अनुभूतियाँ 05
1
सच ही कहा था तुम ने उस दिन,
" जा तो रही हूँ सजल नयन से"
छन्द छन्द में उभरूँगी मैं,
गीत लिखोगे कभी लगन से। "
2
सुख-दुख का ताना-बाना है,
जीवन है रंगीन चदरिया ।
नयनो के जल से धोता हूँ,
हँसी खुशी यह कटे उमरिया।
3
बरसों से सच समझ रहे थे ,
लेकिन वह था भरम हमारा।
भला किया जो तोड़ गई तुम
आभारी दिल, करम तुम्हारा ।
4
दीप भले हो और किसी का
ज्योति प्रीत की आती तो है।
पीड़ा मेरी चुपके चुपके ,
किरनों से बतियाती तो है
-आनन्द.पाठक-
सुंदर निर्गुण छंद..सुंदर सृजन ..
जवाब देंहटाएंकृपा आप की-सादर
हटाएंअति उत्तम सृजन
जवाब देंहटाएं्धन्यवाद आप का --सादर
हटाएंसच ही कहा था तुम ने उस दिन,
जवाब देंहटाएं" जा तो रही हूँ सजल नयन से"
छन्द छन्द में उभरूँगी मैं,
गीत लिखोगे कभी लगन से। "
वाह श्रीमान! क्या खूब लिकग है आपने। बहुत ही सुंदर कविता! प्रणाम स्वीकार करें 🙏
इनायत आप की--सादर
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएं्धन्यवाद--सादर
हटाएंअनुपम! छंद में व्यक्त होने की बात । तब जब लिखोगे लगन से । पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएं्जी---आभार आप का
हटाएंवाह! बहुत सुंदर सृजन मन को छूता।
जवाब देंहटाएंसादर
आभार आप का-सादर
जवाब देंहटाएंआशीर्वाद आप का -सादर
जवाब देंहटाएंसुन्दर अनुभूतियाँ...
जवाब देंहटाएंआभार आप का-सादर
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