जल को
मछलीयों बतखों से
था प्रेम
तथापि पाल रखे थे उसने
शार्क व्हेल और घड़ियाल
वायु को
विविध गंधो और
सुगंधों से
था प्रेम
तथापि पाल रखे थे उसने
दुर्गंधों के जाल
आकाश को
सैकड़ों सूर्यों से
उल्का पिंडों से
था प्रेम
तथापि
उसमें पल रहे है अगणित
सौर्य मंडलों की माल
और
परम ब्रह्म को
अग्नि जल
वायु पृथ्वी और
आकाश से था अगाध प्रेम
क्योंकि
उससे उद्भव हुए थे
शक्ति और महाकाल !!
जैसा कि होना था,
पृथ्वी को
तमाम पशुओं से
पंछियों से
था अगाध प्यार
यद्यपि पालना पड़ा उसे भी
मनुष्य सा इक काल !
मछलीयों बतखों से
था प्रेम
तथापि पाल रखे थे उसने
शार्क व्हेल और घड़ियाल
वायु को
विविध गंधो और
सुगंधों से
था प्रेम
तथापि पाल रखे थे उसने
दुर्गंधों के जाल
आकाश को
सैकड़ों सूर्यों से
उल्का पिंडों से
था प्रेम
तथापि
उसमें पल रहे है अगणित
सौर्य मंडलों की माल
और
परम ब्रह्म को
अग्नि जल
वायु पृथ्वी और
आकाश से था अगाध प्रेम
क्योंकि
उससे उद्भव हुए थे
शक्ति और महाकाल !!
जैसा कि होना था,
पृथ्वी को
तमाम पशुओं से
पंछियों से
था अगाध प्यार
यद्यपि पालना पड़ा उसे भी
मनुष्य सा इक काल !
सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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