सरस्वती के भंडार की बड़ी अपूरव बात ,
ज्यों खर्चे त्यों त्यों बढे ,बिन खर्चे घटि जात।
वैदिक शब्दावली (चौथी किश्त )
(१)उपनिषद :इस एक ही शब्द में दो उपसर्ग हैं -एक 'उप' दूसरा 'नि' ,सद् धातु (root of the word )है जिसे सदरू भी कहा गया है। सद् धातु का अर्थ है नाश करने वाला इस आभासी संसार को एलिमिनेट करने वाला ,संसार बीज का नाश आदि। यूं कहने को उपनिषद से पुस्तक का भी संकेत मिलता है जैसे यूं कह देते हैं -हम उपनिषद पढ़ेंगे या उपनिषद पढ़ाएंगे। उपनिषद का मुख्य अर्थ विद्या है ,गौण अर्थ पुस्तक है।वेदों का ज्ञान है यहां जिसे जानकार इस आभासी संसार का बोध समाप्त हो जाता है।
उप -का अर्थ है 'गुरु के निकट बैठकर' शिष्य द्वारा ज्ञान प्राप्त करना ,उसकी मनोवस्था के अनुरूप ,गुरुकृपा का प्रसाद पाकर ,परमात्मा के परम प्रकाश का दिग्दर्शन करते हुए ,गुरु के उपमान स्वरूप।
नि -का अर्थ है -निकट ,पूर्ण श्रद्धा ,समर्पण अंतर्मन से नतमस्तक ,सृष्टि के रहस्य को जानने की इच्छा से उसकी निकटता का आभास।
उपनिषद हमें हमारा असली परिचय देते हैं।
Who are we ?What is the nature of I?How this universe was created and then goes on to answer that the creator ,the created and the material are the same .
Upnishads :These are phillosophical texts (108 )that constitute a section of the Vedas .As of today there are 200 upnishads even more .
These are 108 treatises embodying Vedic philosophy ;found in the Aaranyaka and Braahmana portions of the Vedas.
(२ )प्रारब्धकर्म :प्रत्येक व्यक्ति अपने ही जन्म जन्मांतरों के संचित कर्मों का एक अंश लेकर इस संसार में आता है ,पैदा होता है जो कृष्ण उसे देकर भेजते हैं। इनका कर्मफल उसे भोगना ही भोगना पड़ता है। कई घटनाएं जिनका अर्थ हमें समझ में नहीं आता वह हमारे जीवन में इसी प्रारब्ध की वजह से घटतीं हैं।
भले भगवान ने हमें अच्छे या बुरे कर्म करने की स्वतंत्रता दी है। हम कैसे भी कर्म करें वह दखल नहीं देता निष्पक्ष देखता रहता है हमारे हृदय में बैठा। हमारे अनंत कोटि जन्मों के कर्मों का हिसाब रखता है।उन्हीं संचित कर्मों का एक हिसा देकर हमें संसार में भेजता है। इस जीवन में हमें कर्म करने की स्वतंत्रता है। जो भी कर्म हम करते हैं इस जीवन में वह हमारे अर्जित कर्म हैं। हमारे अपने चयन पर आधारित अच्छे या बुरे।
the destiny one is allotted at the time of birth ,based on past karmas .
(३)सत्त्वगुण(सतो गुण )(Materail mode of goodness );रजो (Mode of passion );तमो (Mode of ignorance ): प्रत्येक व्यक्ति में सतो-रजो और तमो तीनों गुण एक साथ पाये जाते हैं। तीनों में क्षण प्रतिक्षण प्रतियोगिता चलती है। हर क्षण तीनों में से कोई एक अपना प्रभुत्व बना लेता है। जिस समय हमारा मन कहता है चलो मंदिर चलते हैं तब समझ लो उस क्षण सतो गुणका प्राबल्य हो गया है मौज़मस्ती के समय रजो (Material mode of passion )गुण तथा आलस्य ,प्रमाद ,जड़ता ,तथा आपराधिक कर्म करते वक्त अज्ञान(Materail mode of ignorance )बढ़ जाता है।यह भी कर्म बंधन की वजह बनता है।
रजोगुण हमें कर्म की ओर प्रवृत्त करता है। काम अर्थात तमाम तरह की इच्छाओं का कारण यही रजोगुण है जो हमें कर्मों और कर्मबंधन में उलझाये रहता है।
व्यक्ति का लक्ष्य इन तीनों गुणों से अतीत होना है तीनों के पार जाना है तभी कर्मबंधन से छुटकारा मिलता है। वैकुण्ठ मिलता है जिसके लिए अटूट प्रेम और ईश्वर भक्ति चाहिए।
(४ )सव्यसाँची :गीता में अर्जुन के लिए प्रयुक्त हुआ है। अर्जुन ऐसा धनुर्धर है जो सामान नैपुण्य के साथ दोनों ही हाथों से तीर चला सकता है। इसीलिए उसे सव्यसाँची कहा गया है।
(५) धनंजय :जिसे धन तथा ऐश्वर्य विचलित नहीं करते जिसने वैभव को जीत लिया है। अर्जुन को गीता में भगवान ने धनंजय कहकर भी सम्बोधित किया है। अर्जुन के अन्य नाम भी यहां दिए जा रहे हैं।
(६)अर्जुन :इसमें root word आर्जव है जो सरल है। जिसके सब कर्म पाकीज़ा हैं।
"one of pure deeds ," "pure ,unsullied ; from आर्जव ,"uncomplicated mind ,speech ,and behavior ", one of five Paandavas .
(७)अनघ :निष्पाप (अर्जुन )
(८ )भारतसभा :भारतीयों में सर्वश्रेष्ठ। अलावा इसके भरतश्रेष्ठ (भारत श्रेष्ठ ),भारतसत्तमा भी इन्हीं अर्थों में अर्जुन के लिए गीता में प्रयुक्त हुआ है।
(९)गुडाकेश :अर्थात जिसने ने निद्रा को जीत लिया है। यह भी अर्जुन के लिए प्रयुक्त हुआ है।
(१० ) कपिध्वज :अर्जुन के अर्थ पर हनुमान का logo है।
he whose flag is adorned with the insignia of Hnauman
(११ ) कौन्तेय अर्थात कुंतीपुत्र अर्जुन ,पार्थ अर्थात पृथा का पुत्र अर्थात अर्जुन (कुंती का एक नाम पृथा है ).
(१२ )कुरुनंदन :कुरुवंश का आनंद ,कुरुवंश को आनंद देने वाला अर्थात अर्जुन।अन्यत्र अर्जुन को कुरुश्रेष्ठ भी कहा गया है।
(१३) पांडवा :पांडवपुत्र अर्जुन को पाण्डवा (अर्थात अर्जुन )भी कहा गया है।
(१४)परन्तप :शत्रुको कंपाने झुलसाने वाला ,तपाने वाला अर्थात अर्जुन।
(१५ )पुरुषव्याघ्र :अर्जुन के लिए श्रीकृष्ण ने इस सम्बोधन का इस्तेमाल भी गीता में किया है।
the tiger among men .
(16 )महाबाहो :विशाल (शक्तिशाली बाजुओं वाला )अर्थात अर्जुन।
(१७ )वेद :विद धातु से बना है वेद शब्द जिसका अर्थ है आल -नॉलिज।वेदों को 'श्रुति ' भी कहा गया है।क्योंकि गुरु से शिष्य तक श्रवण द्वारा पहुंचा है यह ज्ञान। वेदव्यास ने इस ज्ञान को सुविधा की दृष्टि से विभाजित किया है इसीलिए उन्हें व्यास कहा गया। व्यास अर्थात जो विभाजित करता है यह समास का विलोम है।व्यास इसके रचता नहीं है। सबसे पहले इस ज्ञान को श्रीकृष्ण ने ब्रह्मा के हृदय में स्थापित किया ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्रों को ,इस प्रकार श्रवण के द्वारा व्यास तक। व्यास तक इसे नारदजी ने पहुंचाया। व्यास से शुकदेव महाराज तक वहां से राजा परीक्षित (अभिमन्यु पुत्र जिनकी उत्तरा के गर्भ में श्रीकृष्ण ने प्रवेश करके रक्षा की )आदि तक पहुंचा है यह ज्ञान।
(१८ )पार्थसारथी :श्री कृष्ण को कहा गया है जो पार्थ(अर्जुन ) का रथ हांकते हैं महाभारत के युद्ध में।
(१९ )पितृ :पूर्वज जिनके हम वंशज हैं।
forefather ,especially an ancestor that is promoted to a higher planet .
(२० )पितृलोक : जहां श्रेष्ठ कर्म करने वाले अपने ऐसे कर्मों का फल भोगने वाले हमारे पूर्वज निवास करते हैं।
Heavenly planet of the ancestors
(२१ )प्रस्थान- त्रयी :उपनिषदों ,ब्रह्मसूत्र तथा भगवद्गीता को प्रस्थान त्रयी कहा गया है।
three points of commencement for understanding Vedic thought .These are the Upnishadas ,the Brahma Sootras and the Bhagavd Gita .
(२२) प्रथम पुरुष :महाविष्णु (कारणोदकशायी विष्णु )
(२३) महान :प्रकृति (माया ,मटीरियल एनर्जी )के उद्भव से पैदा तत्व।
ज्यों खर्चे त्यों त्यों बढे ,बिन खर्चे घटि जात।
वैदिक शब्दावली (चौथी किश्त )
(१)उपनिषद :इस एक ही शब्द में दो उपसर्ग हैं -एक 'उप' दूसरा 'नि' ,सद् धातु (root of the word )है जिसे सदरू भी कहा गया है। सद् धातु का अर्थ है नाश करने वाला इस आभासी संसार को एलिमिनेट करने वाला ,संसार बीज का नाश आदि। यूं कहने को उपनिषद से पुस्तक का भी संकेत मिलता है जैसे यूं कह देते हैं -हम उपनिषद पढ़ेंगे या उपनिषद पढ़ाएंगे। उपनिषद का मुख्य अर्थ विद्या है ,गौण अर्थ पुस्तक है।वेदों का ज्ञान है यहां जिसे जानकार इस आभासी संसार का बोध समाप्त हो जाता है।
उप -का अर्थ है 'गुरु के निकट बैठकर' शिष्य द्वारा ज्ञान प्राप्त करना ,उसकी मनोवस्था के अनुरूप ,गुरुकृपा का प्रसाद पाकर ,परमात्मा के परम प्रकाश का दिग्दर्शन करते हुए ,गुरु के उपमान स्वरूप।
नि -का अर्थ है -निकट ,पूर्ण श्रद्धा ,समर्पण अंतर्मन से नतमस्तक ,सृष्टि के रहस्य को जानने की इच्छा से उसकी निकटता का आभास।
उपनिषद हमें हमारा असली परिचय देते हैं।
Who are we ?What is the nature of I?How this universe was created and then goes on to answer that the creator ,the created and the material are the same .
Upnishads :These are phillosophical texts (108 )that constitute a section of the Vedas .As of today there are 200 upnishads even more .
These are 108 treatises embodying Vedic philosophy ;found in the Aaranyaka and Braahmana portions of the Vedas.
(२ )प्रारब्धकर्म :प्रत्येक व्यक्ति अपने ही जन्म जन्मांतरों के संचित कर्मों का एक अंश लेकर इस संसार में आता है ,पैदा होता है जो कृष्ण उसे देकर भेजते हैं। इनका कर्मफल उसे भोगना ही भोगना पड़ता है। कई घटनाएं जिनका अर्थ हमें समझ में नहीं आता वह हमारे जीवन में इसी प्रारब्ध की वजह से घटतीं हैं।
भले भगवान ने हमें अच्छे या बुरे कर्म करने की स्वतंत्रता दी है। हम कैसे भी कर्म करें वह दखल नहीं देता निष्पक्ष देखता रहता है हमारे हृदय में बैठा। हमारे अनंत कोटि जन्मों के कर्मों का हिसाब रखता है।उन्हीं संचित कर्मों का एक हिसा देकर हमें संसार में भेजता है। इस जीवन में हमें कर्म करने की स्वतंत्रता है। जो भी कर्म हम करते हैं इस जीवन में वह हमारे अर्जित कर्म हैं। हमारे अपने चयन पर आधारित अच्छे या बुरे।
the destiny one is allotted at the time of birth ,based on past karmas .
(३)सत्त्वगुण(सतो गुण )(Materail mode of goodness );रजो (Mode of passion );तमो (Mode of ignorance ): प्रत्येक व्यक्ति में सतो-रजो और तमो तीनों गुण एक साथ पाये जाते हैं। तीनों में क्षण प्रतिक्षण प्रतियोगिता चलती है। हर क्षण तीनों में से कोई एक अपना प्रभुत्व बना लेता है। जिस समय हमारा मन कहता है चलो मंदिर चलते हैं तब समझ लो उस क्षण सतो गुणका प्राबल्य हो गया है मौज़मस्ती के समय रजो (Material mode of passion )गुण तथा आलस्य ,प्रमाद ,जड़ता ,तथा आपराधिक कर्म करते वक्त अज्ञान(Materail mode of ignorance )बढ़ जाता है।यह भी कर्म बंधन की वजह बनता है।
रजोगुण हमें कर्म की ओर प्रवृत्त करता है। काम अर्थात तमाम तरह की इच्छाओं का कारण यही रजोगुण है जो हमें कर्मों और कर्मबंधन में उलझाये रहता है।
व्यक्ति का लक्ष्य इन तीनों गुणों से अतीत होना है तीनों के पार जाना है तभी कर्मबंधन से छुटकारा मिलता है। वैकुण्ठ मिलता है जिसके लिए अटूट प्रेम और ईश्वर भक्ति चाहिए।
(४ )सव्यसाँची :गीता में अर्जुन के लिए प्रयुक्त हुआ है। अर्जुन ऐसा धनुर्धर है जो सामान नैपुण्य के साथ दोनों ही हाथों से तीर चला सकता है। इसीलिए उसे सव्यसाँची कहा गया है।
(५) धनंजय :जिसे धन तथा ऐश्वर्य विचलित नहीं करते जिसने वैभव को जीत लिया है। अर्जुन को गीता में भगवान ने धनंजय कहकर भी सम्बोधित किया है। अर्जुन के अन्य नाम भी यहां दिए जा रहे हैं।
(६)अर्जुन :इसमें root word आर्जव है जो सरल है। जिसके सब कर्म पाकीज़ा हैं।
"one of pure deeds ," "pure ,unsullied ; from आर्जव ,"uncomplicated mind ,speech ,and behavior ", one of five Paandavas .
(७)अनघ :निष्पाप (अर्जुन )
(८ )भारतसभा :भारतीयों में सर्वश्रेष्ठ। अलावा इसके भरतश्रेष्ठ (भारत श्रेष्ठ ),भारतसत्तमा भी इन्हीं अर्थों में अर्जुन के लिए गीता में प्रयुक्त हुआ है।
(९)गुडाकेश :अर्थात जिसने ने निद्रा को जीत लिया है। यह भी अर्जुन के लिए प्रयुक्त हुआ है।
(१० ) कपिध्वज :अर्जुन के अर्थ पर हनुमान का logo है।
he whose flag is adorned with the insignia of Hnauman
(११ ) कौन्तेय अर्थात कुंतीपुत्र अर्जुन ,पार्थ अर्थात पृथा का पुत्र अर्थात अर्जुन (कुंती का एक नाम पृथा है ).
(१२ )कुरुनंदन :कुरुवंश का आनंद ,कुरुवंश को आनंद देने वाला अर्थात अर्जुन।अन्यत्र अर्जुन को कुरुश्रेष्ठ भी कहा गया है।
(१३) पांडवा :पांडवपुत्र अर्जुन को पाण्डवा (अर्थात अर्जुन )भी कहा गया है।
(१४)परन्तप :शत्रुको कंपाने झुलसाने वाला ,तपाने वाला अर्थात अर्जुन।
(१५ )पुरुषव्याघ्र :अर्जुन के लिए श्रीकृष्ण ने इस सम्बोधन का इस्तेमाल भी गीता में किया है।
the tiger among men .
(16 )महाबाहो :विशाल (शक्तिशाली बाजुओं वाला )अर्थात अर्जुन।
(१७ )वेद :विद धातु से बना है वेद शब्द जिसका अर्थ है आल -नॉलिज।वेदों को 'श्रुति ' भी कहा गया है।क्योंकि गुरु से शिष्य तक श्रवण द्वारा पहुंचा है यह ज्ञान। वेदव्यास ने इस ज्ञान को सुविधा की दृष्टि से विभाजित किया है इसीलिए उन्हें व्यास कहा गया। व्यास अर्थात जो विभाजित करता है यह समास का विलोम है।व्यास इसके रचता नहीं है। सबसे पहले इस ज्ञान को श्रीकृष्ण ने ब्रह्मा के हृदय में स्थापित किया ब्रह्मा ने अपने मानस पुत्रों को ,इस प्रकार श्रवण के द्वारा व्यास तक। व्यास तक इसे नारदजी ने पहुंचाया। व्यास से शुकदेव महाराज तक वहां से राजा परीक्षित (अभिमन्यु पुत्र जिनकी उत्तरा के गर्भ में श्रीकृष्ण ने प्रवेश करके रक्षा की )आदि तक पहुंचा है यह ज्ञान।
(१८ )पार्थसारथी :श्री कृष्ण को कहा गया है जो पार्थ(अर्जुन ) का रथ हांकते हैं महाभारत के युद्ध में।
(१९ )पितृ :पूर्वज जिनके हम वंशज हैं।
forefather ,especially an ancestor that is promoted to a higher planet .
(२० )पितृलोक : जहां श्रेष्ठ कर्म करने वाले अपने ऐसे कर्मों का फल भोगने वाले हमारे पूर्वज निवास करते हैं।
Heavenly planet of the ancestors
(२१ )प्रस्थान- त्रयी :उपनिषदों ,ब्रह्मसूत्र तथा भगवद्गीता को प्रस्थान त्रयी कहा गया है।
three points of commencement for understanding Vedic thought .These are the Upnishadas ,the Brahma Sootras and the Bhagavd Gita .
(२२) प्रथम पुरुष :महाविष्णु (कारणोदकशायी विष्णु )
(२३) महान :प्रकृति (माया ,मटीरियल एनर्जी )के उद्भव से पैदा तत्व।
सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंदिल की बातें !
हिंदी दिवस पर शुभकामनाऐं ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ! रचना द्वारा ज्ञानात्मक बोध का आयास प्रस्तुत किया गया है ! हिन्दी-दिवस पर वधाई ! यह देश का दुर्भाग्य है कि भारत की कोइ भी राष्ट्र भाषा ही नहीं है | राज-भाषा दसे जी बहलाया गया है ! सभी मित्रों से आग्रह है कि इस विषय में क्या किया जा सकता है, सलाह दें !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-09-2014) को "हिंदी दिवस : ऊंचे लोग ऊंची पसंद" (चर्चा मंच 1737) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सब कुछ अस्त-व्यस्त तरीके से है...अक्रम्बद्ध
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