विरासत
बनवारी लाल जी बहुत परेशान हैं.
कड़े संघर्ष के उपरान्त वह वहां पहुंचे हैं जहां देश के इक्का-दुक्का लोग ही
अपने बल-बूते पर पहुँच पाते हैं. उन्होंने कितने कष्ट उठाये, कितना बलिदान दिया
इसका अनुमान हर कोई नहीं लगा सकता; पर अंततः वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बन ही गए
थे. लेकिन आज नई समस्या खड़ी हो गयी है.
आप गलत सोच रहे हैं, प्रधान मंत्री ने उनके और उनके विश्वस्त लोगों को
मरवाने की कोई साजिश अभी तक नहीं रची है. न ही उनकी पार्टी के किसी सदस्य को जेल भेजा
गया है. वैसे बनवारी लाल जी ने मन ही मन कई बार ईश्वर से प्रार्थना की है कि किसी
तरह उनका नाम भी प्रधान मंत्री के नाम के साथ जुड़ जाये और टीवी और समाचार पत्रों
में उनकी भी उतनी ही चर्चा हो जितनी दिल्ली के मुख्यमंत्री की होती है. पर ऐसा
सौभाग्य उन्हें अभी प्राप्त नहीं हुआ.
बनवारी लाल अपने इकलौते बेटे के कारण परेशान हैं. उसने कहा है कि वह
राजनीति से दूर रहेगा.
उसकी बात सुन बनवारी लाल जोर से हंस पड़े थे. उन्हें लग रहा था कि बेटा मज़ाक
कर रहा था. अगले ही पल उन्हें अहसास हुआ की वह गम्भीर था.
‘तुम जानते भी हो कि क्लर्क बनने के लिए भी व्यक्ति में कुछ योग्यता होनी
चाहिये. पाँच रिक्तियां होती हैं और पचास हज़ार उम्मीदवार आ जाते है. परीक्षा,
इंटरव्यू, मेडिकल टेस्ट और पता नहीं क्या-क्या. और सबसे महत्वपूर्ण बात, पुलिस में
रिकॉर्ड साफ़ होना चाहिए, तब जाकर आदमी एक अदना सा क्लर्क बनता है. यहाँ तुम
बैठे-बिठाये मुख्यमंत्री बन सकते हो’.
‘बन सकता हूँ, पर मुझे यह सब मंज़ूर नहीं.’
‘अरे ना-समझ, देखो अपने आसपास, ऐसे-ऐसे लोग मंत्री, मुख्यमंत्री बन गए हैं जो
ढंग से दो लफ्ज़ भी नहीं बोले पाते. तुम तो इतने पढ़े-लिखे, सुलझे विचारों वाले लड़के
हो. तुम जैसे लोगों की ही देश को आवश्यकता है.’
‘मैं प्रशासनिक सेवा में जाउंगा.’
‘सपने देखना अच्छा होता है, पर यथार्थ को समझना आवश्यक होता है.’
‘मैं प्रयास तो कर सकता हूँ.’
‘अरे, तुम मेरी समस्या नहीं समझ रहे, अगर तुम पीछे हट गए तो मुझे विवश हो
कर इतवारी के बेटे को अपना उत्तराधिकारी बनाना पड़ेगा. आठवीं फेल है. पचासों ममाले
दर्ज हैं उसके खिलाफ़.’ इतवारी उनकी पत्नी का लाड़ला भाई है. उनके हर विरोधी का
उचित समाधान उसने ही किया था.
‘यह निर्णय तो लोग करेंगे.’
‘लोग ही तो चाहते हैं की मेरे परिश्रम का फल मेरा परिवार भोगे. सब कह रहे
हैं कि अगले चुनाव से पहले तुम्हें पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाये. फिर चुनाव के
बाद तुम मुख्यमंत्री का पद भी सम्भाल लो.’
‘आप किसी और को चुन लें’. इतना कह बेटा चल दिया था. अब बनवारी लाल परेशान
हैं कि अपनी विरासत किस को सौंपे.
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