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शनिवार, 7 अगस्त 2021

एक ग़ज़ल

 

एक ग़ज़ल

अगर मिलते न तुम मुझको, ख़ुदा जाने कि क्या होता,
सफ़र तनहा मेरा होता कि दिल फिर रो दिया होता ।  


हमें खुद ही नहीं मालूम किस जानिब गए होते,
इधर जो मैकदा होता, उधर जो बुतकदा  होता ।       


चलो अच्छा हुआ, ज़ाहिद! अलग है रास्ता अपना,
जो मयख़ाने के दर पर सामना होता तो क्या होता।    


निक़ाब-ए-रुख़ उठा लेते वो, मेरा दिल सँवर जाता,
हक़ीक़त सामने होती, मज़ा कुछ दूसरा होता।         


ये दुनिया भी किसी जन्नत से कमतर तो नहीं दिखती,
हसद से या अना से तू जो बाहर आ गया होता।      


भले कुछ दो न झोली में, ये दिल अपना फ़क़ीराना,
फ़क़ीरों के लबों पर तो सदा हर्फ़-ए-दुआ होता।        


मुहब्बत भर गई होती सभी के दिल में जो”आनन’,
तो फिर यह देखती दुनिया ज़माना क्या से क्या होता ! 


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आनन्द.पाठक-


हसद = ईर्ष्या ,जलन,डाह
अना = अहम , अहंकार ,घमंड

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