दया सभ्यता प्रेम समाहित जिसके बावन बरनों में
शरणागत होती भाषाएं जिसके पावन चरनों में
जिसने दो सौ साल सही है अंग्रेजों की दमनाई
धीरज फिर भी धारे रक्खा त्याग नहीं दी गुरताई
तुमको अब तक भान नहीं है हिन्दी की करूणाई का
जिसने सबको गले लगाया ममतारूपी माई का
लेकिन बातें चल निकली है नाहक हिन्दी भाषा है
मूरख और अचेतन जन की बोझिल सी परिभाषा है
किस भाषा में सहनशीलता है इतनी यह बतलाओ
सिद्ध करो उस भाषा को तुम या हिन्दी को अपनाओ
बहुत बढ़िया
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