हर किसी को यहाँ मिलते हैं
झूठे प्यार जिन्दगी के
कुछ धोखे हैं
कुछ मतलब हैं
यहाँ सच्चे प्यार
कहाँ मिलते हैं
कुछ दिनों के
हैं ये धोखे
असली यार कहाँ
मिलते हैं
जितना मिलता है
जी लो उसको
ना जाने
कब रिश्ते बदलते हैं
ना मैं मैं हूँ ना तू तू है
मुखोटों में रहते हैं
सब यहाँ जिन्दगी में
कितने जाल हैं
कितनी चाल हैं
कौन जाने
क्यों ये हाल हैं
क्यों किसी को नहीं मिलता
सच्चा प्यार यहाँ जिन्दगी में
........इंतज़ार
झूठे प्यार जिन्दगी के
कुछ धोखे हैं
कुछ मतलब हैं
यहाँ सच्चे प्यार
कहाँ मिलते हैं
कुछ दिनों के
हैं ये धोखे
असली यार कहाँ
मिलते हैं
जितना मिलता है
जी लो उसको
ना जाने
कब रिश्ते बदलते हैं
ना मैं मैं हूँ ना तू तू है
मुखोटों में रहते हैं
सब यहाँ जिन्दगी में
कितने जाल हैं
कितनी चाल हैं
कौन जाने
क्यों ये हाल हैं
क्यों किसी को नहीं मिलता
सच्चा प्यार यहाँ जिन्दगी में
........इंतज़ार
yashoda जी आभार ..मेरी रचना को स्थान देने के लिये
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-12-2014) को "वास्तविक भारत 'रत्नों' की पहचान जरुरी" (चर्चा अंक-1840) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी आभारी हूँ ...मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिये ...सादर.....
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजो फरेब खाई मैंने तुझे राजदां समझ कर को झंकृत करती रचना
Aziz जी आभार पसन्दगी के लिये ....सादर ...
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