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शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

एक व्यंग्य : कलछुल कहाँ--चेहरा कहाँ

 

एक व्यंग्य : कलछुल कहाँ ---चेहरा कहाँ

एन0जी0ओ0 -तो आप समझते ही होंगे ।वही ’स्वयं सेवी संस्थाएँ जो

पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः ।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभृतयः ॥

अर्थात
नदियाँ अपना पानी खुद नहीं पीती, वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते, बादल (अनाज उत्पादन के कारक) अनाज खुद नहीं खाते । सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए ही होता है ।

यही भारतीय संस्कृति है ।यही सनातन धर्म है ।यही शाश्वत सत्य है । बचपन से सिखाया पढ़ाया जाता है । एक परोपकारी निष्काम और नि:स्वार्थ सेवा करता है ।बहुत सी ऐसी संस्थाएँ हैं जो बिना लोभ-मोह ,बिना हानि-लाभ के अनवरत समाज की सेवा करती रहती हैं। यह संस्थाएँ समाज के अंग है । समाज की सेवा में रत हैं धर्म के वाहक हैं ।संक्षेप में समझ लें कि

वृक्ष कबहू न फल भखें , नदी न संचे नीर
परमारथ के कारने , साधुन धरा शरीर।
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’करोना’-से युद्ध की घोषणा हो गई ।बहुत सी सच्ची सामाजिक सेवा -संस्थाएँ अपनी अपनी सीमित संसाधनों से पीड़ितों के निष्काम सेवा में जुट गईं।बिना किसी प्रचार-प्रसार के।बिना किसी ढोल-नगाड़े के ।बिना किसी ढोल ताशे के ।

मगर
इसी ’.लाक डाऊन’ और”करोना ’-काल में तथाकथित सेवा के नाम पर बहुत सी अन्य संस्थाएँ भी रातोरात पैदा हो गईं। समाज सेवा के लिए। निकल पडे लोग ’गरीबों” की सेवा के लिए।कैमरा लिए ,मोबाइल लिए ।मजदूर किसान भाइय़ों का दर्द देखा नहीं जाता .मदद करना है । दान दीजिए साहब । ,मुक्त हस्त से दान करें। मेरा अकाउन्ट नं0 --------------- हैं । बियरर चेक भी दे सकते है ।कैश भी चलेगा । दरिद्र की सेवा ,नारायण की सेवा ,भगवान की सेवा । अरे प्रधानमंत्री फ़ंड में दिया गया दान कहाँ जाता है ?पता है आप को ?नहीं न ? मगर हमारे यहाँ प्रतिदिन पाई पाई का हिसाब होता है । आय-व्यय का हिसाब प्रतिदिन व्हाट्स अप पर चढाते हैं हमलोग। शीशे की तरह बिलकुल साफ़ ।इतनी पारदर्शिता दिन प्रति का हिसाब आप को कहाँ ,मिलेगी ? प्रधानमंत्री वाले फ़ंड में मिलेगी क्या? कभी नहीं।

मेरी संस्था से बड़े बड़े लोग जुड़े है --कर्नल भी है ,ब्रिगेडियर भी । आई0ए0एस0 भी ,आई0पी0 एस0 भी । बड़ी बड़ी हस्तियाँ जुड़ी हैं ।फ़िल्मी हस्तियों के डैडी अंकल आंटी भी जुड़े हुए हैं क्रिकेटरों के भाई -भतीजे भी जुड़े हुए हैं ।
--विश्वसनीयता में कमी नहीं-है --ये फोटो देखिए। यह अख़बार की कतरन देखिए। यह ’लिन्क’ देखिए।
- तो बोलिए पाठक जी ! कितने की रसीद काट दूँ ?
यह ’रजिस्टर्ड संस्था है ?" -मैने शंका का समाधान चाहा -
अरे नहीं है तो क्या ! हो जाएगी ।रजिस्टर भी हो जाएगी । आप तो बस ’दान-राशि’ बताएँ जल्दी से कि कितने की रसीद काट दूँ ?
।हमारे सदस्य दिन-रात मेहनत करते है ।मजदूरों की सेवा करते हैं ,उन्हें खाना खिलाते हैं ,पानी पिलाते हैं --।-इस प्रकार कर्ण से लेकर दधीचि तक ,रन्तिदेव से लेकर भामाशाह तक --दान महात्म्य समझा रहे थे -आगन्तुक महोदय !

"अन्य समाज सेवी संस्थाएँ खाली प्रचार करती है ।सेवा के नाम पर धन्धा करती हैं । हम सच्ची सेवा करते हैं ।निष्काम सेवा ।समझिए कि भगवान की सेवा करते हैं ।यह देखिए कितने फोटू निकाल रखे है --संस्था के सामाजिक कार्य के, क्रिया कलाप के ।
देखा --एक गरीब को एक थैली राशन देते हुए -छह चेहरे बारह हाथ।सभी प्रसन्न मुद्रा में ।फ़ोटू खिंचवाने के लिए धक्का-मुक्की करते हुए लोग । किसी फोटू में गरीब की थाली में ’खिचड़ी’ डालते हुए । कलछुल किधर चेहरा किधर ? चेहरा कैमेरे की तरफ़ । कलछुल से क्या लेना है उन्हें । फ़ोटो प्रमाण है । चार चेहरे कैमरे के एक फ़्रेम में घुसने की कोशिश में ,गरीब के चेहरे को घेरे हुए । किसी गरीब को 2-केला देते हुए -बैक ग्राउन्ड में संस्था का बैनर --बड़े बड़े अक्षरों में ।
सोचता हूँ ।तमाम फ़ोटो । --फ़ोटो में ’तथाकथित स्वयंसेवियों के तमाम चेहरे --प्रसन्न मुद्रा में --चेहरे पर वही स्थायी भाव दिखावे का। मदद के लिए जितने चेहरे --उससे दुगने हाथ । चौगुने फोटो--विभिन्न कोण से । कुछ ’वीडियो’ भी । बस गायब था तो केन्द्र से वह गरीब ,उस ग़रीब का चेहरा जिसको चमकाने के लिए ये लोग अपना चेहरा चमका रहे हैं । जितने भेड़ नहीं उतने गड़ेर।
इनकी संस्था से बड़े बड़े लोग जुड़े हैं । अगर नहीं जुड़ा है तो समाज के अन्तिम छोर पर खड़ा ’बुधना’ -।
किसी ने सच कहा है

खुद्दार मेरे शहर में फ़ाँके से मर गया
राशन तो मिल रहा था पर ,फोटो से डर गया।
खाना थमा रहे थे लोग “सेल्फ़ी” के साथ साथ
मरना था जिसे भूख से वो ग़ैरत से मर गया

"हाँ - तो बोलिए पाठक जी ! कितने की रसीद काट दूँ ? --मेरी तन्द्रा भंग हो गई ।
मै खुद ही किसी गरीब की मदद कर दूँगा बिना ’सेल्फ़ी ’ लिए -मैने कहा ।

वह भुनभुनाते हुए चले गए ।

अस्तु।

-आनन्द.पाठक-

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