एक ग़ज़ल होली पर
न उतरे ज़िन्दगी भर जो, लगा दो रंग होली में,
हँसीं दुनिया नज़र आए , पिला दो भंग होली में ।
न उतरी है न उतरेगी, तुम्हारे प्यार की रंगत,
वही इक रंग सच्चा है, न हो बदरंग होली में ।--
कहीं ’राधा’ छुपी फिरती, कहीं हैं गोपियाँ हँसतीं,
चली कान्हा कि जब टोली, करे हुड़दंग होली में ।
’परे हट जा’-कहें राधा-’कन्हैया छोड़ दे रस्ता’
“न कर मुझसे यूँ बरज़ोरी, नहीं कर तंग होली में” ।
गुलालों के उड़ें बादल, जहाँ रंगों की बरसातें,
वहीं अल्हड़ जवानी के फड़कते अंग होली में ।
थिरकती है कहीं गोरी, मचलता है किसी का दिल
बजे डफली मजीरा हैं, बजाते चंग होली में ।
सजा कर अल्पना देखूँ, तुम्हारी राह मैं ’आनन’
चले आओ, मैं नाचूँगी, तुम्हारे संग होली में ।
-आनन्द,पाठक-
होली का आभास कराती सुन्दर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंसर ये ग़ज़ल आनन्द पाठक जी की है न 😍😍❤️❤️❤️वाह
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआभार आप का
हटाएंसादर
सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंजी बन्दा हाज़िर है
जवाब देंहटाएंसर
्सदा की तरह आभार आप का
जवाब देंहटाएंसादर