तेरे साए से लिपटकर रोया होता
इतना तन्हा मजबूर मैं गोया होता
गुल भी होते और बुलबुल होती
सूखे बंजर मे शजर एक बोया होता
आ ही जाते ख्वाब मेरी आँखों मे
मैं किसी रात सूकून से जो सोया होता
कर ही डाला था जब तमन्नाओं का खून
अपने दामन से काश ये तो दाग़ धोया होता
सर झुकाए हुए यूं न चलता ' ज़िंदगी'
गर गुनाहों को कांधो पे यूं न ढोया होता
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