[एक ग़ज़ल "आप" [AAP] की नज़र---- ’आप’ की बात नहीं ..बात है ज़माने की]
चेहरे पे था निक़ाब ,हटाने का शुक्रिया
"कितने कमीन लोग"-बताने का शुक्रिया
अच्छा हुआ कि आप ने देखा न आईना
इलजाम ऊँगलियों पे लगाने का शुक्रिया
घड़ियाल शर्मसार तमाशा ये देख कर
मासूमियत से आँसू बहाने का शुक्रिया
हर बात पे कहना कि हमी दूध के धुले
"बाक़ी सभी हैं चोर’ जताने का शुक्रिया
तुम तो चले थे लिखने कहानी नई नई
आगाज़ में ही अन्त पढ़ाने का शुक्रिया
’आनन’ करे यक़ीन,करे भी तो किस तरह
’आदर्श’ का तमाशा बनाने का शुक्रिया
-आनन्द पाठक
09413395592
चेहरे पे था निक़ाब ,हटाने का शुक्रिया
"कितने कमीन लोग"-बताने का शुक्रिया
अच्छा हुआ कि आप ने देखा न आईना
इलजाम ऊँगलियों पे लगाने का शुक्रिया
घड़ियाल शर्मसार तमाशा ये देख कर
मासूमियत से आँसू बहाने का शुक्रिया
हर बात पे कहना कि हमी दूध के धुले
"बाक़ी सभी हैं चोर’ जताने का शुक्रिया
तुम तो चले थे लिखने कहानी नई नई
आगाज़ में ही अन्त पढ़ाने का शुक्रिया
’आनन’ करे यक़ीन,करे भी तो किस तरह
’आदर्श’ का तमाशा बनाने का शुक्रिया
-आनन्द पाठक
09413395592
अन्तर्राष्ट्रीय नूर्ख दिवस की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (01-04-2015) को “मूर्खदिवस पर..चोर पुराण” (चर्चा अंक-1935 ) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'