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शनिवार, 28 दिसंबर 2019
शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019
चन्द माहिया
01
रंगोली आँगन की
देख रही राहें
छुप छुप कर साजन की
02
धोखा ही सही माना
अच्छा लगता है
तुम से धोखा खाना
03
औरों से रज़ामन्दी
महफ़िल में तेरी
मेरी ही ज़ुबाँबन्दी
04
माटी से बनाते हो
क्या मिलता है जब
माटी में मिलाते हो ?
05
सच,वो न नज़र आता
कोई है दिल में
जो राह दिखा जाता
-आनन्द.पाठक-
शनिवार, 21 दिसंबर 2019
एक ग़ज़ल : झूट इतना इस तरह बोला गया---
झूठ इतना इस तरह बोला गया
सच के सर इलजाम सब थोपा गया
झूठ वाले जश्न में डूबे रहे -
और सच के नाम पर रोया गया
वह तुम्हारी साज़िशें थी या वफ़ा
राज़ यह अबतक नहीं खोला गया
आइना क्यों देख कर घबरा गए
आप ही का अक्स था जो छा गया
कैसे कह दूँ तुम नहीं शामिल रहे
जब फ़ज़ा में ज़ह्र था घोला गया
बेबसी नाकामियों के नाम पर
ठीकरा सर और के फ़ोड़ा गया
हो गई ज़रख़ेज़ ’आनन’ तब ज़मीं
प्यार का इक पौध जब रोपा गया
-आनन्द.पाठक-
शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019
चन्द माहिया
01
कुछ याद तुम्हारी है
उस से ही दुनिया
आबाद हमारी है
02
जब तक कि सँभल पाता
राह-ए-उल्फ़त में
ठोकर हूँ नई खाता
03
लहराओ न यूँ आँचल
दिल का भरोसा क्या
हो जाए न फिर पागल
04
जीने का जरिया था
सूख गया वो भी
जो प्यार का दरिया था
05
गिरते न बिखरते हम
काश ! सफ़र में तुम
चलते जो साथ सनम
आनन्द.पाठक
बुधवार, 20 नवंबर 2019
है संघर्ष ही जीवन
नादां है बहुत
कोई समझाये दिल को
चाहता उड़ना आसमाँ में
है पड़ी पांव ज़ंजीर
कट चुके हैं पंख
फिर भी उड़ने की आस
..
नादां है बहुत
कोई समझाये दिल को
डगमगा रही नौका बीच भंवर
फिर भी लहरों से
जुझने को तैयार
परवाह नहीं डूबने की
मर मिटने को तैयार
नहीं मानता दिल यह समझाने से भी
जब तक है साँस, रहेगी आस तब तक
है संघर्ष ही जीवन
अंतिम क्षण आने तक
रेखा जोशी
Mujhe Yaad aaoge - Hindi Kavita Manch
सोमवार, 11 नवंबर 2019
एक ग़ज़ल : भले ज़िन्दगी से हज़ारों शिकायत---
भले ज़िन्दगी से हज़ारों शिकायत
जो कुछ मिला है उसी की इनायत
ये हस्ती न होती ,तो होते कहाँ सब
फ़राइज़ , शराइत ,ये रस्म-ओ-रिवायत
कहाँ तक मैं समझूँ ,कहाँ तक मैं मानू
ये वाइज़ की बातें वो हर्फ़-ए-हिदायत
न पंडित ,न मुल्ला ,न राजा ,न गुरबा
रह-ए-मर्ग में ना किसी को रिआयत
मेरी ज़िन्दगी ,मत मुझे छोड़ तनहा
किसे मैं सुनाऊँगा अपनी हिकायत
निगाहों में उनके लिखा जो पढ़ा तो
झुका सर समझ कर मुहब्बत की आयत
बुरा मानने की नहीं बात ,’आनन’
है जिससे मुहब्बत ,उसी से शिकायत
-आनन्द.पाठक--
शब्दार्थ
फ़राइज़ = फ़र्ज़ का ब0व0
शराइत = शर्तें [ शर्त का ब0व0]
रह-ए-मर्ग = मृत्यु पथ पर [ मौत की राह में ]
अपनी हिकायत = अपनी कथा कहानी
आयत = कलमा-ए-क़ुरान [ की तरह पाक] -
बुधवार, 6 नवंबर 2019
हरसिंगार
ओ शेफाली
अरी ओ प्राजक्ता !
सुना है
तू सीधे स्वर्ग से
उतर आई थी
कहते है
सत्यभामा की जलन
देवलोक से
पृथ्वी लोक पर
तुझे खींच लाई थी
तू ही बता
है ये चन्द्र का प्रेम
या सूर्य से विरक्ति
कि बरस में
फ़कत एक मास
सिर्फ रात को
देह तेरी
हरसिंगार के फूलों से
भरभराई थी !
रविवार, 3 नवंबर 2019
एक ग़ज़ल : दुश्मनी कब तक निभाओगे---
दुश्मनी कब तक निभाओगे कहाँ तक ?
आग में खुद को जलाओगे कहाँ तक ?
है किसे फ़ुरसत तुम्हारा ग़म सुने जो
रंज-ओ-ग़म अपना सुनाओगे कहाँ तक ?
नफ़रतों की आग से तुम खेलते हो
पैरहन अपना बचाओगे कहाँ तक ?
रोशनी से रोशनी का सिलसिला है
इन चरागों को बुझाओगे कहाँ तक ?
ताब-ए-उलफ़त से पिघल जाते हैं पत्थर
अहल-ए-दुनिया को बताओगे कहाँ तक ?
झूठ की तलवार से क्या खौफ़ खाना
राह-ए-हक़ हूँ ,आजमाओगे कहाँ तक ?
सब गए हैं ,छोड़ कर जाओगे तुम भी
महल अपना ले के जाओगे कहाँ तक ?
जाग कर भी सो रहे हैं लोग , कस्दन
तुम उन्हें ’आनन’ जगाओगे कहाँ तक ?
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
पैरहन = लिबास ,वस्त्र
ताब-ए-उलफ़त से = प्रेम की तपिश से
अहल-ए-दुनिया को = दुनिया के लोगों को
राह-ए-हक़ हूँ = सत्य के मार्ग पर हूँ
क़सदन = जानबूझ कर
शनिवार, 2 नवंबर 2019
क्या मैं कयामत हूं
क्या मैं ख्वाहिश को
देर तक याद में तेरी ....
जागने की ...
इजाज़त दूं ?
तुम ही कहो न
क्या मैं यादों को
खुदा के सजदे सा
नाम और दर्ज़ा
इबादत दूं ?
तुम ही कहो न
क्यों इन हवाओं ने
तुझसे लिपटने की
बदमाशियां की और
शरारत क्यूं ?
तुम ही कहो न
क्या ग़ज़ल मैं हूं ?
इक नज़्म सी मैं हूं
रूबाइयों की सी
क़यामत हूं ?
शनिवार, 26 अक्टूबर 2019
एक गीत : आओ कुछ दीप हम जलाएँ--
एक गीत : आओ कुछ दीप हम जलाएँ---
एक अमा और हम मिटाएँ
आओ कुछ दीप हम जलाएँ
खुशियाँ उल्लास साथ लेकर
युग युग से आ रही दिवाली
कितना है मिट सका अँधेरा
कितनी दीपावली मना ली
अन्तस में हो घना अँधेरा ,आशा की किरण हम जगाएँ,
आओ कुछ दीप हम जलाएँ
नफ़रत की हवा बह रही है
और इधर दीप जल रहा है
रिश्तों पर धूल जम रही है
मन में दुर्भाव पल रहा है
शान्ति के प्रतीक हैं कबूतर ,आसमान में चलो उड़ाएँ
आओ कुछ दीप हम जलाएँ
जगमग हो दीपमालिका से
हर घर का आँगन ,चौबारा
ज्योति कलश छलक छलक जाए
मिट जाए मन का अँधियारा
आया है पर्व रोशनी का ,ज्योति-पर्व प्रेम से मनाएँ
एक अमा और हम मिटाएँ ,आओ कुछ दीप हम जलाएँ
-आनन्द.पाठक-
रविवार, 20 अक्टूबर 2019
माहिया (कुड़िये)
बहना चाहे हैं,
प्यारी सी भौजाई।
धो आ मुख को पहले,
बीच तलैया में,
फिर जो मन में कहले।।
गोरी चल लुधियाना,
मौज मनाएँगे,
होटल में खा खाना।
नखरे भारी मेरे,
रे बिक जाएँगे,
कपड़े लत्ते तेरे।।
ले जाऊँ अमृतसर,
सैर कराऊँगा,
बग्गी में बैठा कर।
तुम तो छेड़ो कुड़ियाँ,
पंछी बिणजारा,
अब चलता बन मुँडियाँ।।
नखरे हँस सह लूँगा,
हाथ पकड़ देखो,
मैं आँख बिछा दूँगा।
दिलवाले तो लगते,
चल हट लाज नहीं,
पहले घर में कहते।।
**************
प्रथम और तृतीय पंक्ति तुकांत (222222)
द्वितीय पंक्ति अतुकांत (22222)
**************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
जन्म दिन - 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान - तिनसुकिया (असम)
रुचि - काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) "मात्रिक छंद प्रभा" जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में 'मात्रिक छंद कोष' दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) "वर्णिक छंद प्रभा" जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में 'वर्णिक छंद कोष' दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
Web Site - visit kavikul.com
आल्हा छंद "समय"
समय-धार नित बहती रहती, कभी न ये पड़ती है मंद।।
साथ समय के चलना सीखें, मिला सभी से अपना हाथ।
ढल जातें जो समय देख के, देता समय उन्हीं का साथ।।
काल-चक्र बलवान बड़ा है, उस पर टिकी हुई ये सृष्टि।
नियत समय पर फसलें उगती, और बादलों से भी वृष्टि।।
वसुधा घूर्णन, ऋतु परिवर्तन, पतझड़ या मौसम शालीन।
धूप छाँव अरु रात दिवस भी, सभी समय के हैं आधीन।।
वापस कभी नहीं आता है, एक बार जो छूटा तीर।
तल को देख सदा बढ़ता है, उल्टा कभी न बहता नीर।।
तीर नीर सम चाल समय की, कभी समय की करें न चूक।
एक बार जो चूक गये तो, रहती जीवन भर फिर हूक।।
नव आशा, विश्वास हृदय में, सदा रखें जो हो गंभीर।
निज कामों में मग्न रहें जो, बाधाओं से हो न अधीर।।
ऐसे नर विचलित नहिं होते, देख समय की टेढ़ी चाल।
एक समान लगे उनको तो, भला बुरा दोनों ही काल।।
मोल समय का जो पहचानें, दृढ़ संकल्प हृदय में धार।
सत्य मार्ग पर आगे बढ़ते, हार कभी न करें स्वीकार।।
हर संकट में अटल रहें जो, कछु न प्रलोभन उन्हें लुभाय।
जग के ही हित में रहतें जो, कालजयी नर वे कहलाय।।
समय कभी आहट नहिं देता, यह तो आता है चुपचाप।
सफल जगत में वे नर होते, लेते इसको पहले भाँप।।
काल बन्धनों से ऊपर उठ, नेकी के जो करतें काम।
समय लिखे ऐसों की गाथा, अमर करें वे जग में नाम।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
जन्म दिन - 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान - तिनसुकिया (असम)
रुचि - काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) "मात्रिक छंद प्रभा" जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में 'मात्रिक छंद कोष' दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) "वर्णिक छंद प्रभा" जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में 'वर्णिक छंद कोष' दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
Web Site - visit kavikul.com
रविवार, 6 अक्टूबर 2019
एक व्यंग्य : रावण का पुतला
मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019
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हिंदी पर राजनीति
बोफोर्स, गोधरा, भोपाल गैस, 1984 के दंगे, राष्ट्रभाषा का मुद्दा, आरक्षण का मुद्दा (विशेषकर नारी आरक्षण) व सुविधाएँ ये सब ऐसे ही वोटदायक मुद्दे हैं जिन पर राजनेताओं की श्वास चलती है. राममंदिर, बेरोजगारी, गरीबी, गंगा (नदियों) की सफाई ऐसे बहुत गिनाए जा सकते हैं. इतिहास से कुरेदकर नए मुद्दे भी जोड़े जा रहे हैं. गाँधी हत्या ऐसा ही नया जीता
रविवार, 29 सितंबर 2019
चिड़िया: कहो ना, कौनसे सुर में गाऊँ ?
शनिवार, 21 सितंबर 2019
पिंजरे का पंछी
शुक्रवार, 20 सितंबर 2019
एक ग़ज़ल
जान-ए-जानाँ से क्या माँगू ?
दर्द-ए-दिल की दवा माँगू
हुस्न उनका क़यामत है
दाइमी की दुआ माँगू
क़ैद हूँ जुर्म-ए-उल्फ़त में
उम्र भर की सज़ा माँगू
ज़िन्दगी भर नहीं उतरे
इश्क़ का वह नशा माँगू
सादगी से मुझे लूटा
वो ही तर्ज-ए-अदा माँगू
आप की बस इनायत हो
आप से और क्या माँगू
हमसफ़र आप सा ’आनन’
साथ मैं आप का माँगू
-आनन्द.पाठक-
दाइमी = स्थायी,मुस्तकिल
शुक्रवार, 13 सितंबर 2019
लक्ष्मीरंगम - Laxmirangam: ऐसे सिखाएँ हिंदी
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सिखाएँ हिंदी
सीखने का पहला चरण होता है बोलना। और
बोलना सीखने के लिए उस भाषा का अक्षरज्ञान
जरूरी नहीं होता। किसी को बोलते हुए देखकर सुनकर, वैसे
उच्चारण का प्रयास कर किसी भी भाषा को बोलना सीखा जा सकता है। बहुत से लोग तो
विभिन्न भाषाओं के सिनेमा देखकर ध्वनि व चित्र के समागम से ही शब्द का उच्चारण और
अर्थ सीख लेते हैं। दोस्तों व परिवारजनों के साथ बात करते करते नए शब्दों को सीखना
और उनका सही उच्चारण करना आसान हो जाता है। इस तरह समाज में रहकर समाज की भाषा
बोलना सीखना एक बहुत ही आसान जरिया है। पर ऐसे में इस बोली में कुछ गलतियों का
समावेश सहजता से हो जाता है।
लिखना – पढ़ना, जो बोलने के साथ - साथ भी सीखा जा सकता है। वैसे केवल पढ़ना भी कुछ
अतिरिक्त मेहनत करके सीखा जा सकता है। इसी दौरान बोलने की प्रक्रिया के उच्चारण
दोष सही किए जा सकते हैं। अन्यथा ये हमेशा - हमेशा के लिए घर कर जाते हैं। इसलिए
शिक्षकों को चाहिए कि लिखने - पढ़ने की प्रक्रिया के दौरान शिक्षार्थियों के
उच्चारण पर विशेष ध्यान देकर उनमें आवश्यक सुधार करना चाहिए। गलत उच्चारण के कारण ही
लेखन में वर्तनी की गलतियाँ होती हैं और भाषा में अशुद्धता आ जाती है।
और मात्राओँ को सिखाने - सीखने के दौरान शिक्षकों
को निम्न विषयों पर ध्यान देना चाहिए –
म और भ में शिरोरेखा (मस्तक रेखा) की गलती से भ्रम हो
जाता है किंतु इस पर ध्यान नहीं जाता कि म और भ में एक घुंडी का भी फर्क है। इस
घुंडी का ख्याल करने से शिरोरेखा की गलती का कोई असर नहीं होगा।
घ और ध में भी शिरोरेखा
(मस्तक रेखा) की गलती से भ्रम हो जाता है किंतु इस पर ध्यान नहीं जाता कि घ और ध
में भी एक घुंडी का भी फर्क है। इस घुंडी का ख्याल करने से शिरोरेखा की गलती का
कोई असर नहीं होगा।
क और फ में भी समानता
होते हुए भी फर्क है। यदि क की गोलाई शिरोरेखा से जुड़ जाए तो फर्क मिट जाता है।
इसलिए क की गोलाई को शिरोरेखा को बचाकर ही लिखा जाना चाहिए।
प, य और थ – प की गोलाई
में थोड़ी सी वक्रता से वह य का आकार ले लेता है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उस
पर य में घुंडी मात्र के फर्क से यह थ का रूप ले लेता है।
में नुक्ता की स्थिति पर गौर करना जरूरी है।
चाहिए कि वे शिक्षार्थियों को इन फर्कों से अवगत कराएँ एवं सुनिश्चित करें कि वे
इन गलतियों को करने से बचें।
ए (के) और ऐ (कै) में फर्क भलीभाँति
समझाया जाए। आज भी बच्चे एक में ए पर मात्रा लगाते पाए जाते हैं। उन्हें शायद इस
बात का ज्ञान नहीं होता कि ए में ही मात्रा निहित है, इसके बदले ही मात्रा लगाई
जाती है। ऐ में एक मात्रा अक्षर की है और दूसरी लगाई गई है। किसी अन्य वर्ण में ए
के लिए एक मात्रा और ऐ के लिए दो मात्राएँ लगती हैं ( जैसे के और कै)।
मात्राओँ के प्रयोग में विशेषकर सिखाया जाना चाहिए कि निम्न वर्णों में मात्राएँ
सामान्य वर्णों से भिन्न तरीके से लगाई जाती है। यह वर्ण विशेष रूप में लिखे जाते
हैं।
साधारणतः उ और ऊ की मात्राएँ वर्ण के नीचे
लगाई जाती है, पर र में यह पीठ पर लगती है। वैसे ही ऋ की मात्रा साधारणतः पैरों पर
लगती है, पर ह वर्ण में कमर पर लगाई जाती है। ह वर्ण के साथ जुड़ने वाला हर वर्ण
कमर पर ही जुड़ता है. जैसे आह्लाद, आह्वान, असह्य , चिह्न, अल्हड़, दूल्हा,
कान्हा, और उन्होंने। आप चाहें तो इन्हें अपवाद कह सकते हैं और इसीलिए इन पर विशेष
ध्यान देना जरूरी है। रु और रू पर विशेष ध्यान देना इसलिए भी जरूरी है कि र पर ऊ
की मात्रा पीठ से सटी नहीं होती, बीच में एक छोटी लकीर होती है जिसे अक्सर नजरंदाज
किया जाता है। वैसे ही श पर र की टँगड़ी लगने पर उसका रूप बदल कर श्र हो जाता है।
और मात्रा है जिस पर विशेष ध्यानाकर्षण की आवश्यकता है। वह है र की मात्रा। निम्न
शब्दों पर गौर करें।
ट्रेन।
देखिए –
+ र + थ + म - (र पूरा है)
+ र् + य + ट + न - ( र आधा है)
+ क - (र पूरा है)
– क्
+ र + म - (र पूरा है)
+ र् + म - ( र आधा है)
+ रे + न - (र पूरा है)
कि सभी शब्दों में र आधा नहीं है, जैसे कि आभास होता है।
पैरों पर है वहाँ अक्षर आधा है, पर र पूरा है।
टँगड़ी कहते हैं, जो गोलाकार वर्णों में ट्र जैसी हो जाती है।
सर पर टोपी जैसे लिखी जाती है उसे र का रेफ कहा जाता है और उसमें र आधी होती है।
दीजिए कि अन्य भारतीय भाषाओं की तरह हिंदी में भी मस्तक पर लगने वाली व्यंजन
मात्रा का (शिरोमात्रा) उच्चारण अक्षर से पहले होता है और पैरों पर लगने वाली
मात्राओं का (पदमात्रा) उच्चारण अक्षर के बाद होता है।
अपवाद भी है – अनुस्वार।
को – अनुस्वार को हटाकर लिखें तो पंचमाक्षर नियमानुसार चन्दन लिखा जाना चाहिए।
यानी अनुस्वार को हटाकर उसकी जगह अगले वर्ण वर्ग के पंचमाक्षर स्थित अनुस्वार वर्ण
का प्रयोग करना चाहिए। इस तरह देखा जा सकता है कि अनुस्वार मस्तक पर लगते हुए भी
अक्षर के बाद उच्चरित होता है। इसी तरह कंगन (कङ्गन), मुंडन (मुण्डन), बंधन (बन्धन),
चंबल (चम्बल) लिखे जाते हैं। ऐसा देखा गया है कि हिंदी में स्नात्तकोत्तर
विद्यार्थी भी पंचांग शब्द को बिना अनुस्वार के लिखने से कतराते हैं । इसे सही में
पञ्चाङ्ग लिखा जाना चाहिए। यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि वैयाकरणों ने
पंचमाक्षर नियम बनाकर वर्गों के अनुस्वार की समस्या तो हल कर दिया, पर वर्गेतर
वर्णों की समस्या तो जस की तस है। हिमाँशु या हिमांशु - इसे अनुस्वार बिना कैसे
लिखें हिमान्शु या हिमाम्शु तय नहीं है। सारा दारोमदार निर्भर करता है कि आप शब्द
को कैसे उच्चरित करते है। अब यह तो वैयक्तिक समस्या हो गई न कि व्याकरणिक। इसीलिए
शायद वर्गेतर वर्ण वाले शब्दों में
अनुस्वार को पंचमाक्षर से विस्थापित करने का प्रावधान नहीं है।¶ÆÉÞगार
ओर –
गोलाकार वर्णों के साथ आधा श – विश्व सा लिखा जाता है, पर कोनों वाले वर्णों के
साथ काश्मीर सा लिखा जाता है। कुछ शब्द हैं जिनमें दोनों तरह की लिपि मानी जा रही
है - जैसे पश्चात, आश्वासन, कश्ती इत्यादि।
एक शब्द है - (¶ÆÉÞगार ) शृंगार , यहाँ आधे श पर ऋ की मात्रा लगाई जा
रही है, जो अपवाद है (ऐसा कहा जाता है कि मात्रा लगने पर हर वर्ण व्यंजन का रूप ले
लेता है। इस अर्थ में शृ में भी श आधा ही है)। लेकिन अक्सर लोग इसे श्रृंगार लिखते
हैं, जो एकदम ही गलत है। शृंगार मे श पर ऋ की मात्रा है, जबकि श्रृंगार में श के
साथ आधा र भी जुड़ा है और उस पर ऋ की मात्रा है।
भारतीय भाषाओं के वर्ग में दो ही अत्क्षर
होते हैं. जौसे क और ङ। इसलिए उन्हें ख,
घ, छ झ के उच्चारण में तकलीफ होती है. संभव है कि वे ‘खाना खाया’ और ‘गाना गाया’ का उच्चारण ‘काना काया’ की
तरह ही करें। इसी तरह वर्ग का तीसरा अक्षर न होने के कारण वे ग, ज,ब,द का भी सही
उच्चारण नहीं कर पाते। वे गजेंद्रन को कजेंद्रन कहेंगे। कमला व गमला की वर्तनी एक
सा लिखेंगे, फिर पढ़ने में अदला - बदली हो जाएगी। ऐसी
जटिलताओँ पर शिक्षकों का ध्यानाकर्षण आवश्यक है ताकि वे समय पर विद्यार्थी के उच्चारण
में सुधार कर सकें। शिक्षकों को चाहिए कि इस तरह की त्रुटियों को बालपन में सुधार
दिया जाए। उम्र के बढ़ने पर सुधार में बहुत कठिनाई होती है। उच्चारण की गलतियाँ
अक्सर वर्तनी में देखी जाती हैं। शब्द विद्यार्थी में द और य का मिश्रण है और
संयुक्ताक्षर द्य बना है. अक्सर लोग ध्य को द्य समझने की गलती करते हैं। इस पर विशेष
ध्यान दिया जाना चाहिए। पता नहीं क्यों भाषाविदों ने श्र को तो संयुक्ताक्षर माना
पर द्य को नहीं। इसी तरह दिल्ली व उत्तरी राज्यों में राजेंद्र को राजेंदर उच्चरित
किया जाता है क्योंकि गुरुमुखी लिपि में अक्षरों को आधा करने का प्रावधान नहीं है,
पर द्वयत्व का प्रावधान है। शिक्षकों को इस पर विशेष गौर करते हुए उचित सलाह देकर
त्रुटियों का निवारण करना चाहिए।
व अनुस्वार के प्रयोग पर। वैसे वर्तनी के आद्यतन नियमों के अनुसार तो जहाँ शब्दों
या तात्पर्यों का हेर - फेर न हो, वहाँ अनुनासिक की जगह अनुस्वार का प्रयोग हो
सकता है। पर जिसे पता होगा वह गलती करेगा ही क्यों ? सबसे उत्कृष्ट उदाहरण
हैं - हँस (हँसने की क्रिया) और हंस ( एक
जलचर पक्षी)। अब सवाल आता है कि किसका कहाँ प्रयोग उचित है। एक नियम जो जानने में आया है वह यह कि जहाँ
अनुस्वार या अनुनासिक वाले शब्द को वर्ग के अंतिम अनुस्वार के साथ लिखा जा सकता है,
वहाँ अनुस्वार लगेगा, वर्ना अनुनासिक। जैसे मंगल ( मङ्गल), चाँद ( इसे चान्द लिखने
से उच्चारण बदल जाता है, अतः यहाँ अनुनासिक ही लगेगा)।
वर्ग के पंचमाक्षर का ही द्वयत्व हो, या पंचमाक्षरों का ही समन्वय है तो उसे
अनुस्वार से विस्थापित नहीं किया जा सकता ।
उसे आधे अक्षर के साथ ही लिखा जाना चाहिए। जैसे हिम्मत, उन्नति, जन्म,
कण्णन इत्यादि। इनको हिंमत, उंनति, जंम, कंणन नहीं लिखा जा सकता।
प्रयोग अक्सर वहाँ होता है जहाँ मात्राएँ शिरोरेखा पर न लगी हों – जैसे बाँध,
फँसना, गूँज इत्यादि। जहाँ शिरोरेखा पर मात्राएँ हों तो वहाँ अनुनासिक की जगह अनुस्वार का ही प्रयोग होता है। जैसे में, मैं,
चोंच, भौंकना इत्यादि। याद रहे कि पहले में और मैं में भी अनुनासिक लगाया जाता था।
शब्दों के विशिष्ट उच्चारण पर – ‘ब्राम्हण’
उच्चरित होता है पर लिखा जाता है ‘ब्राह्मण’।वैसे ही आल्हाद कहा जाता है पर आह्लाद लिखा जाता है.
सौहार्द्र इत्यादि । शिक्षकों को चाहिए कि ऐसे विशेष शब्दों के उच्चारण व वर्तनी
पर विशेष ध्यान देते हुए विद्यार्थियों को लभान्वित करें।
और समस्या जो मुख्य तौर पर देखी गई है कि प्रादेशिक भाषा का उच्चारण - जो
विद्यार्थियों के हिंदी उच्चारण में आ जाता है. शिक्षकों को चाहिए कि वे बालपन से
ही इस त्रुटि का निवारण करने का प्रयत्न करें। सही उच्चारण से लिपि में वर्तनी की
शुद्धता बढ़ती है।
गण, इसमें से जो भी स्वीकार्य हो, उससे बच्चों को लाभान्वित करेंगे।
एक ग़ज़ल : मैं अपना ग़म सुनाता हूँ--
मैं अपना ग़म सुनाता हूँ ,वो सुन कर मुस्कराते हैं
वो मेरी दास्तान-ए-ग़म को ही नाक़िस बताते हैं
बड़े मासूम नादाँ हैं ,खुदा कुछ अक़्ल दे उनको
किसी ने कह दिया "लव यू" ,उसी पर जाँ लुटाते हैं
ख़ुशी अपनी जताते हैं ,हमें किन किन अदाओं से
हमारी ही ग़ज़ल खुद की बता, हमको सुनाते हैं
तुम्हारे सामने हूँ मैं , हटा लो यह निक़ाब-ए-रुख
कि ऐसे प्यार के मौसम कहाँ हर रोज़ आते हैं
गिला करते भला किस से ,तुम्हारी बेनियाज़ी का
यहाँ पर कौन सुनता है ,सभी अपनी सुनाते हैं
तसव्वुर में हमेशा ही तेरी तस्वीर रहती है
हज़ारों रंग भरते हैं, बनाते हैं , सजाते हैं
दिल-ए-सदचाक पर मेरे सितम कुछ और कर लेते
समझ जाते वफ़ा क्या चीज है , कैसे निभाते हैं
मुहब्बत का दिया रख दर पे उनके आ गया ’आनन’
कि अब यह देखना है वो बचाते या बुझाते हैं
-आनन्द.पाठक--
शब्दार्थ
नाक़िस = बेकार ,व्यर्थ
दिल-ए-सद चाक = विदीर्ण हृदय