नाग छंद विधान
(स्वनिर्मित नव छंद)
नाग छंद कुल चार पद का छंद है जिसके प्रत्येक पद में 29 मात्रा होती है। तुकांतता दो दो पद में है। हर पद में दो दो चरण हैं। इस प्रकार छंद में कुल 8 चरण हैं। इस छंद में चार बहु प्रचलित छंदों का समावेश है। अब हर चरण का विधान ठीक से देखें।
1 और 3 चरण = श्रृंगार छंद (16 मात्रा); मात्रा बाँट 3-2-8-3 (ताल)।
2 और 4 चरण = रोला छंद का सम चरण (13 मात्रा); मात्रा बाँट 3-2-8।
5 और 7 चरण = दोहा छंद का विषम चरण (13 मात्रा); मात्रा बाँट 8-2-1-2।
6 और 8 चरण = चौपाई छंद (16 मात्रा); ठीक चौपाई छंद वाला विधान।
छंद जिस पंचकल (3-2) से प्रारंभ होता है उसी पंचकल पर समाप्त होना चाहिए। कुण्डली मार के बैठना नाग की विशेषता है और यह छंद भी कुण्डलाकृति में है जो छंद के नाम की सार्थकता दिखाता है। छंद के चौथे चरण के अठकल की पांचवे चरण में आवृत्ति होती है। लय तथा गायन में यह बहुत ही मधुर छंद है।
स्वरचित उदाहरण-
नाग छंद "सार तत्व"
सुखों का है बस ये ही सार, प्रीत सब से रख नर ले।
जगत में रहना है दिन चार, राम-रस अनुभव कर ले।
अनुभव कर ले प्रीत यदि, प्राणी कर ले नाश दुखों का।
भव-सागर के बंध में, भर लेता भंडार सुखों का।।
द्रष्टव्य: छंद जिस पंचकल (सुखों का) से प्रारंभ हो रहा है उसी पर समाप्त हो रहा है। चौथे चरण के रोला के अठकल (अनुभव कर ले) की पुनरावृत्ति पंचम चरण के दोहा में हो रही है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
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