कैसे कैसे दिन भी अब आने लगे हैं....
थैले पड़े टमाटर भी मुसकाने लगे हैं...!!
दिन गुजरता था सूखी रोटी पकड़े....
जमे घी रुपया भी पिघलाने लगे हैं...!!
चाय फीकी पड़ती आजकल की...
अदरक का स्वाद बंदर सुनाने लगे हैं....!!
सलाद मे कटे मिलता था कल तक....
आजकल प्याज़ भी आँखें मिलाने लगे हैं...!!
थैले पड़े टमाटर भी मुसकाने लगे हैं...!!
दिन गुजरता था सूखी रोटी पकड़े....
जमे घी रुपया भी पिघलाने लगे हैं...!!
चाय फीकी पड़ती आजकल की...
अदरक का स्वाद बंदर सुनाने लगे हैं....!!
सलाद मे कटे मिलता था कल तक....
आजकल प्याज़ भी आँखें मिलाने लगे हैं...!!
--मिश्रा राहुल
बहुत सुन्दर रचना।।
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार!
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जवाब देंहटाएंकृपया इसे पढ़ें...
जवाब देंहटाएंवाह....
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