समाज के सभी वर्गों के
लिए सुपाठ्य
(बाल कहानी संग्रह)
“चिड़िया मैं बन जाऊँ”
1975 से कथा
विधा को निरन्तर गति प्रदान करने वाली श्रीमती पवित्रा अग्रवाल जालजगत पर एक
जाना पहचाना नाम है। इनकी कहानियों की विशेषता यह है कि ये हर कथा में अपनी
सार्थक सोच के साथ एक सन्देश भी पाठकों को देने का प्रयास करती हैं।
कुछ दिनों पहले मुझे इनका बाल कहानी
संग्रह “चिड़िया मैं बन जाऊँ” मिला था। मगर अपनी व्यस्ताओं के चलते इस पुस्तक के
बारे में चाह कर भी कुछ नहीं लिख पाया था। आज कुछ फुरसत मिली तो मुझे अपने
बुकशैल्फ मॆं यह पुस्तिका दिखाई पड़ गयी और कलम अपने आप कुछ लिखने को बाध्य हो
गयी।
मैं जानता हूँ कि जिस प्रकार बाल कविताओं
को रचने के लिए खुद को बच्चा बनाना पड़ता है ठीक उसी प्रकार बाल कहानियों के लिए
भी बच्चों का मनोविज्ञान समझकर बिल्कुल सीधी और सरल भाषा में रोचकता का आवरण लिए
बाल कहानी रची जाती है। मैं समझता हूँ कि श्रीमती पवित्रा अग्रवाल इस कसौटी पर
बिल्कुल खरी उतरतीं हैं।
“चिड़िया मैं बन जाऊँ” बाल कहानी संग्रह
में लेखिका द्वारा 25 बाल कथाओं का समावेश किया गया है। इस संग्रह की शीर्षककथा “चिड़िया
मैं बन जाऊँ” में कथा की नायिका सपना एक छात्रा है जो एक स्वप्न देखती है कि वह
चिड़िया बन गयी है और चिड़िया के रूप में उसे शत्रुओं से किस प्रकार अपने को
बचाना होता है। यह सोचकर सपना के मन में भावों का प्रवाह निरन्तर चलता रहता है।
साथ ही इस कथा से यह भी शिक्षा मिलती है कि बालकों को अपनी दैनिक प्रयोग की
वस्तुओं को यथास्थान रखना चाहिए।
संग्रह की दूसरी कहानी “दो चोटी वाली”
शीर्षक से है। जिसमें लेखिका ने रुचि और श्रुति नामक दो बहनों के माध्यम से शरारती रुचि को एक ही विद्यालय में श्रुति के साथ पढ़ने को प्रेरित किया है।
तीसरी कहानी “खाली कागज का कमाल” में लेखिका
ने तुषार नामक बालक के माध्यम से यह सन्देश देने का प्रयास किया है कि जहाँ बुद्धि होती है वहीं बल होता है। तुषार के अपहृत हो जाने के बाद उसने अपहर्ताओं के कहने
पर एक पत्र लिखा और उसे अदृश्य लेख लिखने वाली पेंसिल से दूसरे खाली कागज में अपना
अदृश्य सन्देश लिख कर मूल पत्र को अपहर्ताओ के सामने यह कह कर लपेट दिया कि बाहर बारिश
हो रही है और पत्र भीग न जाये। इस प्रकार वह बालक अपने बुद्धि-विवेक से अपहरणकर्ताओं
के चंगुल से सकुशल छूट गया।
अगली कथा “माँ मुझे माफ कर दो” एक छोटी
उम्र के बालक बिन्नू की है जो कुसंगति में पड़कर काफी बिगड़ गया था मगर उसके
दोस्तों को पुलिस द्वारा पकड़
लिए जाने पर उसे सद्बुद्धि आ जाती है।
“समाधान” नामक कहानी रत्ना और प्रीति नामक
दो सहेलियों की है जिसमें लेखिका ने पठन के प्रति रुचि जगाने का प्रयास किया है।
होली पर्व पर आधारित “मुट्ठी भर गुलाल”, “मेरी
कहानी”, रंगों की धारा”, “बड़ा दान”, “दण्ड या पुरस्कार”, “सोनम की समझदारी” “अवैतनिक
सचिव” “कमाल का विचार”, “थोड़ी सी सूझबूझ”, “बहादुर बालक”, “रंग भरा गुब्बारा”, “फूलों
की चाहत”, “एक मुहल्ला एक ही होली”, “विकलांगता का दुःख”, यादगार दीपावली”, “पतंग
लूटने का मजा”, “जी का जंजाल”, “फौजी का बेटा”, “कपड़े की थैली क्यों” और “सवाल
सुरक्षा का” ऐसी कहानियाँ हैं जो बच्चों के दैनिक जीवन से जुड़ी हुई हैं।
“चिड़िया
मैं बन जाऊँ” बाल कहानी संग्रह को पढ़कर मैंने अनुभव किया
है कि कथा लेखिका पवित्रा अग्रवाल ने सरलता के साथ कहानी की सभी विशेषताओं का संग-साथ
लेकर कहानी कला का जो निर्वहन किया है वह अत्यन्त सराहनीय है।
मुझे पूरा
विश्वास है कि बाल पाठक ही नहीं अपितु सभी वर्गों के पाठक इस बाल कहानी
संग्रह से अवश्य लाभान्वित होंगे और प्रस्तुत बाल कथा कृति समीक्षकों की दृष्टि से
भी उपादेय सिद्ध होगी।
(बाल
कहानी संग्रह)
“चिड़िया मैं बन जाऊँ”
लेखिका-
पवित्रा अग्रवाल
प्रकाशक-
अयन प्रकाशन, 1/20-महरौली, नई दिल्ली-110030
मूल्य- 200-00 रुपये मात्र
इस कहानी संग्रह को श्रीमती पवित्रा अग्रवाल, घरोंदा, 4-7,
इसामिया बाजार, हैदराबाद-500027 (आन्ध्र-प्रदेश) से भी प्राप्त किया जा सकता है।
अन्य जानकारी के आप इनके मोबाइल नम्बर-09393385447 तथा ई-मेल
agarwalpavitra78@gmail.com से भी प्राप्त कर सकते हैं।
दिनांकः 12-05-2015
(डॉ.
रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड,
खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड) 262 308
Website. http://uchcharan.blogspot.com.
Phone/Fax: 05943-250129
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