नोट - आजकल चुनाव का मौसम चल रहा है ।उसी सन्दर्भ में।
एक ग़ज़ल
झूठ पर झूठ वह बोलता आजकल ,
क़ौम का रहनुमा बन गया आजकल ।
चन्द रोज़ा सियासत की ज़ेर-ए-असर,
ख़ुद को कहने लगा है ख़ुदा आजकल ।
साफ़ नीयत नहीं, ना ही ग़ैरत बची ,
शौक़ से दल बदल कर रहा आजकल ।
उसकी बातों में ना ही सदाक़त रही ,
उसको सुनना भी लगता सज़ा आजकल ।
तल्ख़ियाँ बढ़ गई हैं ज़ुबानों में अब ,
मान-सम्मान की बात क्या आजकल ।
आँकड़ों की वह घुट्टी पिलाने लगा ,
आँकड़ों से अपच हो गया आजकल ।
यह चुनावों का मौसम है ’आनन’ मियाँ ,
खोल कर आँख चलना ज़रा आजकल ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
ज़ेर-ए-असर = प्र्भाव से
सदाक़त = सच्चाई
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