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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

एक लघु व्यथा : खाट...खटमल...खून..[व्यंग्य]

एक लघु व्यथा  : खाट...खटमल....खून...[व्यंग्य]

[नोट -आप ने ’बेताल-पच्चीसी’ की कहानियाँ ज़रूर पढ़ी होंगी जिसमें राजा विक्रमादित्य जंगल में , बेताल को डाल से उतार कर,और कंधे पर लाद कर  चलते हैं और बेताल रास्ते भर एक कहानी सुनाते रहता है ।बेताल  शर्त रखता है कि अगर राजा  ने रास्ते कुछ बोला तो वह  उड़ कर  डाल पर जा कर लटक जायेगा.....
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 ......................राजा विक्रमादित्य  ,बेताल को डाल से उतार कर चलने लगे ।
-बेताल ने कहा-हे विक्रम !- रास्ता लम्बा है तू थक जायेगा .चलो  मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूँ..
राजन चुप रहे
’तो सुन ’
राजन चुप रहे
प्राचीन काल में एक राजा थे  जिसकी कई पीढ़ियों ने राज्य पर शासन किया } अभी राजकुमार का राज्याभिषेक भी नहीं हुआ था  कि राजा के हाथ से  सत्ता  निकल गई ।और वह सत्ता विहीन हो गए। ।राजा के पुराने वफ़ादार और दरबारी चाहते थे कि किसी प्रकार राजकुमार जी का राज्याभिषेक हो जाए ...सत्ता सम्भाल लें तो हम सब भी वैतरणी पार कर लें। वे  हर प्रकार से उन्हें आगे ठेलने की कोशिश कर रहे थे कि राजकुमार जी आगे बढ़े गद्दीनशीन हो जायें परन्तु  राज कुमार जी ऐसे कि आगे बढ़ ही नहीं पा रहे हैं।वह कोशिश तो बहुत कर रहे थे ।समर्थकों ने नारा भी लगाया कि भईया जी आप आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ है .जब तक सूरज चाँद रहेगा ,भईया जी का नाम रहेगा ,सबका साथ ..भईया जी का हाथ .,.परन्तु  भईया जी वहीं के वहीं रह जाते ...जब लोग ज़्यादे ज़ोर लगा कर ठेलते थे तो राजकुमार जी 2-3 महीने के लिए ’गुप्तवास " में चले जाते थे फिर उनके समर्थक उन्हें खोजते फिरते थे । किसी ने अगर भईया जी से आगे निकल कर नेतॄत्व करना चाहा तो कुछ दरबारी लोग  उसे पीछे ठकेल देते थे  राजकुमार जी के रहते तुम्हारी ये मजाल .....जिसने कोशिश की उसको पीछे ठकेल दिया .गया ....भईया जी के पीछे ..।और इस प्रकार राजकुमार  जी आगे -आगे चलते रहे...बस चलते ही रहे ...
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कुछ सलाहकारों ने सलाह दिया कि राजकुमार जी को अगर फ़र्श से अर्श तक उठाना है ..सिंहासन पर बैठाना है तो पहले "खाट’ पर बैठाना होगा...

-’विक्रम ! खाट तो समझता है न ।खाट को ’खटिया’ चारपाई ,,शैय्या भी कहते हैं हैं । ’फ़ेसबुक’..वाली पीढ़ी  संभवत: ’खटिया ’नाम से परिचित न हो ,मगर -’सरकाय लो खटिया जाड़ा लगे’- से ज़रूर परिचित होती है ।जाड़े में खटिया की उपयोगिता ज़रूर समझती  है ,’सरकाने के काम आती है --’सरकाने’ की सुविधा सिर्फ़ खटिया में ही है --’किंग साइज़’.और .क्वीन साइज़ बेड में   नहीं । क्वीन साइज़ बेड को ’सरकाने’ की सुविधा नहीं होती है- खुद ’सरकाने”की सुविधा होती है
खाट का हमारे जीवन से क्या संबन्ध है तू तो जानता ही होगा। जन्म से लेकर कर मॄत्यु तक . ..जीवन के साथ भी..जीवन के बाद भी...बिल्कुल जीवन बीमा निगम की तरह ..जीवन के बाद . दान करते है  खाट  --किसी  महापात्र को।खाप पंचायत के ताऊ जी इसी खटिया  पर बैठ कर हुक्का गुड़गुड़ाते है ..... हुकुम सुनाते है और समाज की इज्जत बचाते हैं...।
खाट है तो खटमल भी होगा । खटमल न देखा हो तो देवानन्द की  फ़िल्म ,’छुपा रुस्तम’  देख लेना -"धीरे से जाना ’खटियन’ में ..ओ खटमल ...धीरे से जाना खटियन में । जिसमे देवानन्द जी खटमल को उकसा  रहे हैं जा बेटा जा खटियन में और हीरोइन का खून चूस ..मेरी तो वो सुनती नहीं है , तू ही जा सुना ।
अब खटमल है तो खून चूसेगा ही ...धीरे धीरे चूसे , जोर से चूसे...बार बार चूसे.   या 5-साल में एक बार चूसे . छुप छुप के चूसे या सरेआम चूसे ...मगर चूसेगा  ज़रूर खून। ज़रूरी नहीं कि ’गाँधी-टोपी’ लगा कर ही चूसे  । राजनीति में भी बहुत खटमल पैदा हो गए हैं और हमारी खाटो में घुस गए हैं ..चैन से सोने भी नहीं देते

सलाहकारों ने सलाह दिया कि राजकुमार जी को अगर सिंहासन पर बैठना है तो पहले "खाट’ पर बैठना होगा...पी0के0 साहब इस रहस्य को जानते हैं । सलाह दे दिया ’खाट पंचायत: करो..खाट पर चर्चा करो  ..यही ’खाट’- विरोधी पार्टी की नाक काटेगी। अब तो खाट पर ही भरोसा रह गया । जनता का क्या है ...खटिया बिछा दी तो बिछा दी..नहीं तो  खड़ी कर दी  ....दिल्ली  में एक पार्टी के लिए बिछा दिया तो बिहार में दूसरी पार्टी की   खड़ी कर दी। जनता का  क्या है --’किसी को तख्त देती है ,किसी को ताज देत्ती है  ..बहुत खुश हो गई जिस पर उसी को राज देती है "वरना खाज देती है । इसी से चुनाव वैतरणी पार हो जाये शायद ,अब तो इसी खाट का  भरोसा है ,जनता पर  भरोसा नहीं  ।

घोषणा हो गई ’खाट’  पर चर्चा  की ।..जगह जगह खाट बिछाए जाने लगे ...जहां जहाँ  चुनाव है वहीं खाट  बिछाना है ..फ़ालतू में खाट तुड़वाने का नहीं। खाट का टेन्डर होने लगा ..सप्लाई ली जाने लगी..सप्लायर्स गदगद हो गए ...खाट पहुँचाए जाने लगे विधान सभा क्षेत्रों  में.... जनता आयेगी ..... खाट पर बैठेगी--हम. सपने बेचेंगे....मुफ़्त में पानी ...मुफ़्त में बिजली ... किसानो का कर्ज माफ़ करेंगे.... हम जानते है कि जनता ’मुफ़्त खोर’ हो गई है ..यही भुनाना है...जनता ग्राहक है  और हम सौदागर । ग्राहक देवता होता है ...देवता को आसन देना है  ,,,सो  खाट का आसन दे दिया ..आप आओ ...हमारे  वादे सुनो ...आराम से.खाट पर बैठ कर ...आधे घंटे में हमें सुनना है आप का दर्द ...आप की समस्या ..आप के कष्ट... फिर 5-साल के लिए आप निश्चिन्त हो जायें .हम आप की सेवा करेंगे अगले 5-साल तक .  ...बस समझें  कि आप का कष्ट हमारा कष्ट ..हमारा ’हाथ’-आप के साथ...न हो तो दिल्ली वालों से पूछ लें,,,,हो सकता है कि आप को मुफ़्त में कोई भाई साहब साइकिल दे.दे..मोबाईल फ़ोन दे,दे,,,लैप टाप दे दे .कोई बहन जी हाथी भी दे दें ... कुछ टट्पूजिया पार्टी मुफ़्त में दवा दारू की बोतल  भी दे.दें......विरोधी कम्पनी के झाँसे में न आइएगा . नकली माल बेचते है सब के सब  ,नक्कालों से सावधान ... नकली माल से बचें.....और आगामी चुनाव में ’हमारा ’ खयाल’ रखें ...

खाट पंचायत पूरी हुई । नेता जी उड़ कर दूसरी जगह खाट बिछाने चले गए } जनता मुँह देखती रह गई फिर वही खाट उठा कर घर ले गई ।कुछ लोग तो खाट तोड़ कर पाटी पाया भी साथ ले गए।
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 तो हे विक्रम ! अब तू मेरे सवाल का जवाब दे कि जनता  खाट लूट कर क्यों ले गई और कुछ लोग खाट तोड़ तोड़ कर क्यों ले गए । बता ..तू तो बड़ा ज्ञानी है.. न्याय करता है... न्यायी बने फिरता है ,,,
राजा विक्रमादित्य चुप रहे
;बता कि जनता  ने खाट क्यों लूटी ???? ,...जवाब दे नहीं तो तेरे सर के टुकड़े टुकड़े कर दूँगा....
राजन सहम गए . बेताल का क्या भरोसा ...कही सचमुच ही न सर के टुकड़े कर दे ।

 अत: बोल उठे-"हे बेताल ! तो सुन ! जनता भोली थी मगर  हुशियार थी ..हर बार "पितृ-पक्ष में कौआ-पूजन"..देखती है ...राजकुमार की बातों का भरोसा नहीं  .पता नहीं राज्याभिषेक होगा भी कि नहीं ..अत: नौ नगद ,न तेरह उधार ,,,जो हाथ लगा वहीं नगद...सो जनता ने खाट लूट ली और घर चलते बनी  .एक बात और ,  5-साल ये खटमल धीरे धीरे  खटियन में घुस जायेंगे और  धीरे धीरे खून चूसेंगे।चैन से सोने भी नहीं देंगे  अत: ...’न रहेगी खाट ,न रहेगा खटमल ,न चूसेंगे  खून" -न रहेगा बाँस ,न बाजेगी बँसुरी ....

-तो फिर कुछ लोगो ने खाट क्यों तोड़ा ? -बेताल ने पूछा
-हे बेताल ! कुछ गरीब किसानों के घरों  में कई दिनों  से ’चूल्हा नहीं जला था ,सो उसे लकड़ी की ज़रूरत थी कि पेट की आग बुझाने के लिए ..चूल्हा जला सकें । भाषण से ...वादों से...नारों से .. पेट की आग नहीं बुझती ,,...चूल्हे का जलते रहना ज़रूरी है अत:  उसने खाट को तोड़ कर लकड़ी की व्यवस्था....
-हे विक्रम !तू तो बड़ा ज्ञानी है ,परन्तु  तूने एक ग़लती कर दी.... शर्त तोड़ दी,,,तू बोल उठा...और .यह ले... मैं चला उड़ कर..
..... और एक बार फिर बैताल डाल पर जा कर उल्टा लटक गया



-आनन्द.पाठक-
08800927181

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22-10-2016) के चर्चा मंच "जीने का अन्दाज" {चर्चा अंक- 2503} पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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