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गुरुवार, 5 अगस्त 2021

सोरठा छंद "राम महिमा"

सोरठा छंद 

"राम महिमा"

मंजुल मुद आनंद, राम-चरित कलि अघ हरण।
भव अधिताप निकंद, मोह निशा रवि सम दलन।।

हरें जगत-संताप, नमो भक्त-वत्सल प्रभो।
भव-वारिध के आप, मंदर सम नगराज हैं।।

शिला और पाषाण, राम नाम से तैरते।
जग से हो कल्याण, जपे नाम रघुनाथ का।।

जग में है अनमोल, विमल कीर्ति प्रभु राम की।
इसका कछु नहिं तोल, सुमिरन कर नर तुम सदा।।

हृदय बसाऊँ राम, चरण कमल सिर नाय के।
सभी बनाओ काम, तुम बिन दूजा कौन है।।

गले लगा वनवास, बनना चाहो राम तो।
मत हो कभी उदास, धीर वीर बन के रहो।।

रखो राम पे आस, हो अधीर मन जब कभी।
प्राणी तेरे पास, कष्ट कभी फटके नहीं।।

सुध लेवो रघुबीर, दर्शन के प्यासे नयन।
कबसे हृदय अधीर, अब तो प्यास मिटाइये।।
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सोरठा छंद विधान -

दोहा की तरह सोरठा भी अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसमें भी चार चरण होते हैं। प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण सम कहे जाते हैं। सोरठा में दोहा की तरह दो पद होते हैं और प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं। सोरठा और दोहा के विधान में कोई अंतर नहीं है केवल चरण पलट जाते हैं। दोहा के सम चरण सोरठा में विषम बन जाते हैं और दोहा के विषम चरण सोरठा के सम। तुकांतता भी वही रहती है। यानी सोरठा में विषम चरण में तुकांतता निभाई जाती है जबकि पंक्ति के अंत के सम चरण अतुकांत रहते हैं।

दोहा और सोरठा में मुख्य अंतर गति तथा यति में है। दोहा में 13-11 पर यति होती है जबकि सोरठा में 11 - 13 पर यति होती है। यति में अंतर के कारण गति में भी भिन्नता रहती है। 

मात्रा बाँट प्रति पंक्ति
8+2+1, 8+2+1+2 

परहित कर विषपान, महादेव जग के बने।
सुर नर मुनि गा गान, चरण वंदना नित करें।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

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