एक ग़ज़ल : रोशनी मद्धम नहीं करना---
रोशनी मद्धम नहीं करना अभी संभावना है
कुछ अभी बाक़ी सफ़र है तीरगी से सामना है
यह चराग़-ए-इश्क़ मेरा कब डरा हैंआँधियों से
रोशनी के जब मुक़ाबिल धुंध का बादल घना है
लौट कर आएँ परिन्दे शाम तक इन डालियों पर
इक थके बूढ़े शजर की आखिरी यह कामना है
हो गए वो दिन हवा जब इश्क़ थी शक्ल-ए-इबादत
कौन होता अब यहाँ राह-ए-मुहब्बत में फ़ना है
जाग कर भी सो रहे हैं लोग ख़ुद से बेख़बर भी
है जगाना लाज़िमी ,आवाज देना कब मना है
आदमी से जल गया है ,भुन गया है आदमी जो
आदमी का आदमी ही हमसुखन है ,आशना है
दस्तकें देते रहो तुम हर मकां के दर पे’आनन’
आदमी में आदमीयत जग उठे संभावना है
-आनन्द.पाठक-
उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०८ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
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टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल।
वाह... क्या बात है आनन्द साब
जवाब देंहटाएंसच में मजा आ गया.
भा गयी आपकी लेखनी.
पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत रहेगा- नई रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए
आप सभी म्हानुभावों का बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसादर