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सोमवार, 3 नवंबर 2014

बचपन ..........


कैसे लौटाउॅ जो बचपन था सादा
अकबरी दरबार का था मैं शहज़ादा
हर कोई मेरा दिल था बहलाता
गाली सिखा दी थी मुझको मोटी मोटी
जब मन करता तो सब को सुनाता
हर कोई मुझ को जान कर था उकसाता
तुतलाती जुबां से मैं फिर वोही गीत गाता
अंजान बेख़बर हरदम हँसता हसाता

यशोदा का लड्डू गोपाल था मैं
दूध और मक्खन की गंगा में नहाता
भैंस और गाये थीं अपनी हमारी
सुखराम माली रोज दूध दोह जाता

स्कूल ना जाने का बहाना बनाता
मैं अक्सर भाग जाता
या चुप चाप छुप जाता
वर्ना पेट दर्द का मैं नाटक रचाता

आमों के बाग़ थे हर कोने में वहीं पर
घूमते घुमाते कहीं से आम ढूंड लाता
सड़क के किनारे थे एक सौ पेड़ फैले
आम और जामुन कहीं शहतूत के मेले
यहाँ वहाँ इमली थी और बेरी की झाड़
छुट्टियों में यूँ ही बस समय बीत जाता

वोह टयूबवेल की टंकी में कूद जाना
ठन्डे पाने से गर्मीयों में नहाना
लकीरों के खेल में किसी दीवार
या पत्थर का मुश्किल था बचपाना
बड़े होते होते हुआ बचपन पुराना
बड़ा ख़ूब था दोस्त वोह अपना ज़माना
                                        .....मोहन सेठी


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