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शनिवार, 5 अप्रैल 2014

गैरों के हाथों में—पथिकअनजाना---573 वीं पोस्ट




आयें हमराहियों आज आधार विषय पर गहनता से विचारें
अहंकार के कवच में फंस गये अपनी जीवन शैली को संवारें
अहंकार के विषैले तीरों से भरे कवच को ही हम क्यों हैं धारे
हंसता पथिक यहाँ अहंकार बने शस्त्र जो गैरों के हाथों में हैं
वाह दानवीर इंसा अपनी क्रमिक मृत्यु का शस्त्र तूने दे डाला
भ्रमाये भयभीत करे तुम्हारे शस्त्र से तुम्हे अपनों का जाला
जाले से दूर हो नही सकते शस्त्र निष्फल कर नही सकते हो
गर गुजारनी चाहो उम्र बाकी रखो न अंहंकार की सांस बाकी
न भूल कर भी पीठ अपनी  ठौंकना कि अंह को दफना दिया
इसमें भी अंह की बदबू आती जो अब भी तुम पर सवार यार
यह कांटा राह से हटना होगा तब पथिक अनजाना कहलावोगे
पहचान न रहे बाकी गर तुम भी पथिक अनजाना बन जावोगे
अपने अहंकार को दफना दो तभी जा भ्रमों से मुक्ति पावोगे
हम सब सामूहिक शव-यात्रा  अंह की निकाले तब मुस्कावेंगें
पथिक  अनजाना


पथिक अनजाना

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