जब जब समय
मेरे साथ चौसर पे
खेल खेलता है
मुझे मोहरा बना
मुझे ही पीट देता है
तब तब
मैं आवेश में
चौसर और मोहरा
दोनो ही लेकर
खुद के भीतर
अपने बुने अंधेरों में
छुप जाती हूं
औे सोचती हूं
आंखे मूंद लेने से
सूरज ढल जाता है
और आंख खोलने पे
दिन निकल आयेगा
समय दूर खड़ा खड़ा
हंसता है मुझपे
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-04-2020) को "देश में टेलीविजन इतिहास की कहानी लिखने वाला दूरदर्शन " (चर्चा अंक-3678) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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कोरोना को घर में लॉकडाउन होकर ही हराया जा सकता है इसलिए आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'