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मंगलवार, 16 मार्च 2021

विधाता छंद 'मौक्तिका' (पापा का लाडला)

विधाता छंद
(पदांत 'तुम्हें पापा', समांत 'आऊँगा')

अभी नन्हा खिलौना हूँ , बड़ा प्यारा दुलारा हूँ;
उतारो गोद से ना तुम, मनाऊँगा तुम्हें पापा।।
भरूँ किलकारियाँ प्यारी, करूँ अठखेलियाँ न्यारी;
करूँ कुछ खाश मैं नित ही, रिझाऊँगा तुम्हें पापा।।

इजाजत जो तुम्हारी हो, करूँ मैं पेश शैतानी;
हवा में जोर से उछलूँ, दिखाऊँ एक नादानी।
खुला है आसमाँ फैला, लगाऊँगा छलाँगें मैं;
अभी नटखट बड़ा हूँ मैं, सताऊँगा तुम्हें पापा।।

बलैयाँ खूब मेरी लो, गले से तुम लगा करके;
करूँ शैतानियाँ मोहक, करो तुम प्यार जी भरके।
नहीं कोई खता मेरी, लड़कपन ये सुहाना है;
बड़ा ही हूँ खुरापाती, भिजाऊँगा तुम्हें पापा।।

चलाओ चाल अंगुल से, पढ़ाओ पाठ जीवन का;
बताओ बात मतलब की, सिखाओ मोल यौवन का।
जमाना याद जो रखता, वही शिक्षा मुझे देना;
'नमन' मेरा तुम्हें अर्पण, बढाऊँगा तुम्हें पापा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

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