चन्द माहिए
:1:
यह दिल ख़ामोश रहा
कह न सका कुछ भी
इसका अफ़सोस रहा
;2:
ये कैसी रवायत है ?
जाने क्यों तुम को
मुझ से ही शिकायत है ?
:3:
तुम ने ही बनाया है
ख़ाक से जब मुझ को
फिर ऐब क्यों आया है ?
:4:
सच है, इनकार नहीं
’तूर’ पे आए ,वो
लेकिन दीदार नहीं
5
मुझको अनजाने में
लोग पढ़ेंगे कल
तेरे अफ़साने में
-आनन्द.पाठक-
बहुत सुन्दर माहिए।
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