मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

रविवार, 26 जून 2022

एक व्यंग्य व्यथा : एक लघु चिन्तन --देश हित में

 डायरी के पन्नों से--


एक व्यंग्य व्यथा: एक लघु चिन्तन : --"देश हित में"

जिन्हें घोटाला करना है वो घोटाला करेंगे---जिन्हें लार टपकाना है वो लार टपकायेगें---जिन्हें विरोध करना है वो विरोध करेंगे--- सब अपना अपना काम करेगे ।
ख़ुमार बाराबंकी साहब का एक शे’र है

न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है , हवा चल रही है

यानी दोनो अपना अपना काम कर रहे हैं} एक कमल है जो कीचड़ में खिलता है और दूसरा कमल का पत्ता है जो सदा पानी के ऊपर रहता है --पानी ठहरता ही नहीं उस पर।
----आजकल होटल -ज़मीन -माल -घोटाला की हवा चल रही है -थक नहीं रही है -- बादल घिर तो रहे हैं मगर बरस नहीं रहे हैं।
-----जो देश की चिन्ता करे वो बुद्धिजीवी
-----जो चिन्ता न करे वो ’सुप्त जीवी’
------जो ;पुरस्कार’ लौटा दे वो ’सेक्युलर’
-------और जो न लौटाए वो ’कम्युनल’ है
----------
मैं कोई पुरस्कार का”जुगाड़’ तो कर नहीं पाया तो लौटाता क्या । नंगा ,नहाता क्या---निचोड़ता क्या ।
सोचा एक लघु चिन्तन ही कर लें तब तक -’देश हित मे’ --- दुनिया यह न समझ ले कि कैसा ’ सुप्त जीवी प्राणी ’ है यह कि ’ताल ठोंक कर’- बहस भी नहीं देखता।
---------
कल ’लालू जी’ ने एक निर्णय लिया --देश हित में
आज ’नीतीश जी’ ने एक निर्णय लिया --देश हित में
भाजपा ने एक ’चारा’ फ़ेंका -- देश हित में
एक ने वो ’चारा’ नहीं खाया --देश हित में
दूसरा ’ चारा’ खा ले शायद --देश हित में
तीसरा ’हाथ’ दिखा दिखा कर थक गया ---देश हित मे
तो क्या? सब का ’देश हित’ अलग अलग है ।
या सबका ’देश हित’ एक है --कुर्सी-
और जनता ?
----जनता चुप होकर देखती है -----देश हित मे।
-ग़ालिब का शेर गुनगुनाती है

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे

गो हाथ में जुम्बिश नहीं आंखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे

जनता के लिए कौन है रोता यहां प्यारे
सिद्धान्त" गया भाड़ में , ’सत्ता’ मेरे आगे

यह ,आखिरी वाला शेर गालिब ने नहीं कहा था।
हाँ , अगरऔर ज़िन्दा रहते--तो यही कहते---" कि खुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता "-। ख़ुदा मगफ़िरत करे
जनता तो --बस तमाशा देख रही है -- आश्वस्त है कि ये सभी ’रहनुमा’ मेरे लिये चिन्ता कर रहे हैं॥ हमें क्या करना ! -हमे तो 5-साल बाद चिन्ता करना है ।एक सज्जन ने लोकतन्त्र का रहस्य बड़े मनोयोग से सुनाया--"बाबा !जानत हईं ,जईसन जनता चाही वईसन सरकार आई" ---मैंने परिभाषा पर तो ध्यान नहीं दिया मगर ’बाबा’ के नाम से ज़रूर सजग हो गया--पता नहीं यह कौन वाला ’बाबा ’ समझ रहा है मुझे।
------
उस ने कहा था---महागठ्बन्धन है ---टूटेगा नहीं---’फ़ेविकोल से भी ज़्यादे का भरोसा है --जब तक ’कुर्सी’ नहीं छूटेगी --प्राण नहीं छूटेगा --गठबन्धन नही टूटेगा--- सत्ता का शाश्वत सत्य है---- जनता मगन होई नाचन लागी --- ’सुशासन’ महराज की जय
भईए ! हम तो ’समाजवाद’ लाने को निकले थे ---सम्पूर्ण क्रान्ति करने निकले थे --।हम पर तो बस समझिए ’जयप्रकाश नारायण जी ’ का आशीर्वाद रहा कि फल फूल रहे है जैसे अन्ना हज़ारे जी केआशीर्वाद से उनके चेले-चापड़ फल फूल रहे है जैसे गाँधी जी के चेले फल फूल लिए।
और जनता -कल भी वहीं थी आज भी वहीं है---]सम्पूर्ण क्रान्ति’ के इन्तिज़ार में---

नई सुबह की नई रोशनी लाने को जो लोग गए थे
अंधियारे लेकर लौटे हैं जंगलात से घिरे शहर में

दुनिया में सम्पूर्ण क्या है, सिवा भगवान के !--वो तो मिलने से रहे। बस जो मिला वही लेते आये अपने घर ---बेटी दामाद बेटा-बहू भाई ,भतीजा --सब समाजवादी हो गए -चेहरे पे नूर आ गया ।कहते हैं- चिराग पहले घर में ही जलाना चाहिए --। सो मैने घर में ही ’समाजवाद’ का चिराग जला दिया-क्या बुरा किया-। कहने दीजिए लोहिया जी को--ज़िन्दा क़ौमे 5-साल इन्तिज़ार नहीं करती----
मैने कहा था--भइए----

साथ अगर है छूटेगा ही
’गठ बन्धन’ है टूटेगा ही
कुर्सी पे चाहे जो बैठे
बैठा है तो लूटेगा ही
’हाथ’ भला अब क्या करलेगा
डूबा है तो डूबेगा ही

गुरू जी ने कहा ----वत्स आनन्द ! ज़्यादे चिन्ता करने को नी। चिन्ता ,चिता समान है।
कहाँ तक चिन्ता करुँ -झोला लट्काए ।,मेरे जैसे चिन्तक के लिए इतना ही चिन्ता काफी है -- सो अब आज का चिन्तन यहीं तक। कल की चिन्ता कल पर।
अस्तु

-आनन्द पाठक-

9 टिप्‍पणियां:

  1. जनता के लिए कौन है रोता यहां प्यारे
    सिद्धान्त" गया भाड़ में , ’सत्ता’ मेरे आगे
    सटीक

    जवाब देंहटाएं
  2. न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
    दिया जल रहा है , हवा चल रही है... वाह!गज़ब कहा ख़ुमार बाराबंकी साहब से 👌

    जवाब देंहटाएं
  3. जबरदस्त तंज भी व्यंग्य भी रोचकता से भरपूर आज के यथार्थ पर प्रहार।

    जवाब देंहटाएं