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ये हुस्न तो फ़ानी है
फिर कैसा पर्दा
दो दिन की कहानी है
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कुछ ग़म की रात रही
कुछ रुसवाई भी
हासिल सौगात रही
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इतना तो बता देते
क्या थी मेरी ख़ता
फिर चाहे सजा देते
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आकर भी मिरे दर से
लौट गए क्यों तुम
रुसवाई के डर से
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जब से है तुम्हें देखा
देख रहा हूँ मैं
इन हाथों की रेखा
-आनन्द.पाठक-
09413395592
छोटे छंद मोहक !
जवाब देंहटाएंआ0 प्रसून जी
हटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
सादर
बहुत सुंदर प्यारे प्यारे।
जवाब देंहटाएंआ0 आशा जी
हटाएंआप का बहुत बहुत धन्यवाद
सादर