इधर गया या उधर गया था
तेरा ही चेहरा जिधर गया था
तेरे खयालों में मुब्तिला हूँ
ख़बर नहीं है किधर गया था
जहाँ बसज्दा जबीं हुआ तो
वहीं का पत्थर सँवर गया था
भला हुआ जो तू मिल गया है
वगरना मैं तो बिखर गया था
हिसाब क्या दूँ ऐ शेख साहिब !
सनमकदा में ठहर गया था
अजीब शै है ये मौज-ए-उल्फ़त
जहाँ चढ़ा "मैं’ उतर गया था
ख़ुदा की ख़ातिर न पूछ ’आनन’
कहाँ कहाँ से गुज़र गया था
-आनन्द पाठक-
09413395592
शब्दार्थ
बसजदा जबीं हुआ= सजदा में माथा टेका
सनमकदा = महबूबा के घर
मैं = अहम /अना/ अपना वज़ूद/अस्तित्व
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