सुनो
मैंने देखा है कि
तुम खुद से कितना
कतराते हो
स्याह से खुद के
अंधेरों में
छुप जाते हो
पाया है कि
टूटे हो तुम
हर सफर में,
'उस ' से हो
खुद तक पहुंचने की
हर एक कोशिश में
सच है कि
तुम्हारे आसमां में
अब नहीं कोई
चांद न सूरज न तारा
सुनो
मेरी तय नहीं धुरी
तथापि
मैं भोर का तारा हूं
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंधरा दिवस की बधाई हो।
सुप्रभात...आपका दिन मंगलमय हो।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 23 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएं