इस संसार में पैदा कुछ भी नहीं होता है
Jeeva is one which is endowed with ignorance .
जो अज्ञान लेकर ही इस जगत में आया है वही जीव कहलाता है। पूछा जा
सकता है। अज्ञान का उद्गम क्या है ? कहाँ से आया अज्ञान। पूछा फिर
यह भी जाएगा -अज्ञान से पहले क्या था ?
"ज्ञान "-यही उत्तर मिलेगा न जो एक खतरनाक निष्कर्ष है। इसका
मतलब यह हुआ ज्ञान को विस्थापित करके फिर से अज्ञान आ गया था।
फिर वेद -उपनिषद पढ़ना बेकार हो जाएगा। अज्ञान ही तो हटाते हैं
उपनिषद इसीलिए इन्हें वेदों का ज्ञान- काण्ड कहा गया है। और इसे
हटाकर
अज्ञान आगया ?
यथार्थ यह है -
अज्ञान कभी पैदा ही नहीं हुआ था।
जीव भी कभी पैदा ही नहीं हुआ था।
साइबेरिया में रहती थी वह औरत -
जिसके जीवाश्मों से पहला DNA प्राप्त हुआ था। और इस होमिनोइड से
पहले का विकास क्रम देखें - पीछे चलते जाएंगे आप जीवों के इस विकास
क्रम में मकाक मंकी से भी पीछे की ओर की यात्रा में घड़ी की सुइयों को
पीछे लेते जाइयेगा। जी हाँ अमीबा से भी पहले। कहाँ जाकर रुकेंगे आप ?
महान (प्रधान या महत तत्व पर )ईश्वर ने चाहा और सृष्टि निसृत हो गई।
बना कुछ नहीं पैदा कुछ नहीं हुआ सिर्फ निसृत हुआ एक में से दूसरा
,दूसरे
में से तीसरा .......... .
पहले आदिपुरुष ब्रह्मा (SECONDARY CREATOR )निसृत हुआ
ईश्वर में से फिर- महान।
महान से -
अहंकार।
अहंकार से पहले आकाश बना। आकाश का गुण ध्वनि (शब्द
)था। आकाश से वायु बनी जिसमें आकाश का गुण तो आया ही अपना भी
एक गुण स्पर्श और आ गया। फिर वायु के संघर्षण से पैदा हुई अग्नि
जिसमें आकाश का गुण ध्वनि ,वायु का गुण स्पर्श और एक अपना गुण
रूप भी आ गया। अग्नि पहला ऐसा महाभूत था पांच महाभूतों में जिसे
देखा जा सकता था। अग्नि से जल बना जिसमें ध्वनि -स्पर्श -रूप के
अलावा रस(स्वाद ) का गुण और जुड़ गया गुणोँ के रूप में। जल से पृथ्वी
पैदा हुई जिसमें एक और गुण गंध का भी जुड़ गया।
ईश्वर भी कहाँ पैदा हुआ ?
उसे तो कहते ही पुराण है यानी जो पुराने से भी पुराना है अर्वाचीन है और
सदैव नूतन भी।
"that which is ancient and ever new is Ishwara "
सबूत ?
"one who is the observer of everything is never born ."
THERE IS TRIAD OF UNBORN .
JEEVA-ISHWARA -JAGAT
पूछा जा सकता है फिर बिग बेंग (Big Bang )का क्या होगा ?
"big bang is only talking of manifestation of space ,time and every
thing else "
जगत ईश्वर से अलग नहीं है वैसे ही जैसे मिट्टी से बना बर्तन मिट्टी से
अलग नहीं है। रूप और आकार हटा दो बर्तन गायब हो जाएगा लेकिन
उसका सत्य (उपादान कारण )मिट्टी रहेगी।
"pot is not an entity which is separate from clay "
" golden ornaments are not separate from gold ,there underlying
truth is gold ,all golden ornaments have only one reality that is gold ."
Where ever there is creation there is this feminine principle -
Godess Maya (JAGAT )
माया परमात्मा (ईश्वर )से अलग नहीं है। ईश्वर की शक्ति है लेकिन जीव
के लिए अज्ञान है। शक्ति (ईश्वर )शक्तिमान से अलग नहीं है।
SHE (MAYA )IS HE (ISHWARA )AND HE IS SHE THAT IS
WHY ALL
THE HINDU DEITIES ARE HAPPILY MARRIED .THERE IS
NO SEPARATION .
JEEVA ,ISHAWAR ,MAYA ARE ALL UNBORN .
MAYA IS ONE WITH JAGAT .
MAYA IS ONE WITH JEEVA AS IGNORANCE .
THE SAME MAYA MANIFESTS AS THE POWER OF GOD
.SHE IS ALL KNOWLEDGE AND ALL POWER WITH
ISHAWARA AND ALL IGNORANCE WITH JEEVA i.e IS
THE
DILEMMA.
जो पैदा नहीं होता उसका अस्तित्व देश ,काल और किसीवस्तु पर
निर्भर नहीं करेगा जैसे आत्मा -परमात्मा जबकि -
जगत आज है कल नहीं है उसका अस्तित्व देश ,काल और वस्तु पर
निर्भर
करता है।
जायते गच्छति इति जगत :
SELF(SOUL ) IS LIMITLESS ,INDEPENDENT OF SPACE
TIME AND
ANY OTHER OBEJECT .
सत्यम ज्ञानम् अनन्तं(सच्चिदानंद -सत +चित +आनंद )-यही मेरा
स्वरूप है।
-
IT IS CONSCIOUSNESS WHOSE EXISTENCE IS LIMITLESS .
JAGAT HAS EXISTENCE DEPENDENT ON SPACE AND
TIME .
ATMA CAN NOT BE OBJECTIFIED BECAUSE IT IS THE
SAME IN EVERY PERSON .
THER IS ONLY ONE I ONLY ONE CONSCIOUS
OBJECT.DIFFERENT PERSONS HAVE DIFFERENT
UPADHIS
(BODIES)BECAUSE OF THEIR THREE TYPES OF KARMAS
SANCHIT ,PRARABDH ,AGAMI KARMAS ARE DIFFERENT
IN THEM .
NOTHING HERE IN THE UNIVERSE IS WITHOUT THE
PRESENCE OF ISHAWARA .
ALL ISNESS (ISES ,PLURAL OF IS )IS ISHWAR .
IS का सम्बन्ध ईश्वर से है।
यह जगत ईश्वर की ही अभिव्यक्ति है इसकी हर चीज़ में वह मौजूद है
लेकिन वह स्वयं इनमें से कोई भी चीज़ नहीं है।
फूल ,लकड़ी की मेज और स्वयं तीनों का होना ईश्वर पर निर्भर करता है।
उनकी इज़्नेस ईश्वर है लेकिन ईश्वर न फूल है न लकड़ी है न स्वान।
FLOWER IS .
EXISTENCE OF FLOWER OR ANY OTHER OBEJECT
DEPENDS ON ISHWARA . BUT ISHWARA IS NONE OF
THEM .
THE ISNESS OF FLOWER IS ISHWARA .
THE I IN THE ISHAWARA IS ME (I).DUE TO THE EGO
(AHANKAR )THE I IS SEPARATED FROM ISHAWARA AND
CONSIDERS HIMSELF THE DOER AND THE ENJOYER
(THE
EXPERINECER )AND HENCE ALL THE IGNORANCE SINCE
ETERNITY .
JEEVA HAS BECOME PEEVA AND IS DOING PAIN ,PAIN
,PAIN (पै ,पैं ,पैं ,पीं पीं ).
श्वेताश्वतर उपनिषद के पहले अध्याय का यह नौवां मंत्र (श्लोक )है
सन्दर्भ सामिग्री :
Jeeva is one which is endowed with ignorance .
जो अज्ञान लेकर ही इस जगत में आया है वही जीव कहलाता है। पूछा जा
सकता है। अज्ञान का उद्गम क्या है ? कहाँ से आया अज्ञान। पूछा फिर
यह भी जाएगा -अज्ञान से पहले क्या था ?
"ज्ञान "-यही उत्तर मिलेगा न जो एक खतरनाक निष्कर्ष है। इसका
मतलब यह हुआ ज्ञान को विस्थापित करके फिर से अज्ञान आ गया था।
फिर वेद -उपनिषद पढ़ना बेकार हो जाएगा। अज्ञान ही तो हटाते हैं
उपनिषद इसीलिए इन्हें वेदों का ज्ञान- काण्ड कहा गया है। और इसे
हटाकर
अज्ञान आगया ?
यथार्थ यह है -
अज्ञान कभी पैदा ही नहीं हुआ था।
जीव भी कभी पैदा ही नहीं हुआ था।
साइबेरिया में रहती थी वह औरत -
जिसके जीवाश्मों से पहला DNA प्राप्त हुआ था। और इस होमिनोइड से
पहले का विकास क्रम देखें - पीछे चलते जाएंगे आप जीवों के इस विकास
क्रम में मकाक मंकी से भी पीछे की ओर की यात्रा में घड़ी की सुइयों को
पीछे लेते जाइयेगा। जी हाँ अमीबा से भी पहले। कहाँ जाकर रुकेंगे आप ?
महान (प्रधान या महत तत्व पर )ईश्वर ने चाहा और सृष्टि निसृत हो गई।
बना कुछ नहीं पैदा कुछ नहीं हुआ सिर्फ निसृत हुआ एक में से दूसरा
,दूसरे
में से तीसरा .......... .
पहले आदिपुरुष ब्रह्मा (SECONDARY CREATOR )निसृत हुआ
ईश्वर में से फिर- महान।
महान से -
अहंकार।
अहंकार से पहले आकाश बना। आकाश का गुण ध्वनि (शब्द
)था। आकाश से वायु बनी जिसमें आकाश का गुण तो आया ही अपना भी
एक गुण स्पर्श और आ गया। फिर वायु के संघर्षण से पैदा हुई अग्नि
जिसमें आकाश का गुण ध्वनि ,वायु का गुण स्पर्श और एक अपना गुण
रूप भी आ गया। अग्नि पहला ऐसा महाभूत था पांच महाभूतों में जिसे
देखा जा सकता था। अग्नि से जल बना जिसमें ध्वनि -स्पर्श -रूप के
अलावा रस(स्वाद ) का गुण और जुड़ गया गुणोँ के रूप में। जल से पृथ्वी
पैदा हुई जिसमें एक और गुण गंध का भी जुड़ गया।
ईश्वर भी कहाँ पैदा हुआ ?
उसे तो कहते ही पुराण है यानी जो पुराने से भी पुराना है अर्वाचीन है और
सदैव नूतन भी।
"that which is ancient and ever new is Ishwara "
सबूत ?
"one who is the observer of everything is never born ."
THERE IS TRIAD OF UNBORN .
JEEVA-ISHWARA -JAGAT
पूछा जा सकता है फिर बिग बेंग (Big Bang )का क्या होगा ?
"big bang is only talking of manifestation of space ,time and every
thing else "
जगत ईश्वर से अलग नहीं है वैसे ही जैसे मिट्टी से बना बर्तन मिट्टी से
अलग नहीं है। रूप और आकार हटा दो बर्तन गायब हो जाएगा लेकिन
उसका सत्य (उपादान कारण )मिट्टी रहेगी।
"pot is not an entity which is separate from clay "
" golden ornaments are not separate from gold ,there underlying
truth is gold ,all golden ornaments have only one reality that is gold ."
Where ever there is creation there is this feminine principle -
Godess Maya (JAGAT )
माया परमात्मा (ईश्वर )से अलग नहीं है। ईश्वर की शक्ति है लेकिन जीव
के लिए अज्ञान है। शक्ति (ईश्वर )शक्तिमान से अलग नहीं है।
SHE (MAYA )IS HE (ISHWARA )AND HE IS SHE THAT IS
WHY ALL
THE HINDU DEITIES ARE HAPPILY MARRIED .THERE IS
NO SEPARATION .
JEEVA ,ISHAWAR ,MAYA ARE ALL UNBORN .
MAYA IS ONE WITH JAGAT .
MAYA IS ONE WITH JEEVA AS IGNORANCE .
THE SAME MAYA MANIFESTS AS THE POWER OF GOD
.SHE IS ALL KNOWLEDGE AND ALL POWER WITH
ISHAWARA AND ALL IGNORANCE WITH JEEVA i.e IS
THE
DILEMMA.
जो पैदा नहीं होता उसका अस्तित्व देश ,काल और किसीवस्तु पर
निर्भर नहीं करेगा जैसे आत्मा -परमात्मा जबकि -
जगत आज है कल नहीं है उसका अस्तित्व देश ,काल और वस्तु पर
निर्भर
करता है।
जायते गच्छति इति जगत :
SELF(SOUL ) IS LIMITLESS ,INDEPENDENT OF SPACE
TIME AND
ANY OTHER OBEJECT .
सत्यम ज्ञानम् अनन्तं(सच्चिदानंद -सत +चित +आनंद )-यही मेरा
स्वरूप है।
-
IT IS CONSCIOUSNESS WHOSE EXISTENCE IS LIMITLESS .
JAGAT HAS EXISTENCE DEPENDENT ON SPACE AND
TIME .
ATMA CAN NOT BE OBJECTIFIED BECAUSE IT IS THE
SAME IN EVERY PERSON .
THER IS ONLY ONE I ONLY ONE CONSCIOUS
OBJECT.DIFFERENT PERSONS HAVE DIFFERENT
UPADHIS
(BODIES)BECAUSE OF THEIR THREE TYPES OF KARMAS
SANCHIT ,PRARABDH ,AGAMI KARMAS ARE DIFFERENT
IN THEM .
NOTHING HERE IN THE UNIVERSE IS WITHOUT THE
PRESENCE OF ISHAWARA .
ALL ISNESS (ISES ,PLURAL OF IS )IS ISHWAR .
IS का सम्बन्ध ईश्वर से है।
यह जगत ईश्वर की ही अभिव्यक्ति है इसकी हर चीज़ में वह मौजूद है
लेकिन वह स्वयं इनमें से कोई भी चीज़ नहीं है।
फूल ,लकड़ी की मेज और स्वयं तीनों का होना ईश्वर पर निर्भर करता है।
उनकी इज़्नेस ईश्वर है लेकिन ईश्वर न फूल है न लकड़ी है न स्वान।
FLOWER IS .
EXISTENCE OF FLOWER OR ANY OTHER OBEJECT
DEPENDS ON ISHWARA . BUT ISHWARA IS NONE OF
THEM .
THE ISNESS OF FLOWER IS ISHWARA .
THE I IN THE ISHAWARA IS ME (I).DUE TO THE EGO
(AHANKAR )THE I IS SEPARATED FROM ISHAWARA AND
CONSIDERS HIMSELF THE DOER AND THE ENJOYER
(THE
EXPERINECER )AND HENCE ALL THE IGNORANCE SINCE
ETERNITY .
JEEVA HAS BECOME PEEVA AND IS DOING PAIN ,PAIN
,PAIN (पै ,पैं ,पैं ,पीं पीं ).
श्वेताश्वतर उपनिषद के पहले अध्याय का यह नौवां मंत्र (श्लोक )है
सन्दर्भ सामिग्री :
बहुत सुन्दर ....सृष्टि सृजन का क्रमिक वर्णन है..... सब कुछ उसी परब्रह्म के ...व्यक्त व अव्यक्त ...भाव हैं...
जवाब देंहटाएं---- सब कुछ समय के अंतराल में स्थित ... अव्यक्त रूप में सर्वदा उपस्थित होता है ....समय के साथ वह व्यक्त होता है एवं रूप ग्रहण करता है ...जैसा यहाँ कहा गया...मेज या कुर्सी सदैव ही समय के अंतराल में उस काष्ठ में उपस्थित थे ....समय आने पर वे व्यक्त होगये....