इसी ज़मीन पर 2-ग़ज़ल पहले भी लगा चुका हूं ...उसी बहर में एक मुख़्तलिफ़ ग़ज़ल और लगा रहा हूँ
छूटे हुए जो, साथ में लाने की बात कर
दिल पे खिंची लकीर मिटाने की बात कर
जो बात आम थी जिसे दुनिया भी जानती
बाक़ी बचा ही क्या ? न छुपाने की बात कर
जो तू नहीं है ,उस को दिखाने में मुब्तिला
जितना है बस वही तू दिखाने की बात कर
देखा नहीं है तूने चिरागों के हौसले
यूँ फूँक से न इनको डराने की बात कर
ये आग इश्क़ की लगी जो ,खुद-ब-खुद लगी
जब लग गई तो अब न बुझाने की बात कर
जब तेरी दास्तां में मेरी दास्तां नहीं
बेहतर यही, न ऐसे फ़साने की बात कर
कुछ रोशनी भी आएगी ताजी हवा के साथ
उठती हुई दीवार गिराने की बात कर
उठने लगा है फिर वही नफ़रत का इक धुँआ
’आनन’ तू साथ चल वा बुझाने की बात कर
-आनन्द.पाठक
09413395592
छूटे हुए जो, साथ में लाने की बात कर
दिल पे खिंची लकीर मिटाने की बात कर
जो बात आम थी जिसे दुनिया भी जानती
बाक़ी बचा ही क्या ? न छुपाने की बात कर
जो तू नहीं है ,उस को दिखाने में मुब्तिला
जितना है बस वही तू दिखाने की बात कर
देखा नहीं है तूने चिरागों के हौसले
यूँ फूँक से न इनको डराने की बात कर
ये आग इश्क़ की लगी जो ,खुद-ब-खुद लगी
जब लग गई तो अब न बुझाने की बात कर
जब तेरी दास्तां में मेरी दास्तां नहीं
बेहतर यही, न ऐसे फ़साने की बात कर
कुछ रोशनी भी आएगी ताजी हवा के साथ
उठती हुई दीवार गिराने की बात कर
उठने लगा है फिर वही नफ़रत का इक धुँआ
’आनन’ तू साथ चल वा बुझाने की बात कर
-आनन्द.पाठक
09413395592
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें