सुनो
मैंने चांद की
पीठ पे कुछ लिख
छोड़ा है
और
छोड़ आई हूं
चांद की आंखों में
अपनी दोनो आंखें
..
अपनी सभी उंगलियां
चांदनी को दे आई हूं
..
उस पूरे चांद की रात
वो चांद
मेरी आंखों से
जी भर देखेगा तुम्हे
और
चांदनी मेरी उंगलियों से
तुम्हें प्यार किया करेंगी
..
पूनम की रात
आओगे न तुम?
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-08-2021) को चर्चा मंच "विज्ञापन में नारी?" (चर्चा अंक 4167) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी कविता।हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं