मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

मंगलवार, 19 मई 2015

आंसु भी बनने लगे है कि सपने













आंखियों मे आंसु मेरी थे ओ-साथी
सपनो कि आहट न कोई यहां थी
जब से हुये हो  तुम मेरे  अपने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

देख के हमको जो तुम मुस्कुरा दी
लाखों ये खुशियां इस मन में ला दी
मीठे  से अरमां  लगे  है मचलने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

परदा गिरा के जो तुमने दिया गम
नही जानते अब जियें या मरें हम
दिल का परिंदा  लगा अब तडपने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

शरमा के तुमने यें अंख जो मिला दी
इस जख्मी से दिल को बस इक दवा दी
अनदेखी सी हसरत  लगी है  पनपने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

जरा यूं सरक के तूमने इशारा किया है
डूबती कश्ती को इक किनारा दिया है
तेरे मुहल्ले के  लडके  लगे है कलपने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

लटो को जो अपनी यें झटका दिया है
गुलाबों को कितने ही बिखरा दिया है
धडकन भी अब तो लगी  है  महकने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने

सुर्ख आंचल जो तुने यूं बिखरा दिया है
इन चिगांरियों को बस हवा सा दिया है
गर्म शोला सा तन में लगा है दहकने
आंसु  भी  बनने  लगे है  कि सपने


-जितेन्द्र तायल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें