पिया बोले न ....
गिरहें खोलें न ...
रूठे है कबसे वो
जाने मुझसे क्यों
कैसे मनाऊं
मैं समझाऊं
बैरन बिरह
जीवन में यूं
विष तो घोले न
पिया बोले न....
तरसे नयनवा
उनके दरस को ...
आएंगे साजन
कौन बरस को...
अंबर बरसे
धरती तरसे
पुरवा सयानी
इत उत भटके
पीहू पुकारे
घर के दुआरे
तुम्हरे लिए है खोले न ...
पिया बोले न....
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बढ़िया लेखन
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
ब्लॉग पर जा कर टिप्पणी किये हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनभावन सृजन।
बहुत सुंदर
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