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सोमवार, 13 जून 2022

कुछ अनुभूतियाँ

 

कुछ अनुभूतियाँ

 

 

1

सच क्या बस उतना होता है

जितना हम तुम देखा करते ?,

 कुछ ऐसा भी सच होता है

अनुभव करते सोचा करते

 

 

2

क्या कहना है अब, सब छोड़ो

क्या पाया, दिल ने क्या चाहा,

कितनी बार सफ़र में आया

मेरे जीवन में चौराहा ।

 

3

नए वर्ष के प्रथम दिवस पर

सब के थे संदेश, बधाई,

दिन भर रहा प्रतीक्षारत मैं

कोई ख़बर न तेरी आई

 

 

4

सोच रही क्यों अलग राह की?

ऐसा तो व्यक्तित्व नहीं है ,

चाँद-चाँदनी एक साथ हैं

अलग अलग अस्तित्व नहीं है ।

 

 

 

-आनन्द.पाठक-


 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-06-2022) को चर्चा मंच     "तोल-तोलकर बोल"  (चर्चा अंक-4462)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
    --

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