मित्रो !
कल ’होली’ थी , सदस्यों ने बड़े धूम-धाम से ’होली’ मनाई। आप ने उनकी "होली-पूर्व " की रचनायें पढ़ीं
अब होली के बाद का एक गीत [होली-उत्तर गीत ]-... पढ़े,.
होली के बाद की सुबह जब "उसने" पूछा --"आई थी क्या याद हमारी होली में ?"
एक होली-उत्तर गीत
"आई थी क्या याद हमारी होली मे ?"
आई थी ’हाँ’ याद तुम्हारी होली में
रूठा भी कोई करता क्या अनबन में
स्वप्न अनागत पड़े हुए हैं उलझन में
तरस रहा है दर्पण तुम से बतियाने को
बरस बीत गए रूप निहारे दरपन में
पूछ रहे थे रंग तुम्हारे बारे में -
मिल कर जो थे रंग भरे रंगोली में
होली आई ,आया फागुन का मौसम
गाने लगी हवाएं खुशियों की सरगम
प्रणय सँदेशा लिख दूँगा मैं रंगों से
काश कि तुम आ जाती बन जाती हमदम
आ जाती तो युगलगीत गाते मिल कर
’कालेज वाले’ गीत ,प्रीति की बोली में
कोयल भी है छोड़ गई इस आँगन को
जाने किसकी नज़र लगी इस मधुवन को
पूछ रहा ’डब्बू"-"मम्मी कब आवेंगी ?
तुम्हीं बताओ क्या बतलाऊं उस मन को
छेड़ रहे थे नाम तुम्हारा ले लेकर
कालोनी वाले भी हँसी-ठिठोली में --आई थी ’हाँ याद तुम्हारी होली में
-आनन्द.पाठक
09413395592
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2015) को "मेरी कहानी,...आँखों में पानी" { चर्चा अंक-1912 } पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आ0 शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंआप का आभार शत शत
-आनन्द.पाठक