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सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

इशारों को समझो----पथिकअनजाना—पोस्ट क्रमांक 481




गर तुम हर दिन आत्मा के  इशारों को समझो
गर हर दिन तुम सुकर्मों में खुद को डूबने दो
प्रकृति काअचम्बा अगले साल देखते रह जावोगे
नायाब भैंट उन्नति की पा प्रकृति के हो जावोगे
पाया मैंने युद्ध बाहर नही भीतर हुआ करते हैं
कदम कदम आत्मा करती सचेत लोभ बहकाते
हावी हो अंह,लोभ,मोह कदम आत्मा के थम जाते
मायूस आत्मा मृत शरीर ढोती विजयी हम होते हैं
सत्यता नकबूल हमें दुखी होते भाग्य को रोते हैं

पथिक अनजाना

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