चन्द माहिए-
1
हर पल जो गुज़र जाता,
छोड़ के कुछ यादें
फिर लौट के कब आता ?
2
होती भी अयाँ कैसे?
दिल तो ज़ख़्मी है,
कहती भी ज़ुबाँ कैसे?
3
तुम ने मुँह
फेरा है,
टूट गए सपने,
दिन में ही
अँधेरा है।
4
शोलों को भड़काना,
ये भी सज़ा कैसी
भड़का के चले
जाना?
5
कितने बदलाव जिए,
सोच रहा हूँ मैं,
कागज की नाव
लिए।
-आनन्द पाठक-
समय को तो खुद अपने लिए भी समय नहीं रहता....!
जवाब देंहटाएं