए-तवील
9 बह्र-ए-मदीद
10 बह्र-ए-वसीत
11 बह्र-ए-मुन्सरिह
12 बह्र-ए-मुक्तज़िब
13 बह्र-ए-मुज़ारि’अ
14 बह्र-ए-ख़फ़ीफ़
15 बह्र-ए-मुतजस
16 बह्र-ए-सरी’अ
17 बह्र--ए-जदीद
18 बह्र-ए-क़रीब
19 बह्र-ए-मुशाकिल
-----
उर्दू में बह्रें ,फ़ारसी और अरबी जुबान से होते हुए आई है जैसे बहर-ए-कामिल और बहर-ए-वाफ़िर अरबी की बह्रें है
बहूर के बारे में चन्द बुनियादी बातों पर बातें करना ग़ैर मुनासिब न होगा।
बह्र 1 से लेकर 7 तक सालिम बह्र कहलाती है
बह्र 8 से लेकर 19 तक मुरक़्क़ब बह्र कहलाती है
ये मुरक़्क़ब बहर दो या दो से अधिक [कभी कभी 3 ] रुक्न से मिल कर बनती है । इनमें से कुछ बह्रें तो अपने मुसद्दस शक्ल में ही प्रयोग मे लाई जाती हैं और कुछ मुज़ाहिफ़ शकल में ।इन सबका विवेचन अलग से individually अलहदा अल्हदा आगे करेंगे कि ये मुरक़्क़ब बहर बनती कैसे हैं
सालिम बहर =ऐसी बहर जिसमें सिर्फ़ सालिम रुक्न का ही इस्तेमाल होता है।यानी सालिम रुक्न [ बिना कोई काँट-छाँट या कतर-ब्योंत किए या बिना किसी ज़िहाफ़ के ] मुसल्लम प्रयोग करते है ।आप जानते हैं कि सालिम रुक्न की तादाद 8-है और हर रुक्न किसी न किसी बहर की बुनियादी रुक्न है जैसे
बहर-ए-मुतक़ारिब का बुनियादी रुक्न है -- फ़ऊलुन [12 2]--- वतद1+सबब1
बहर-ए-मुतदारिक का बुनियादी रुक्न है---फ़ाइलुन [2 12] --------सबब1+ वतद1
बहर-ए-हज़ज का बुनियादी रुक्न है----मफ़ाईलुन [12 2 2]--------वतद1+सबब1+सबब1
बहर-ए-रमल का बुनियादी रुक्न है.........फ़ा इला तुन [ 2 12 2]--------सबब1+वतद1+सबब1
बहर-ए-रजज़ का बुनियादी रुक्न है ---मुस तफ़् इलुन्[ 2 2 1 2]------सबब1+सबब1+वतद1
बहर-ए-वाफ़िर का बुनियादी रुक्न है---मफ़ा इ ल तुन् [ 1 2 1 1 2]----वतद1+सबब2+सबब1
बहर-ए-कामिल का बुनियादी रुक्न है----मु त फ़ा इ लुन् [1 1 2 12 ]-----सबब2+सबब1+वतद1
[हमने यहाँ हम वतद और सबब से कुछ दिलचस्प बातें देखेंगे]
आप जानते हैं कि सालिम रुक्न की तादाद तो 8 है मगर सालिम बहर 7-ही क्यों बनी ? 8-क्यों नही बनी ?
जवाब सीधा है। वो 8-वाँ रुक्न है ’मफ़ ऊ लातु [2 2 2 1] बह्र-ए-मुक्तज़िब का ।-ये सालिम रुक्न तो है मगर इस से सालिम बह्र नहीं बन सकती कारण कि इस रुक्न के अन्त में -तु- है जो मुतहर्रिक है [यानी हरकत लगा हुआ है] और उर्दू ज़बान में कोई भी आख़िरी लफ़्ज़ मुतहर्रिक नहीं होता [साकिन होता है] ख़ासतौर से कोई भी शे’र या मिसरा का [आख़िरी हर्फ़ मय हरकत नहीं होता । अगर इस से सालिम रुक्न बनाया भी जाए तो बज़ाहिर आखिर में =मफ़ऊलातु -आयेगा यानी आखिरी हर्फ़ मय हरकत -तु-होगा जो शे’र में जाइज़ नहीं है। तो फिर? कुछ नहीं इस पर कुछ ज़िहाफ़ का अमल कर के -तु- को साकिन कर के प्रयोग करेंगे ।तब उस स्थिति में फिर यह सालिम नहीं कहलायेगा बल्कि मुज़ाहिफ़ कहलायेगा
अब हम वतद और सबब से कुछ बातें देखते हैं-
वतद1 --को आप वतद-ए-मज्मुआ समझें ,[लिखने की तवालत से बचने के लिए संक्षेप में लिख दिया]
सबब1---को सबब-ए-ख़फ़ीफ़ समझें [-तदैव-]
सबब2 ---को सबब-ए-सक़ील समझे [-तदैव-]
इससे pictorially समझने में आसानी होगी
अच्छा ,वतद और सबब से एक बात याद आ गई ।कहीं पढ़ा था कि -सबब- का एक लुग़वी माने[शब्द कोशीय अर्थ] ’रस्सी’ और ’वतद’ माने ’खूँटा’ भी होता है
इल्मे-ए-अरूज़ में इस रस्सी -खूँटा का क्या मानी ? हम नहीं समझे ? शायद आप भी नहीं समझें होंगे ।चलिए समझने की एक कोशिश करते हैं
वतद माने खूँटा ... आप ऊपर के अर्कान देखे सबमें एक वतद आ रहा है-किसी खूँटे की तरह और सबब दो रस्सी जो वतद [खूंटा] से बँधा हुआ लग रहा है -कभी बायें ,कभी दायें कभी ,कभी आगे कभी पीछे आ रहा है और बहर बनती जा रही है ।हाँला कि क्लासिकी अरूज़ में ये बहर तो दायरे [वृत] से निकलती है ।यहाँ भी किसी वृत के परिधि पर 1 ....2......2......2...लिख लें और एक एक स्पेस छोड़ कर गिर्दान करते चलें तो आप क ये सुबाई [7-हर्फ़ी] बह्रें मिलती चलेंगी } इसे अरूज़ की भाषा में ;दायरा’ कहते हैं । यहाँ पर विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं है ।
कहते हैं -जो दो 5-हर्फ़ी बह्रें [ मुतक़ारिब और मुतदारिक ]हैं उनका इज़ाद बाद में हुआ और वो भी हिन्दी के गीत /छन्द शास्त्र से हुआ है । हमारे यहाँ हिन्दी के छन्द में दशाक्षरी सूत्र -यमाताराजभानसलगा [यानी यगण,,,मगण,,,,..तगण....] का प्रयोग किया जाता है और इनका भी एक निश्चित वजन होता है जैसे
यगण =यमाता = 1 2 2 ये तो उर्दू में फ़ऊलुन [1 2 2] है जो बहर-ए-मुतकारिब का बुनियादी रुक्न है
रगण =राजभा = 2 1 2 ये तो उर्दू में फ़ाइलुन [2 1 2] है जो बहर-ए-मुतदारिक का बुनियादी रुक्न है
एक दिलचस्प बात और..... इन दोनों रुक्न में इत्तिफ़ाक़न मुतदारिक का इज़ाद पहले हुआ और मुतक़ारिब का बाद में ।
ख़ैर...हमारे कुछ ब्लागर साथी इस दशाक्षरी सूत्र से उर्दू अर्कान के समन्वय पर -एक मंच पर लाने का काम कर रहे हैं।
बहर-ए-कामिल और बहर-ए-वाफ़िर क्या एक दूसरे के बर अक्स नहीं लगते हैं
एक दिलचस्प बात और ....ये अर्कान ऐसे Design किए गए है कि .हर एक रुक्न cyclically एक दूसरे से बरामद की जा सकती है जैसे
122 ----122...122....122..... ये बहर-ए-मुतक़ारिब का वज़न है
अब बस दो space आगे खिसका दीजिये फिर देखिए क्या होता है
212 ----212----212---212 ये बहर-मुतदारिक का वज़न आ गया
इसी तरह आप और भी अर्कान पर अमल कर के देख सकते हैं
मुरब्ब: = अगर किसी शे’र [ दोनो मिसरो को मिला कर ]में 4-रुक्न [यानी एक मिसरा में 2-रुक्न] आते हैं तो उसे ’ मुरब्ब:’ कहते हैं
मुसद्दस =अगर किसी शे’र [ दोनो मिसरो को मिला कर ]में 6-रुक्न[यानी एक मिसरा में 3-रुक्न ] आते हैं तो उसे ’ मुसद्दस’ कहते हैं
मुसम्मन =अगर किसी शे’र [ दोनो मिसरो को मिला कर ]में 8 -रुक्न [यानी एक मिसरा मे 4-रुक्न ]आते हैं तो उसे ’ मुसम्मन ’कहते हैं
अगर किसी शे’र मे 5-रुक्न/7-रुक्न/9-रुक्न आए तो उसका क्या नाम होगा ??
आ ही नहीं सकता कारण कि शे’र में रुक्न जब भी आयेगा तो ’सम’ संख्या में ही आयेगा 4-6-8- के शकल में । किसी शे’र में ’मिसरा’ भी तो 2-ही [सम] होते हैं ।हा हा हा हा ।
हाँ एक स्थिति ज़रूर आ सकती है कि किसी शे’र में 8-12-16 रुक्न ज़रूर आ सकता है [यानी मिसरा में 4-6-8 रुक्न हों] तो इसे भी क्रमश: मुरब्ब: ...मुसद्दस....मुसम्मन ही कहेंगे बस आगे .मुजाइफ़’ लफ़्ज़ बढ़ा देंगे [ मुजाअफ़ माने ही ’दो गुना करना] होता है और नाम होगा ’मुज़ाअफ़ मुसद्दस’.....मुज़ाअफ़.मुसम्मन’.....। कभी कभी इसे 12-रुक्नी या 16-रुक्नी शे’र भी कहते है
एक सवाल
8-रुक्नी] शे’र को क्या कहेंगे ? मुसम्मन या ’मुज़ाअफ़ मुरब्ब: ???
। ज़रा सोचियेगा इस पर ।
एक बात और
ये सभी 19-बहूर एक समान न तो मक़्बूल है और न ही लय पूर्ण है ,और न ही सभी संगीतमय ही है।न ही कोई शायर इन सभी बहूर में शायरी ही करता है } वो तो बस चन्द मक़्बूल बह्र में ही शायरी करता है
अच्छी शायरी के लिए सिर्फ़ वज़न ,,बहर...ज़िहाफ़,, रुक्न ,,,..ही काफ़ी नहीं है । अरूज़ की जानकारी तो बस आधी बात है ।बाक़ी आधी बात तो शे’रिअत ग़ज़लियत तग़ज़्ज़ुल भाव अर्थ कथन में है जो शायरी को बुलन्दी देता है
अब अगली क़िस्त में इन तमाम बहूर पर One by One एक एक कर के चर्चा करते चलेंगे
--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं और बा करम मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई भी फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।
अभी नस्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....
[नोट् :- पिछले अक़सात के आलेख आप मेरे ब्लाग पर भी देख सकते हैं
www.urdu-se-hindi.blogspot.com
or
www.urdusehindi.blogspot.com
-आनन्द.पाठक-
0880092 7181
[[Disclaimer Clause : वही जो क़िस्त 1 में है]
आप जानते हैं कि उर्दू शायरी में 19-बहूर [ बह्र की जमा] प्रचलित हैं जो निम्न है
सालिम बहर
1 बह्र-ए-मुतक़ारिब
2 बह्र-ए-मुतदारिक
3 बह्र-ए-हज़ज
4 बह्र-ए-रमल
5 बह्र-ए-रजज़
6 बह्र-ए-वाफ़िर
7 बह्र-ए-कामिल
मुरक़्क़ब बहर
8 बह्र-ए-तवील
9 बह्र-ए-मदीद
10 बह्र-ए-वसीत
11 बह्र-ए-मुन्सरिह
12 बह्र-ए-मुक्तज़िब
13 बह्र-ए-मुज़ारि’अ
14 बह्र-ए-ख़फ़ीफ़
15 बह्र-ए-मुतजस
16 बह्र-ए-सरी’अ
17 बह्र--ए-जदीद
18 बह्र-ए-क़रीब
19 बह्र-ए-मुशाकिल
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उर्दू में बह्रें ,फ़ारसी और अरबी जुबान से होते हुए आई है जैसे बहर-ए-कामिल और बहर-ए-वाफ़िर अरबी की बह्रें है
बहूर के बारे में चन्द बुनियादी बातों पर बातें करना ग़ैर मुनासिब न होगा।
बह्र 1 से लेकर 7 तक सालिम बह्र कहलाती है
बह्र 8 से लेकर 19 तक मुरक़्क़ब बह्र कहलाती है
ये मुरक़्क़ब बहर दो या दो से अधिक [कभी कभी 3 ] रुक्न से मिल कर बनती है । इनमें से कुछ बह्रें तो अपने मुसद्दस शक्ल में ही प्रयोग मे लाई जाती हैं और कुछ मुज़ाहिफ़ शकल में ।इन सबका विवेचन अलग से individually अलहदा अल्हदा आगे करेंगे कि ये मुरक़्क़ब बहर बनती कैसे हैं
सालिम बहर =ऐसी बहर जिसमें सिर्फ़ सालिम रुक्न का ही इस्तेमाल होता है।यानी सालिम रुक्न [ बिना कोई काँट-छाँट या कतर-ब्योंत किए या बिना किसी ज़िहाफ़ के ] मुसल्लम प्रयोग करते है ।आप जानते हैं कि सालिम रुक्न की तादाद 8-है और हर रुक्न किसी न किसी बहर की बुनियादी रुक्न है जैसे
बहर-ए-मुतक़ारिब का बुनियादी रुक्न है -- फ़ऊलुन [12 2]--- वतद1+सबब1
बहर-ए-मुतदारिक का बुनियादी रुक्न है---फ़ाइलुन [2 12] --------सबब1+ वतद1
बहर-ए-हज़ज का बुनियादी रुक्न है----मफ़ाईलुन [12 2 2]--------वतद1+सबब1+सबब1
बहर-ए-रमल का बुनियादी रुक्न है.........फ़ा इला तुन [ 2 12 2]--------सबब1+वतद1+सबब1
बहर-ए-रजज़ का बुनियादी रुक्न है ---मुस तफ़् इलुन्[ 2 2 1 2]------सबब1+सबब1+वतद1
बहर-ए-वाफ़िर का बुनियादी रुक्न है---मफ़ा इ ल तुन् [ 1 2 1 1 2]----वतद1+सबब2+सबब1
बहर-ए-कामिल का बुनियादी रुक्न है----मु त फ़ा इ लुन् [1 1 2 12 ]-----सबब2+सबब1+वतद1
[हमने यहाँ हम वतद और सबब से कुछ दिलचस्प बातें देखेंगे]
आप जानते हैं कि सालिम रुक्न की तादाद तो 8 है मगर सालिम बहर 7-ही क्यों बनी ? 8-क्यों नही बनी ?
जवाब सीधा है। वो 8-वाँ रुक्न है ’मफ़ ऊ लातु [2 2 2 1] बह्र-ए-मुक्तज़िब का ।-ये सालिम रुक्न तो है मगर इस से सालिम बह्र नहीं बन सकती कारण कि इस रुक्न के अन्त में -तु- है जो मुतहर्रिक है [यानी हरकत लगा हुआ है] और उर्दू ज़बान में कोई भी आख़िरी लफ़्ज़ मुतहर्रिक नहीं होता [साकिन होता है] ख़ासतौर से कोई भी शे’र या मिसरा का [आख़िरी हर्फ़ मय हरकत नहीं होता । अगर इस से सालिम रुक्न बनाया भी जाए तो बज़ाहिर आखिर में =मफ़ऊलातु -आयेगा यानी आखिरी हर्फ़ मय हरकत -तु-होगा जो शे’र में जाइज़ नहीं है। तो फिर? कुछ नहीं इस पर कुछ ज़िहाफ़ का अमल कर के -तु- को साकिन कर के प्रयोग करेंगे ।तब उस स्थिति में फिर यह सालिम नहीं कहलायेगा बल्कि मुज़ाहिफ़ कहलायेगा
अब हम वतद और सबब से कुछ बातें देखते हैं-
वतद1 --को आप वतद-ए-मज्मुआ समझें ,[लिखने की तवालत से बचने के लिए संक्षेप में लिख दिया]
सबब1---को सबब-ए-ख़फ़ीफ़ समझें [-तदैव-]
सबब2 ---को सबब-ए-सक़ील समझे [-तदैव-]
इससे pictorially समझने में आसानी होगी
अच्छा ,वतद और सबब से एक बात याद आ गई ।कहीं पढ़ा था कि -सबब- का एक लुग़वी माने[शब्द कोशीय अर्थ] ’रस्सी’ और ’वतद’ माने ’खूँटा’ भी होता है
इल्मे-ए-अरूज़ में इस रस्सी -खूँटा का क्या मानी ? हम नहीं समझे ? शायद आप भी नहीं समझें होंगे ।चलिए समझने की एक कोशिश करते हैं
वतद माने खूँटा ... आप ऊपर के अर्कान देखे सबमें एक वतद आ रहा है-किसी खूँटे की तरह और सबब दो रस्सी जो वतद [खूंटा] से बँधा हुआ लग रहा है -कभी बायें ,कभी दायें कभी ,कभी आगे कभी पीछे आ रहा है और बहर बनती जा रही है ।हाँला कि क्लासिकी अरूज़ में ये बहर तो दायरे [वृत] से निकलती है ।यहाँ भी किसी वृत के परिधि पर 1 ....2......2......2...लिख लें और एक एक स्पेस छोड़ कर गिर्दान करते चलें तो आप क ये सुबाई [7-हर्फ़ी] बह्रें मिलती चलेंगी } इसे अरूज़ की भाषा में ;दायरा’ कहते हैं । यहाँ पर विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं है ।
कहते हैं -जो दो 5-हर्फ़ी बह्रें [ मुतक़ारिब और मुतदारिक ]हैं उनका इज़ाद बाद में हुआ और वो भी हिन्दी के गीत /छन्द शास्त्र से हुआ है । हमारे यहाँ हिन्दी के छन्द में दशाक्षरी सूत्र -यमाताराजभानसलगा [यानी यगण,,,मगण,,,,..तगण....] का प्रयोग किया जाता है और इनका भी एक निश्चित वजन होता है जैसे
यगण =यमाता = 1 2 2 ये तो उर्दू में फ़ऊलुन [1 2 2] है जो बहर-ए-मुतकारिब का बुनियादी रुक्न है
रगण =राजभा = 2 1 2 ये तो उर्दू में फ़ाइलुन [2 1 2] है जो बहर-ए-मुतदारिक का बुनियादी रुक्न है
एक दिलचस्प बात और..... इन दोनों रुक्न में इत्तिफ़ाक़न मुतदारिक का इज़ाद पहले हुआ और मुतक़ारिब का बाद में ।
ख़ैर...हमारे कुछ ब्लागर साथी इस दशाक्षरी सूत्र से उर्दू अर्कान के समन्वय पर -एक मंच पर लाने का काम कर रहे हैं।
बहर-ए-कामिल और बहर-ए-वाफ़िर क्या एक दूसरे के बर अक्स नहीं लगते हैं
एक दिलचस्प बात और ....ये अर्कान ऐसे Design किए गए है कि .हर एक रुक्न cyclically एक दूसरे से बरामद की जा सकती है जैसे
122 ----122...122....122..... ये बहर-ए-मुतक़ारिब का वज़न है
अब बस दो space आगे खिसका दीजिये फिर देखिए क्या होता है
212 ----212----212---212 ये बहर-मुतदारिक का वज़न आ गया
इसी तरह आप और भी अर्कान पर अमल कर के देख सकते हैं
मुरब्ब: = अगर किसी शे’र [ दोनो मिसरो को मिला कर ]में 4-रुक्न [यानी एक मिसरा में 2-रुक्न] आते हैं तो उसे ’ मुरब्ब:’ कहते हैं
मुसद्दस =अगर किसी शे’र [ दोनो मिसरो को मिला कर ]में 6-रुक्न[यानी एक मिसरा में 3-रुक्न ] आते हैं तो उसे ’ मुसद्दस’ कहते हैं
मुसम्मन =अगर किसी शे’र [ दोनो मिसरो को मिला कर ]में 8 -रुक्न [यानी एक मिसरा मे 4-रुक्न ]आते हैं तो उसे ’ मुसम्मन ’कहते हैं
अगर किसी शे’र मे 5-रुक्न/7-रुक्न/9-रुक्न आए तो उसका क्या नाम होगा ??
आ ही नहीं सकता कारण कि शे’र में रुक्न जब भी आयेगा तो ’सम’ संख्या में ही आयेगा 4-6-8- के शकल में । किसी शे’र में ’मिसरा’ भी तो 2-ही [सम] होते हैं ।हा हा हा हा ।
हाँ एक स्थिति ज़रूर आ सकती है कि किसी शे’र में 8-12-16 रुक्न ज़रूर आ सकता है [यानी मिसरा में 4-6-8 रुक्न हों] तो इसे भी क्रमश: मुरब्ब: ...मुसद्दस....मुसम्मन ही कहेंगे बस आगे .मुजाइफ़’ लफ़्ज़ बढ़ा देंगे [ मुजाअफ़ माने ही ’दो गुना करना] होता है और नाम होगा ’मुज़ाअफ़ मुसद्दस’.....मुज़ाअफ़.मुसम्मन’.....। कभी कभी इसे 12-रुक्नी या 16-रुक्नी शे’र भी कहते है
एक सवाल
8-रुक्नी] शे’र को क्या कहेंगे ? मुसम्मन या ’मुज़ाअफ़ मुरब्ब: ???
। ज़रा सोचियेगा इस पर ।
एक बात और
ये सभी 19-बहूर एक समान न तो मक़्बूल है और न ही लय पूर्ण है ,और न ही सभी संगीतमय ही है।न ही कोई शायर इन सभी बहूर में शायरी ही करता है } वो तो बस चन्द मक़्बूल बह्र में ही शायरी करता है
अच्छी शायरी के लिए सिर्फ़ वज़न ,,बहर...ज़िहाफ़,, रुक्न ,,,..ही काफ़ी नहीं है । अरूज़ की जानकारी तो बस आधी बात है ।बाक़ी आधी बात तो शे’रिअत ग़ज़लियत तग़ज़्ज़ुल भाव अर्थ कथन में है जो शायरी को बुलन्दी देता है
अब अगली क़िस्त में इन तमाम बहूर पर One by One एक एक कर के चर्चा करते चलेंगे
--इस मंच पर और भी कई साहिब-ए-आलिम मौज़ूद हैं उनसे मेरी दस्तबस्ता [ हाथ जोड़ कर] गुज़ारिश है कि अगर कहीं कोई ग़लत बयानी या ग़लत ख़यालबन्दी हो गई हो तो निशान्दिही ज़रूर फ़र्मायें ताकि मैं ख़ुद को दुरुस्त कर सकूं और बा करम मेरी मज़ीद [अतिरिक्त] रहनुमाई भी फ़र्माये ।मम्नून-ओ-शुक्रगुज़ार रहूँगा।
अभी नस्र के कुछ बयां और भी हैं..........
ज़िहाफ़ात् के कुछ निशां और भी हैं.....
[नोट् :- पिछले अक़सात के आलेख आप मेरे ब्लाग पर भी देख सकते हैं
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or
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-आनन्द.पाठक-
0880092 7181
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