एक ग़ज़ल
तुम्हारी जालसाजी में उन्हें कुछ तो दिखा होगा ,
उन्हें कुछ तो सबूतों में, बयानों मे मिला होगा ।
बिना पूछॆ सफ़ाई में जो चाहे सो कहो, लेकिन-
धुआँ बिन आग का होता कहाँ ? तुमको पता होगा ।
तुम्हीं मुजरिम, तुम्ही मुन्सिफ़, गवाही में खड़े तुम ही,
सियासत की है मजबूरी ,तुम्हें करना पड़ा होगा ।
हमें तुम क्या समझते हो, हमे सच क्या नहीं मालूम?
"हरिशचन्दर’ नहीं हो तुम ,तुम्हें भी तो पता होगा ।
तुम्हारी झूठ की खेती, तुम्हारे झूठ का धन्धा ,
तुम्हारा "ऎड" टी0वी0 पर निरन्तर चल रहा होगा ।
वो कह कर तो यही आया 'बदलना है निज़ामत को'
ख़बर क्या थी कि "कुर्सी" के लिए अन्धा हुआ होगा ।
जहाँ अपनी सफ़ाई में सदाक़त ख़ुद क़सम खाती,
समझ लो झूठ की जानिब यक़ीनन फ़ैसला होगा ।
कहें हम क्या उसे ’आनन’, मुख़ौटॊं पर मुखौटे हैं ,
लिए मासूम सा चेहरा वो सबको छल रहा होगा ।
-आनन्द.पाठक--
शब्दार्थ
सदाक़त =सच्चाई
निज़ामत = शासन व्यवस्था
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप का
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