---डायरी के पन्नों से-----
"फ़गुनाहट" शुरू हो गई---हवाओं में मादक गन्ध भर गए --डब्बे के रंग होली खेलने के लिए आतुर
हो रहे हैं -- ब्रज में गोप गोपियों की तैयारी -एक दूसरे को रँगने की तैयारी ---
इसी सदर्भ में--------होली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ ----
एक गीत : हॊली पर
लगा दो प्रीति का चन्दन प्रिये ! इस बार होली में
महक जाए ये कोरा तन-बदन इस बार होली में
ये बन्धन प्यार का है जो कभी तोड़े से ना टूटे
भले ही प्राण छूटे पर न रंगत प्यार की छूटे
अकेले मन नहीं लगता प्रतीक्षारत खड़ा हूँ मैं
प्रिये ! अब मान भी जाओ हुई मुद्दत तुम्हे रूठे
कि स्वागत में सजा रखे हैं बन्दनवार होली में
जो आ जाओ महक जाए बदन इस बार होली में
सजाई हैं रंगोली इन्द्रधनुषी रंग भर भर कर
मैं सँवरी हूँ तुम्हारी चाहतों को ध्यान में रख कर
कभी ना रंग फ़ीका हो सजी यूँ ही रहूँ हरदम
समय के साथ ना धुल जाए यही लगता हमेशा डर
निवेदन प्रणय का कर लो अगर स्वीकार होली में
महक जाए ये कोरा तन-बदन इस बार होली में
ये फागुन की हवाएं है जो छेड़े प्यार का सरगम
गुलाबी हो गया है मन ,शराबी हो गया मौसम
नशा ऐसा चढ़ा होली का ख़ुद से बेख़बर हूँ मैं
कि अपने रंग में रँग लो मुझे भी ऎ मेरे,हमदम !
मुझे दे दो जो अपने प्यार का उपहार होली में
महक जाए ये कोरा तन-बदन इस बार होली में
-आनन्द,पाठक-
होली का सुरूर और प्यार का रंग ..चन्दन बन महक रहा ... मनोहारी गीत ...
जवाब देंहटाएंआभार आप का संगीता जी
हटाएंआप का ब्लाग देखा बहुत अच्छा लगा--होम पेज भी
इस थीम का कॊई लिंक है --जो आप शेयर कर सकें
मैं भी अपना नया ब्लाग इसी तरह बनाना चाह्ता हूँ
सादर
बहुत खूब लिखा आनंद जी ..ये फागुन की हवाएं है जो छेड़े प्यार का सरगम...फागुन की सरसराहट के साथ ...वाह
जवाब देंहटाएंआभार आप का
हटाएंसादर
बहुत सुन्दर और सार्थक गीत।
जवाब देंहटाएं्कृपा आप की शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर
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