विधाता छंद
(पदांत 'तुम्हें पापा', समांत 'आऊँगा')
अभी नन्हा खिलौना हूँ , बड़ा प्यारा दुलारा हूँ;
उतारो गोद से ना तुम, मनाऊँगा तुम्हें पापा।।
भरूँ किलकारियाँ प्यारी, करूँ अठखेलियाँ न्यारी;
करूँ कुछ खाश मैं नित ही, रिझाऊँगा तुम्हें पापा।।
इजाजत जो तुम्हारी हो, करूँ मैं पेश शैतानी;
हवा में जोर से उछलूँ, दिखाऊँ एक नादानी।
खुला है आसमाँ फैला, लगाऊँगा छलाँगें मैं;
अभी नटखट बड़ा हूँ मैं, सताऊँगा तुम्हें पापा।।
बलैयाँ खूब मेरी लो, गले से तुम लगा करके;
करूँ शैतानियाँ मोहक, करो तुम प्यार जी भरके।
नहीं कोई खता मेरी, लड़कपन ये सुहाना है;
बड़ा ही हूँ खुरापाती, भिजाऊँगा तुम्हें पापा।।
चलाओ चाल अंगुल से, पढ़ाओ पाठ जीवन का;
बताओ बात मतलब की, सिखाओ मोल यौवन का।
जमाना याद जो रखता, वही शिक्षा मुझे देना;
'नमन' मेरा तुम्हें अर्पण, बढाऊँगा तुम्हें पापा।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
वाह अति सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंआत्मिक आभार
हटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण।
जवाब देंहटाएंआ0 शास्त्री जी बहुत बहुत आभार।
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