ईशोपनिषद के प्रथम
मन्त्र के प्रथम भाग ..”ईशावास्यम
इदं सर्वं यद्किंचित जगत्याम जगत ..” का काव्य-भावानुवाद......
ईश्वर माया से आच्छादित,
इस जग में जो कुछ अग-जग है |
सब जग में छाया है वह ही,
उस इच्छा से ही यह सब है |
ईश्वर में सब जग की छाया,
यह जग ही है ईश्वर-माया |
प्रभु जग में और जग ही
प्रभुता,
जो समझा सोई प्रभु पाया |
अंतर्मन में प्रभु को बसाए,
सबकुछ प्रभु का जान जो पाए |
मेरा कुछ भी नहीं यहाँ पर,
बस परमार्थ भाव मन भाये |
तेरी इच्छा के वश है नर,
दुनिया का यह जगत पसारा |
तेरी सद-इच्छा ईश्वर बन ,
रच जाती शुभ-शुचि जग सारा |
भक्तियोग का मार्ग यही है ,
श्रृद्धा भाक्ति आस्था भाये |
कुछ नहिं मेरा, सब सब जग
का,
समष्टिहित निज कर्म सजाये |
अहंभाव सिर नहीं उठाये,
मन निर्मल दर्पण होजाता|
प्रभु इच्छा ही मेरी इच्छा,
सहज-भक्ति नर कर्म सजाता ||
अर्थगर्भित सरल रूप भावार्थ सुन्दर मनोहर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वीरेन्द्र जी.....
हटाएंसुन्दर और सार्थक अनुवाद।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्रीजी......
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