जब मध्य में रहते हो—पथिक अनजाना---574 वीं पोस्ट
http://pathic64.blogspot.com
अजीब महसूस न होगा तुम्हें गर तत्पर
तुम सबसे नीचे व ऊचे स्तर के लिये रहो
वर्ना जिन्दगी में लोग धक्का तभी देते हैं
जब मध्य में रहते हो तुम सदा के लिये
जो जीवित हैं वह
नीचे रह नही सकता
जो मध्य में वह
कुछ कह नही सकता
जो ऊपर वह कुछ भी
सुन नही सकता
अजब हालात प्रकृति
के होते मेरे यारों
अनूठे इस
सिद्धान्त से इंसान हैं परेशान
चाहत पर कहाँ रखे
अपनी वह पहचान
मिले ,मुझे बता
देना आसां होगा सफर
पथिक अनजाना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (07-03-2014) को "बेफ़िक्र हो, ज़िन्दगी उसके - नाम कर दी" (चर्चा मंच-1575) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मिडिल आर्डर बैट्समैन पर सारी जिम्मेदारी है...
जवाब देंहटाएं