कुछ अनुभूतियाँ
1
सच क्या बस उतना होता है
जितना हम तुम देखा करते ?,
कुछ ऐसा भी सच होता है
अनुभव करते सोचा करते
2
क्या कहना है अब, सब छोड़ो
क्या पाया, दिल ने क्या चाहा,
कितनी बार सफ़र में आया
मेरे जीवन में चौराहा ।
3
नए वर्ष के प्रथम दिवस पर
सब के थे संदेश, बधाई,
दिन भर रहा प्रतीक्षारत मैं
कोई ख़बर न तेरी आई
4
सोच रही क्यों अलग राह की?
ऐसा तो व्यक्तित्व नहीं है ,
चाँद-चाँदनी एक साथ हैं
अलग अलग अस्तित्व नहीं है ।
-आनन्द.पाठक-
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-06-2022) को चर्चा मंच "तोल-तोलकर बोल" (चर्चा अंक-4462) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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