---’तीये’ की बैठक चल रही है । पंडित जी प्रवचन कर रहे हैं -"अस्मिन असार संसारे !..इस असार संसार में ..जगत मिथ्या है .ईश्वर अंश ...जीव अविनाशी
ज्ञानी ध्यानी लोगो ने कहा है ---पानी केरा बुलबुला अस मानुस की जात... तो जीवन क्या है... पानी का बुलबुला है ...नश्वर है..क्षण भंगुर है..मैं नीर भरी दुख की बदली...उमड़ी थी कल मिट आज चली...जो उमड़ा ..वो मिटा..जो आया है वो जायेगा ,,’जायते म्रियते वो कदाचित...तो फिर किसका शोक ....जो भरा है वो खाली होगा..यही जीवन है यही नश्वरता है गीता में लिखा है -"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय ....अर्थात यह शरीर क्या है माया है ..फटा पुराना कपड़ा है ...आदमी इसे जान ले कि व्यर्थ ही इस कटे-फटे कपड़े को सँवार रहा था तो शरीर छूटने का कोई कष्ट नहीं....शरीर तो दीवार है .मिट्टी की दीवार ..एक घड़े की दीवार की तरह...जल में कुम्भ...कुम्भ में जल है ..बाहर भीतर पानी....फुटा कुम्भ जल जल ही समाना ...यह तथ कहें गियानी---... .."-
--"तुलसी दास जी ने कहा है क्षिति जल पावक गगन समीरा ...जब यह शरीर क्षिति का बना है मिट्टी का बना है तो इसके मिटने का क्या शोक करना.....मिट्टी का तन मिट्टी का मन क्षण भर जीवन मेरा परिचय...तो सज्जनों ! आप सब जानते है ..एक फ़िल्म का गाना है---चल उड़ जा रे पंक्षी कि अब यह देश हुआ बेगाना...शरीर पिंजरा है ..आत्मा पंक्षी है..आत्मा ने पिंजरा छोड़ दिया अब वह और पिंजरे में जायेगी...
पंडित जी ने अपना प्रवचन जारी रखा,, उन्हें आत्मा-परमात्मा जीव के बारे में जितनी जानकारी थी सब उड़ेल रहे थे
और धन ...धन तो हाथ का मैल है ...सारा जीवन प्राणी इसी मैल के चक्कर में पड़ा रहता है...इसी मैल को बटोरता है ..और अन्त में सब कुछ यहीं छोड़ जाता है ..धन तो माया है
धन मिट्टी है शास्त्रों में इसे "लोष्ठ्वत’ कहा गया है ...मगर सारी जिन्दगी आदमी इसी "लोष्ठ’ को एकत्र करता रहता है ..और अन्त में? अन्त में ’धन ’ की कौन कहे वो तो यह मिट्टी भी साथ नहीं ले जा सकता ... आदमी इस मिट्टी को समझ ले तो कोई दुख न हो....जब आवै सन्तोष धन ..सब धन धूरि समान’ अन्त में मालूम होता है कि आजीवन हम ने जो दौड़-धूप करता रहा वो सब तो धूल था ..तब तक बहुत विलम्ब हो चुका होता है---सब ठाठ पड़ा रह जायेगा...जब लाद चलेगा बंजारा...बंजारा चला गया..किस बात का शोक....
पंडित जी घंटे भर आत्मा-परमात्मा--जीव..जगत .माया...धन..मिट्टी आदि समझाते रहे और श्रोता भी कितना समझ रहे थे भगवान जाने
अन्त में ...अब हम सब मिल कर प्रार्थना करें कि भगवान मॄतक की आत्मा को शान्ति प्रदान करें और और परिवार को दुख सहने की शक्ति....."-पंडित जी का प्रवचन समाप्त हुआ
...लोग मृतक की तस्वीर पर ’श्रद्धा-सुमन’ अर्पित करने लगे ...पंडित जी ने जल्दी जल्दी पोथी-पतरा सम्भाला --चेले ने ’लिफ़ाफ़े’ में आई दान-दक्षिणा संभाली..इस जल्दी जल्दी के क्रम में चेले से 2-दक्षिणा का लिफ़ाफ़ा रह गया...पंडित जी की ’तीक्ष्ण दॄष्टि’ ने पकड़ लिया और चेले को एक हल्की सी चपत लगाते हुए कहा-" मूढ़ ! पैसा हाथ का मैल है..लिफ़ाफ़ा’ तो नहीं -यह लिफ़ाफ़ा क्या तेरा बाप उठायेगा..
पंडित जी ने दोनो लिफ़ाफ़े उठा कर जल्दी जल्दी अपने झोले में रख लिए...उन्हे अभी दूसरे ’तीये’ की बैठक में जाना है और वहाँ भी यही प्रवचन करना है---" अस्मिन असार संसारे !....पैसा हाथ का मैल है ....
-आनन्द.पाठक
09413395592
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज '
जवाब देंहटाएंतुलसी की दिव्य दृष्टि, विनम्रता और उक्ति वैचित्र्य ; चर्चा मंच 1914
पर भी है ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
सुन्दर अभिव्यक्ति पैसा हाथ का मैल है यह बात शायद चेले को समझ आ गयी होगी पर गुरूजी का उपदेश तो लोगो के लिए था खुद के लिए नहीं ,उन बेचारों की तो रोजी रोटी यही है ना
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