गाथा हिन्दुस्तान की
घटती बढती महिमा सबकी, घटी नहीं बेईमान की |
सतयुग,त्रेता,कलियुग सबमें,-सदा चली बेईमान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
गांधी जी का शिष्य सड़क पर,-अब भी धक्के खाए,
फूट डाल कर राज कर रहा,-नेता माल उड़ाए |
ऐसी - तैसी करता रहता,- पूरे हिन्दुस्तान की,
काम नरक जाने के लेकिन,-इच्छा स्वर्ग-विहान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
एन.जी.ओ.को बना माध्यम,- खाता 'माल मलीदा',
कागज में अनुदान बांटना,- इसका धन्धा सीधा |
गिद्धों जैसे गटक रहे हैं,- बोटी हिन्दुस्तान की,
अपने हित में भेंट चढाते,-भारत के सम्मान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
वोट खरीदो, शासक बन कर,-भूलो पांच बरस को,
जनता खोजे, खोज न पाए,-तरसे रोज दरस को |
डोर हाथ में रक्खो अपने,-चेयर-मैन, परधान की |
टैक्स लगा कर माल उड़ाना,- परम्परा शैतान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
मंहगा राशन बेच रहा है,-खुले आम क्यों लाला,
सुबह-शाम मन्दिर में जाकर,-फेर रहा क्यों माला |
जीवन-दायी दवा ब्लैक में,-पूजा किस प्रतिमान की,
कुत्तों से भी बदतर हालत,-लगती है इन्सान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
माल मिलावट वाला बेचे,-कल्लू - मल हलवाई,
इंस्पैक्टर क्यों पकड़े उसको,-चखता रोज मलाई |
अधिक मछलियां गन्दी मिलतीं,इस तालाब महान की,
वेतन बढता भ्रष्टजनों का,-यात्रा बढे विमान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
सरेआम बाला को घर से,-गुण्डा हर ले जाए,
पीड़ितजन पर मित्र पुलिस ही,- गुण्डा-एक्ट लगाए |
कुम्भकरण जैसी हो जाए,-दशा 'पुलिस बलवान' की,
गुण्डे, नेता रहें सुरक्षित,-कीमत कब 'इन्सान' की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
महिला-कालेज की सड़्कों पर,-बिकतीं गुप्त किताबें,
ठेके लेकर कोचिंग वाले,- इच्छित चयन करा दें |
निज शिष्या से इश्क लड़ाए,-हुई सोच विद्वान की,
प्रोटेक्शन पा जाए कोर्ट से,-'लक' मजनूं संतान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
रोज पार्क में जवां दिलों की,-होती लुक्का-छिप्पी,
सुबह - सवेरे स्वच्छ्क बीने,-एफ.एल.,माला-टिक्की |
बीस रूपये में आंख बन्द हो,चीफ-गार्ड मलखान की,
देख दुर्दशा भी शरमाए,-दुर्गत हुई विधान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
ग्राम- प्रधान हुई है जब से,- घीसू की घर वाली,
सरजू - दूबे बैठे घर में,-किस विधि चले दलाली |
हर अनुदान स्वंय खाजाता,-चिन्ता किसे विधान की,
अपना हुक्म चलाता घीसू,-चलती नहीं प्रधान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
बिन रिश्वत के काम करें क्यों,-बाबू या पटवारी,
मोटी-मोटी रिश्वत खाते,-लगभग सब अधिकारी |
हक बनती जाती है रिश्वत,-भारत देश महान की,
स्वीसबैंक में रखें ब्लैक सब,हर धरती भगवान की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |
काम - चोर, रिश्वत-खोरों की,-तनखा बढती जाती,
रोटी और लंगोटी जन की,-छोटी होती जाती |
अन्धी पीसे कुत्ते खाएं, हालत देश महान की ,
खिल्ली उड़ा रहे हैं मिलकर,जनता के कल्याण की |
देवभूमि भगवान की,-
ये गाथा हिन्दुस्तान की |