कुछ त्रिपदियाँ ...
शिरोमणि कहलाने वाले !!
क्या पीड़ा हर लोगे तुम ...
क्या व्यथाओं को समझ सकोगे तुम ?
इन चिथड़ों मे जीवन है
चिथड़ों की हो रही चिन्दियाँ
क्या ये चिन्दियाँ समेट सकोगे तुम ?
भग्न हो चुका मन प्राण है
खो रही आशाओं की रशमियां
क्या रश्मियां प्रेषित कर सकोगे तुम ?
पी रहे हम हलाहल हैं
फिर क्यों कोलाहल है
क्या जीवन अमृत दे सकोगे तुम ?
शिरोमणि कहलाने वाले !!
क्या पीड़ा हर लोगे तुम ...
क्या मधुबन की खुशबू दिला सकोगे ?
अन्नपूर्णा बाजपेई
शिरोमणि कहलाने वाले !!
क्या पीड़ा हर लोगे तुम ...
क्या व्यथाओं को समझ सकोगे तुम ?
इन चिथड़ों मे जीवन है
चिथड़ों की हो रही चिन्दियाँ
क्या ये चिन्दियाँ समेट सकोगे तुम ?
भग्न हो चुका मन प्राण है
खो रही आशाओं की रशमियां
क्या रश्मियां प्रेषित कर सकोगे तुम ?
पी रहे हम हलाहल हैं
फिर क्यों कोलाहल है
क्या जीवन अमृत दे सकोगे तुम ?
शिरोमणि कहलाने वाले !!
क्या पीड़ा हर लोगे तुम ...
क्या मधुबन की खुशबू दिला सकोगे ?
अन्नपूर्णा बाजपेई
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (20.02.2014) को " जाहिलों की बस्ती में, औकात बतला जायेंगे ( चर्चा -1530 )" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें, वहाँ आपका स्वागत है, धन्यबाद ।
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